समग्र समाचार सेवा
गुवाहाटी, 24 जुलाई: असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा के हालिया बयान ने राज्य की राजनीति और जनसांख्यिकी को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है। सरमा ने कहा है कि यदि मौजूदा जनसंख्या वृद्धि की गति बनी रही, तो आने वाले वर्षों में असम में मुस्लिम आबादी 50% तक पहुंच सकती है, जो राज्य की सांस्कृतिक अस्मिता के लिए खतरा बन सकती है।
मुख्यमंत्री का यह बयान केवल सांख्यिकीय अनुमान नहीं, बल्कि राज्य की गहराती चिंता और सामाजिक संरचना के संभावित बदलाव को लेकर चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
जनगणना और बदलती सामाजिक तस्वीर
हिमंता सरमा ने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि उस समय असम में मुस्लिम आबादी 34% थी, जिसमें से केवल 3% स्वदेशी असमिया मुसलमान थे। शेष 31% आबादी को उन्होंने प्रवासी मुसलमानों की श्रेणी में रखा। उन्होंने दावा किया कि इस वृद्धि की गति यदि जारी रही तो 2031 या 2041 तक मुस्लिम जनसंख्या 50% का आंकड़ा पार कर सकती है।
सरमा ने आशंका जताई कि इससे हिंदू आदिवासी और अन्य मूल असमिया समुदाय अल्पसंख्यक बन सकते हैं, जिससे सांस्कृतिक असंतुलन की स्थिति पैदा हो सकती है।
अवैध प्रवास और सुरक्षा चिंता
मुख्यमंत्री ने बांग्लादेश से हो रहे अवैध प्रवासन को असम की जनसंख्या संरचना में असंतुलन के लिए प्रमुख कारण बताया। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है और इससे राज्य की आंतरिक सुरक्षा को खतरा है।
सरमा ने स्पष्ट किया कि असम सरकार 1 से 7 अगस्त के बीच स्वदेशी समुदायों को हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन करने की अनुमति दे रही है, ताकि वे अपनी सुरक्षा कर सकें। इसके अतिरिक्त, गोलाघाट जिले में निष्कासन अभियान की तैयारी भी चल रही है, जहां अवैध कब्जे को हटाने की योजना है।
राजनीतिक और सांस्कृतिक असर
राज्य के कई जिलों—धुबरी, बारपेटा, नागांव और दक्षिण सालमारा-मनकाचर—में असमिया समुदाय पहले ही अल्पसंख्यक बन चुका है। मुख्यमंत्री का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो राज्य में ‘भौगोलिक और सांस्कृतिक विस्थापन’ की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक बनती है, तो वह राज्य के कई निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है। इससे सत्ता संतुलन और असम की पारंपरिक राजनीतिक धारा में बदलाव आ सकता है।
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