पार्थसारथि थपलियाल
इन दिनों गंगा जमुनी या भाई चारा शब्दों पर लंबी लंबी और बड़ी बड़ी बातें कही सुनी जा रही हैं। सुनी ही नही जा रही हैं बल्कि इन शब्दों का ऑपरेशन भी हो रहा है। भारत सदियों से समन्वयवादी संस्कृति का देश रहा। भारतीय राजाओं /महाराजाओं ने सभी धर्मों और पंथों को यहाँ रहने और अपने धर्मों का पालन करने की छूट दी। सनातन धर्म की शाखाओं के अलावा यहूदी, पारसी, मुसलमान, ईसाई आदि सभी यहाँ आये और विस्तार पाए। दुनिया मे ऐसी समन्वयवादी संस्कृति अन्यत्र कहीं नही।
एक लोकप्रिय शिक्षाप्रद कहानी बचपन मे पढ़ी थी। एक मुसाफिर रेगिस्तान में अपने ऊंट के साथ सफर कर रहा था। सुबह से शाम हो गई न मुसाफिर का ठिकाना आया और न कोई बस्ती। सूरज छुप चुका था। अंधेरा बढ़ने लगा। मुसाफिर को रेत के टीबों में एक झोपड़ी दिखायी दी। झोपड़ी सुनसान थी। मुसाफिर झोपड़ी में पहुंच गया। झोपड़ी ज्यादा बड़ी नही थी इसलिए मुसाफिर नें ऊंट को झोपडी की दहलीज पर बैठा दिया। रात बढ़ने लगी। गरम रेत ठंडी होने लगी। मौसम सर्दियों का था। मध्य रात्रि तक ठंड बहुत बढ़ गई। मुसाफिर ने ऊंट को खड़ा किया और गर्दन तक का हिस्सा झोपड़ी के अंदर कर दिया। कुछ देर में ऊंट धीरे धीरे अंदर होता गया और किसान बाहर।….
अच्छी नियत से किये गए काम अगर बिना सोच समझ के किये जाएं तो भारी पड़ते हैं। शायर राहत इंदौरी इस दुनिया से जाने से पहले एक मुशायरे में एक ग़ज़ल सुना गए। उस ग़ज़ल का एक शेर पेश है-
सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।।
इनका कहना सही है या गलत? यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन इतने बड़े शायर का इतना तंग नजरिया अमावस का चांद ले आया।
राजस्थान के बहुत लोकप्रिय साहित्यकार हैं इकराम राजस्थानी। उनका एक शेर देखिये जो उन्हें बहुत बड़ा बना देता है।
हाथों में गीता रखेंगे, सीने में कुरान रखेंगे
मेल बढ़ाये जो आपस मे ओ धर्म ओ ईमान रखेंगे
शंख बजे भाई चारे का ऐसी एक अजान रखेंगे
मंदिर मस्जिद भी रखेंगे, पहले हिंदुस्तान रखेंगे।।
उत्तर प्रदेश का एक जिला है सहारनपुर। इस जिले में एक शहर है देवबंद। देवबंद इस्लामी शिक्षा का बहुत बड़ा केंद्र है। इसी जगह पर “जमीयत ए इस्लामी हिन्द” का दो दिनों का जलसा अप्रैल के आखिरी हफ्ते में हुआ। उसमे क्या हुआ या नही हुआ वह मेरा विषय नही है। मेरा ध्यान इस बात पर गया कि एक बहुत अच्छे इंसान ने इतना घटिया बयान कैसे दे दिया? जमीयत के सरबरा (अध्यक्ष) मौलाना असद मदनी बहुत नेक इंसान और विद्वान लगते रहे हैं। उन्होंने जो बात कही उसको समझना चाहिए-
” हम बाई चॉइस हिंदुस्तानी हैं। हमारे पास चॉइस थी हम पाकिस्तान जा सकते थे, लेकिन हमने हिंदुस्तान को अपनाया। यह चॉइस हिंदुओं के पास नही थी। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा जो मुसलमानों से नफरत करते हैं वे (इस देश से) कहीं और चले जाएं। हम तो यहीं रहेंगे”। मुसाफिर का ऊंट अब तक बड़ा हो गया। अब वह मालिक को झोपड़ी में न घुसने का फरमान सुना रहा है क्योंकि ऊंट के पास भागने का विकल्प था लेकिन वह भागा नही।
इस विचार को प्रत्येक भारतीय को समझना चाहिए कि भारत का विभाजन का आधार क्या था? इस दौर का यह वक्तव्य भविष्य का संकेत है कि….. वे कहीं और चले जाएं। मैं व्यक्तिगत रूप से सर्वधर्म समभाव विचार का पोषक हूँ लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह आंखों को जमीन में धँसाये रखना मुझे पसंद नही। नागरिक किसी भी धर्म का हो शुद्ध विचारों का हो। मुनाफ़िक़ और मक्कार न हो। अन्यथा दुनिया मे एक संस्था जॉर्ज सोरोस द्वारा संचालित है इसका नाम है ओपन सोसाइटी फाउंडेशन। यह संस्था भारत में क्या गतिविधियां करती है जानेंगे तो वास्तविकता का पता चलेगा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या कुछ हो रहा है।
लेखक परिचय -श्री पार्थसारथि थपलियाल,
वरिष्ठ रेडियो ब्रॉडकास्टर, सनातन संस्कृति सेवी, चिंतक, लेखक और विचारक। (आपातकाल में लोकतंत्र बचाओ संघर्ष समिति के माननीय स्वर्गीय महावीर जी, तत्कालीन विभाग प्रचारक, शिमला के सहयोगी)
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