राष्ट्रप्रथम- स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर बढ़ने की आकांक्षा

पार्थसारथि थपलियाल
पार्थसारथि थपलियाल

पार्थसारथि थपलियल

भारत युग युगों से विभिन्न राज्यों सहित एक राष्ट्र रहा है। इस राष्ट्र की एक संस्कृति रही है। एक संस्कृति के कुछ सम्यक जीवन आधार रहे हैं। यह नही कि सब लोग एक तरह का खान पान करते हो या परिधान पहनते हैं। खान पान, रहन सहन संस्कृति का बाह्य स्वरूप है। इस मायने में भारत विविधताओं का राष्ट्र है। भले ही राष्ट्र (Nation) की आधुनिक परिभाषा में भूमि, जनसंख्या, सरकार और प्रभुसत्ता को माना जाता है लेकिन जिन संदर्भों में भारत एक राष्ट्र है वह इस परिभाषा से भिन्न है। ऋग्वेद में कई गई यह कामना हमें राष्ट्रीयता के मार्ग की ओर प्रशस्त करता है।
समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सह चित्तमेषाम्
समानं मन्त्रमभि मन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि ।।
अर्थात हम सबकी प्रार्थना एक सामान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण-मन-चित्त-विचार सामान हों। मैं सबके हित के लिए सामान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ।
प्रत्येक परिवार का अपना प्रबंधन होता है। उस परिवार के लोगों में कुछ ऐसे गुण/ संस्कार अथवा व्यवहार होता है जो उसे एक परिवार की पहचान देते हैं। इसी प्रकार अनेक विविधताओं के होते हुए जिन लोगों का पारस्परिक भाव व्यापक रूप से सामान होता है तब राष्ट्र बनता है। कोई भी देश एक राष्ट्र तभी हो सकता है जब उनकी अपनी जनसंख्या, भू-भाग, प्रभुसत्ता, सभ्यता, संस्कृति, भाषा, साहित्य, स्वाधीनता और स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय एकता आदि समस्त तत्त्व हों, सभी लोग अपने राष्ट्र के प्रति आस्थावान हो, निष्ठावान हों। वह चाहे किसी भी धर्म, जाति तथा प्रांत का हो।
यह परिभाषा तब भी थी जब भारत पराधीन रहा और तब भी है जब स्वाधीन है। लगभग 755 साल भारत आक्रांताओं की दासता में रहा लेकिन राष्ट्रीयता भारतीय ही रही। दासता का काल समाप्त हुआ। भारत 1947 मे स्वाधीन हुआ। स्वाधीन होने का आशय यह है कि अब हम पराए लोगों के आधीन नही रहे। अपने लोगों के आधीन हो गए। बंद पिंजरे के पंछी को लोहे के पिंजरे में रखें या सोने के पिंजरे में उसकी आसमा में उड़ने की स्वतंत्रता तो पिंजरे के आकार जितनी ही है। एक शेर हमारी स्वाधीनता को इस तरह व्यक्त करता है-

शिकारी ने परिंदे को ये कहकर क़ैद में डाला।
चहकने की इजाज़त है मगर आवाज़ मत करना।

क्या वास्तव में हम स्वाधीनता के इन 75 वर्षों मे हम स्वतंत्र हो पाए। विचार कीजिये बिना भारतीयता के स्वाधीनता के क्या अर्थ? जब तक हम भारत मे स्व को प्रतिस्थापित नही कर पाए तब तक आज़ादी एक छलावा है। भारत की स्वतंत्रता भारतीय दृष्टिकोण से संचालित वह व्यवस्था होगी जो भारतीय संस्कृति से पोषित होगी। भारतीय संस्कृति समावेशी संस्कृति है 1975 तक वह सहिष्णुता और सहअस्तित्व के सिद्धान्त पर चलती रही। 1976 में भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द डालकर भारतीयों की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई। हमनें भारतीय जीवनशैली और संस्कृति का मर्डर कर दिया, भारतीय संस्कृति को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। भारत लोगों का जमावड़ा मात्र नही समान भावों के साथ राष्ट्रीय गौरव और वैभव के लिए निष्ठावान रहना भारतीयता है। जिनकी धड़कने भारत की बजाय किसी और के लिए धड़कती हों वे लोग राष्ट्र में रहते हुए राष्ट्रीय नही हो सकते।
महान कवि प्रदीप ने फ़िल्म नागमणि के लिए 1957 में जो गीत लिखा था वह पिंजरा आज सोने का हो गया है-
पिंजरे के पंछी रे, तेरा दर्द ना जाने कोय।
बाहर से तू खामोस रहे, भीतर भीतर रोये रे ।
तेरा दर्द ना जाने कोय, पिंजरे के पंछी। ……

कह ना सके तू अपनी कहानी, तेरी भी पंछी क्या जिंदगानी रे।
विधि ने तेरी कथा लिखी है, आंसू में कलम डुबोय।
तेरा दर्द ना जाने कोय, पिंजरे के पंछी। ……

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