राष्ट्रप्रथम- ग़लत फहमी के नैरेटिव की पाठशाला

पार्थसारथि थपलियाल
पार्थसारथि थपलियाल

पार्थसारथि थपलियाल

पापी पेट क्या नही करवाता इसका प्रबल उदाहरण है पत्रकारिता। 30-35 साल पहले झूठ का सच गड़ने वाले न समाचार पत्र हुआ करते थे न रेडियो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। आकाशवाणी विवादित विषयों की बजाय सामाजिक उत्थान, विकासात्मक और सांस्कृतिक पत्रकारिता पर अधिक केंद्रित थी जबकि वॉइस ऑफ अमेरिका, बी बी सी, रेडियो जर्मनी आदि को निष्पक्ष ब्रॉडकास्टर माना जाता रहा है। यद्यपि यह आंशिक ही सच है। लेकिन फिर समाचारों के लिए भी बी बी सी विश्वसनीय कहा जाता था। बदलाव के दौर में बी बी सी और अन्य माध्यम भी बदले। भारत में 1991 में नई आर्थिक नीतियों की शुरुआत के साथ ही चीखने चिल्लाने और अनाप सनाप परोसने का काम मीडिया ने किया। यह एक ऐसा धंधा है जो पूर्ववर्ती प्रतिष्ठा की साख पर अभी तक जीवित है। चीखने चिल्लाने, उन्माद फैलाने, असभ्यता और अश्लीलता बढ़ाने का काम अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धड़ल्ले से हो रहा है। आपने पिछले दिनों सुना होगा कि भारत के कितने पत्रकार भारत विरोधी मंतव्य (नैरेटिव) को विस्तार देने में लगे हुए हैं। जिन्हें भारत विरोधी और विभाजनकारी संगठनों से करोड़ों रुपये मिलते हैं। इनमें कई सरकार के कोपभाजन भी बने और कई आज भी हाथ मलते मलते चटकारे लेने का दिखावा कर रहे हैं। प्रधान मंत्री के घोर विरोधी लोग पत्रकारिता का जामा पहनकर भारत की उपलब्धियों को भी गौण कर देते हैं।
23 अगस्त 2023 को इसरो नें चंद्रमा पर चंद्रयान की सफल लैंडिंग कराई। यह भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
एक तथाकथित पत्रकार की टिप्पणी सुनने को मिली क्या चंद्रयान पर पहुंचकर भारत की गरीबी और बेरोज़गारी मिट जाएगी। बी बी सी ने कहा कि भारत चंद्रयान पर खर्च करने की बजाय अपनी गरीबी को कम करता। समझ रहे हैं! पथ वह पढ़ा रहा है जो न कोविड को ठीक ढंग से संभाल सका न बेरोजगारी को। भारत-विभाजनकारी और विदेशों के धन बल पर पलने वाला एक तड़ीपार पत्रकार जो मक्खी की तरह गंदगी में बैठने का आदि है वह चंद्रयान की सफल लैंडिंग में भी मोदी पेंच ढूंढ लाया। यू ट्यूब पर इन महाशय का वीडियो उपलब्ध है जिनका कहना था यह सफलता वैज्ञानिकों की थी न कि प्रधानमंत्री की। ब्रिक्स सम्मेलन में जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) गए प्रधानमंत्री अपना श्रेय लेने के लिए जोहान्सबर्ग से सजीव प्रसारण में काफी समय तक जुड़े रहे। उनका कहना था इस आयोजन में उनका क्या काम था। मोदी से नफरत करनेवाले एक पत्तलकार ने तो अपसभ्य शब्दों का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही दोष मढ़ दिया कि चंद्रयान-2 मिशन इसलिए असफल हुआ क्योंकि मोदी उस प्रमोचन (launching) के समय श्रीहरिकोटा में उपस्थित थे।
एक तथाकथित जॉर्नलिस्ट ने तो अपने ही ढंग का नैरेटिव क्रिएट करने का प्रयास किया। इन महाशय ने तिल का ताड़ नही बनाया बल्कि बिना तिल के ही झाड़ पैदा कर दी। कहा कि जोहान्सबर्ग के एक अखबार में खबर किसी छोटे से कोने पर छपी कि मोदी के प्रोटोकॉल में साउथ अफ्रीका का कैबिनेट मिनिस्टर आया जबकि सी जिनपिंग को लेने वहां के राष्ट्रपति आये। मोदी ने कहा कि मैं तबतक हवाई जहाज से नीचे नही उतरूंगा जब तक कोई बड़ा आदमी मुझे लेने नही आएगा। उनके अनुसार आननफानन में वहां के उपराष्ट्रपति के आने के बाद ही मोदी हवाई जहाज से नीचे उतरे। इन महाशय ने पत्रकारिता की या किसी के लिए पक्षकारिता की? डूब मरने की बात है। इस घटना के बाद भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम वागची ने कहा कि यह सब मनगढंत है। मिथ्या है। दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्रपति प्रोटोकॉल के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत में पहले से ही उपस्थित थे। वैसे भी एक सामान्य आदमी भी जानता है कि विदेशमंत्रालय के हर काम मे प्रोटोकॉल होता है फिर प्रधानमंत्री के मामले में तो बहुत पहले से सब निर्धारित होता है।
ये जो लोग नफ़रती माहौल के टूलकिट हैं, क्या कभी इन्हें अपने वक्तव्यों पर शर्म भी आती होगी। इन धूर्त लोगों ने उस दृश्य पर कोई बात नही कही जिसमें मंच पर खड़े होने के नियत स्थान पर प्रतीकात्मक चिन्ह के रूप में दक्षिण अफ्रीका और भारतीय ध्वज के लघु रूप को रखा गया था। भारतीय प्रधानमंत्री और द. अफ्रीकी राष्ट्रपति जैसे ही मंच पर पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी की निगाह अपने राष्ट्रध्वज पर पड़ी उन्होंने तिरंगे को उठाया और ससम्मान अपनी जेब मे रख दिया। यूँकि देखादेखी अफ्रीकी राष्ट्रपति को भी करनी पड़ी। ये विधवाविलापी लोग पत्रकारिता की आड़ में अपना धंधा चला रहे हैं। रही सही सोशल मीडिया ने इनका कद छोटा कर दिया है। अब जाएं तो जाएं कहाँ? अच्छे भले विद्वान पत्रकार भी पापी पेट की खातिर टी आर पी के चक्कर में वही कहने लगे हैं जो धंधा कहता है। मंतव्य स्थापित करने की इस पाठशाला में राष्ट्रप्रथम का पाठ कब पढ़ा जाएगा कह पाना कठिन है।
अकबर इलाहाबादी का एक शेर देखिए-
चश्मे जहाँ से हालाते असली छुपी नही
अखबार में जो चाहिए वो छाप दीजिए।।

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