आकांक्षी ब्लॉकों और सीमावर्ती गांवों में बच्चों के अधिकार सुनिश्चित करेगा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27मई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश के समग्र विकास के लिए शुरू किए गए आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (एबीपी) तथा वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम से प्रेरित होकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के द्वारा आकांक्षी ब्लॉक तथा वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत चयनित गांवो में बाल अधिकारों के उत्तम क्रियान्वयन के लिए बेंच/शिविर का आयोजन किया जा रहा है। आयोग की इस महत्वकांक्षी योजना का उद्देश्य उन बच्चों तक विकास के अवसर पंहुचाना है जो किसी कारणवश अपने वैधानिक और संवैधानिक अधिकारों से वंचित रह गए हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने आंकाक्षी ब्लॉक कार्यक्रम(एबीपी) तथा वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य विभिन्न विकास मानकों पर पिछड़े ब्लॉकों के प्रदर्शन में सुधार करना है। इसी कड़ी में आयोग के द्वारा इन दोनों कार्यक्रमों में अपना योगदान सुनिश्चित कर एक ऐसे वातावरण का निर्माण करने का प्रयास किया जाएगा जिसमें हर बच्चे को विकास के अवसर मिले और वह देश निर्माण में अपना योगदान दे सके।
आंकाक्षी ब्लॉकः भारत के माननीय प्रधानमंत्री ने सरकार के आंकाक्षी ब्लॉक कार्यक्रम(एबीपी) की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य विभिन्न विकास मानकों पर पिछड़े ब्लॉकों के प्रदर्शन में सुधार करना है। आंकाक्षी ब्लॉक कार्यक्रम, आंकाक्षी जिला कार्यक्रम प्रोग्राम की तर्ज पर है जिसे 2018 में शुरू किया गया था और इसमें देश भर के 112 जिले शामिल हैं। प्रारंभ में कार्यक्रम 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 500 जिलों को कवर करेगा। इनमें से आधे से अधिक ब्लॉक 6 राज्यों- उत्तर प्रदेश (68 ब्लॉक), बिहार (61), मध्य प्रदेश (42), झारखंड (34), ओडिशा (29) और पश्चिम बंगाल (29) में हैं। नीति आयोग, स्वास्थ्य, शिक्षा और पोषण जैसे क्षेत्रों को कवर करने वाले विकास संकेतकों के आधार पर राज्यों की इन ब्लॉकों के साथ साझेदारी की प्रदर्शन की रैंकिंग (तिमाही आधार पर) जारी करेगा।
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्रामः भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों की सीमावर्ती गाँव के प्रति सोच को बदला है, अब लोग इसे अंतिम गाँव के रूप में नहीं बल्कि भारत के पहले गाँव के रूप में जानते हैं।” यह एक ऐसी योजना है जिसका उद्देश्य उत्तरी सीमा पर ब्लॉकों के गांवों के व्यापक विकास के लिए चिन्हित सीमावर्ती गांवों में रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। कार्यक्रम में उत्तरी सीमा पर विरल आबादी वाले सीमावर्ती गांवों, सीमित कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे को शामिल करने की परिकल्पना की गई है, जो अक्सर विकास लाभ से बाहर रह जाते हैं। यह योजना आवश्यक बुनियादी ढांचे के विकास और आजीविका के अवसरों के निर्माण के लिए धन प्रदान करेगी। यह योजना भारत के सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने और जमीनी स्तर तक इसकी पहुंच को गहरा करने में मदद करेगी क्योंकि यह सहकारी समितियों को आवश्यक बुनियादी ढांचे की स्थापना और आधुनिकीकरण करने में सक्षम बनाएगी। इस योजना के तहत पांच राज्यों में कुल 2,962 सीमावर्ती गांवों को विकसित किया जाएगा। यह न केवल हमारी सीमाओं को सुरक्षित और सुरक्षित बनाएगा, बल्कि दूर-दराज के और सीमावर्ती गांवों को भी राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाएगा, और उन्हें अधिक जीवंत, विकसित और आत्मनिर्भर बनाएगा।
आय़ोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो जी ने बताया देश के सभी आकांक्षी विकास खंडों (ब्लॉक्स) और वाइब्रेंट विलेज में बच्चों की शिकायतों का निवारण कर व जोखिम ग्रस्त बच्चों के परिवारों का सरकार की योजनाओं के माध्यम से सशक्तिकरण कर बाल अधिकारों को संरक्षित करने के लिए आयोग द्वारा ब्लॉक स्तर पर बेंच आयोजित करने के निर्णय लिया गया है। इस महा अभियान का आरम्भ अमरकण्टक मध्यप्रदेश में 26 मई को पहली बेंच लगा कर किया जा रहा है। अंतिम पंक्ति के आख़िरी बच्चे तक पहुँचने के लिए आयोग का यह अभियान देश के सभी आकांक्षी ब्लॉकों में चलाया जाएगा जिसमें शिकायत निवारण के अतिरिक्त जोखिम ग्रस्त परिवारों को सूचीबद्ध करना, किशोरवय बालिकाओं-बालकों को मानव तस्करी के विरुद्ध जागरूक करना, स्कूल, आंगनवाड़ी बालगृह, अस्पताल इत्यादि का सुरक्षा ऑडिट व शासकीय कर्मचारियों का योजनाओं व बाल अधिकार पर उन्मुख़िकरण/समीक्षा की जाएगी।
आयोग ने बाल अधिकारों के संरक्षण की दिशा में अपनी सोच और गतिविधियों प्रभावी बनाते हुए परिवार केंद्रित दृष्टिकोण पर जोर देने का काम किया है और आयोग का यह मानना है कि परिवार ही वह इकाई है जिसके सशक्तिकरण से बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसलिए आयोग परिवारों को इन बेंच/शिविर के माध्यम से भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही 37 योजनाओं का लाभ दिलाकर बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करने का कार्य कर रहा है।
उल्लेखनीय है कि आयोग के द्वारा अलग-अलग चरणों में इन ब्लॉकों और सीमावर्ती गांवो में बेंच/शिविर का आयोजन किया जाएगा। इस तिमाही में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना तथा तमिलनाड़ु में बेंच/शिविर का आयोजन किया जा रहा है तथा इसके उपरांत अन्य राज्यों के ब्लॉकों तथा सीमावर्ती गांवो में इसी तर्ज पर बेंच/शिविर का आयोजन किया जाएगा। इससे पहले आयोग द्वारा 55 आकांक्षी जिलों तथा 16 जनजातीय बहुल जिलों में बेंच/शिविर का आयोजन किया जा चुका है।
बेंच/शिविर के तहत ब्लॉक स्तर एवं ग्राम स्तर पर उपस्थित हितधारकों के साथ समीक्षा बैठक आयोजित की जाएगी। बच्चों सहित सभी व्यक्ति जो बाल अधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट करना चाहते हैं, को लिखित में जानकारी देने और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को अपनी शिकायत प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाएगा। इसी कड़ी में एक निर्धारित दिन बेंच/शिविर का आयोजन होगा जहां पर प्राप्त शिकायतों और आवेदन पर जिला प्रसाशन के साथ सुनवाई की जाएगी और उनका समाधान किया जाएगा। बच्चों से संबंधित अलग-अलग विषयों पर शिकायतों का निवारण बेंच/शिविर के दौरान किया जाएगा तथा यह सुनिश्चित किया जाएगा बेंच के दिन ही ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिकायतों का निवारण कर उनको वैधानिक और संवैधानिक अधिकार उनको मुहैया कराए जाए।
बेंच/शिविर की प्रक्रिया को सरलता से समझने के लिए सम्पूर्ण प्रक्रिया को दिवस-वार शिविर/पीठ विधियों को श्रेणीबद्ध किया गया है। इसके साथ ही आयोग के द्वारा इस पूरे आयोजन के लिए एक निर्देशिका बनाई गई है जिसमें बेंच/शिविर की पूरी योजना तथा रूपरेखा प्रस्तुत की गई है।
आयोग के बारे में: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, बाल अधिकार संरक्षण आयोग (सीपीसीआर) अधिनियम, 2005 की धारा-3 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है। आयोग को यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, किशोर न्याय अधिनियम, 2015 तथा निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 के उचित और प्रभावी क्रियान्वयन की निगरानी करने का कार्य सौंपा गया है। सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 13 के तहत आयोग को देश में बाल अधिकारों और संबंधित मामलों के रक्षण और संरक्षण के लिए अधिदेशित किया गया है। इसके साथ ही आयोग को सीपीसीआर अधिनियम, 2005 की धारा 14 के तहत धारा-13 (1)(जे) में निर्दिष्ट किसी विषय की जांच करते समय और विशिष्ट विषयों के संबंध में वह सभी शक्तियां प्राप्त हैं, जो सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को होती हैं।
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