राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 गुणवत्तापूर्ण एवं रोजगारोन्मुखी, जो भारत को वैश्विक महाशक्ति और आत्मनिर्भर बनाने में होगी सहायक: सुश्री उइके

राज्यपाल पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ विषय पर आयोजित वेबिनार में शामिल हुई

छत्तीसगढ़, 10 अक्टूबर।

‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’’ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने वाली नीति है। इसमें उनकी सोच समाहित है। यह संपूर्ण रूप से स्कूल शिक्षा एवं उच्च शिक्षा के मानकों को स्थापित करने वाली है, इसके प्रावधान उच्च शिक्षा में गुणवत्ता, स्वायत्ता एवं छात्रों को बेहतर विकल्प प्रदान करते हुए शोध में नवाचार लाने में सहायक होगी। इसमें मातृभाषा पर प्राथमिकता शिक्षा प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है, जो सराहनीय कदम है। यह बात राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके ने आज पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि 21वीं सदी में ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’’ विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण एवं रोजगारोन्मुखी शिक्षा प्रदान करने और भारत को वैश्विक महाशक्ति तथा आत्मनिर्भर भारत बनने में सहायक होगी।

राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा देश की प्रगति का आधार है। सभी को शिक्षा का अधिकार एवं शिक्षित समाज का निर्माण हमारी संवैधानिक ही नहीं नैतिक जिम्मेदार भी है। आजादी के बाद वर्ष 1968 में पहली शिक्षा नीति लागू की गई थी, जिसका दूसरा पड़ाव वर्ष 1986 में आया। नई शिक्षा नीति-2020 के रूप में हम एक ऐसा विजन देश के समक्ष लेकर आये हैं, जो एक नए भारत, शिक्षित एवं आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेगा।

राज्यपाल ने कहा कि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘शिक्षा से मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है। संपूर्ण विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए।’’ यही हमारी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का आधार भी है। उन्होंने कहा कि हर देश, अपनी शिक्षा व्यवस्था को अपने राष्ट्रीय मूल्यों के साथ जोड़ते हुए, अपने राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुसार सुधार करते हुए चलता है। भारत की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह सोच है। यह शिक्षा नीति, 21वीं सदी के नए भारत की नींव तैयार करने वाली है।

राज्यपाल ने कहा कि ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’’ उच्च शिक्षा को पूरी तरह बदलने वाली है। इसमें विद्यार्थियों को समग्र शिक्षा प्राप्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की जा रही है। विद्यार्थी अपनी पसंद के विषय का अध्ययन कर पाएंगे। उच्च शिक्षा में हो रहे विषयों के विखंडन को समाप्त करते हुए समस्त विश्वविद्यालयों को मल्टी-डिसि-प्लिनरी बनाने की योजना, इस नवीन शिक्षा नीति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। साथ ही इसमें नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापित किये जाने का प्रावधान रखा गया है। इससे हमारे उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्व के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के समकक्ष खड़ा किया जा सकेगा।

उन्होंने कहा कि नवीन शिक्षा नीति में शिक्षक को केन्द्र बिंदु मानते हुए शिक्षकों की भर्ती एवं उनके विकास पर विशेष कार्यक्रम तैयार किए गए हैं, जिससे शिक्षक को समाज के सबसे सम्मानित सदस्य के रूप में पुनः स्थापित किया जा सके।

राज्यपाल ने कहा कि शैक्षणिक स्तर पर किये गए कुछ प्रयोगों के आधार पर यह साबित हो चुकी है कि बच्चों के घर की बोली और स्कूल में पढ़ाई की भाषा एक ही होने से बच्चों के सीखने की गति बेहतर होती है। यही वजह है कि नई शिक्षा नीति में पांचवीं कक्षा तक बच्चों को उनकी मातृभाषा में ही पढ़ाने पर सहमति दी गई है। हमें यह भी प्रयास किया जाना चाहिए कि जनजाति क्षेत्रों में गोंडी, हल्बी, छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा तथा अन्य प्रदेशों की स्थानीय बोली-भाषाओं में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना चाहिए। साथ ही स्थानीय महापुरूषों और लोककथाओं को भी उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि अब शिक्षा में एक नया वैश्विक, मानक भी तय हो रहा है। इसके हिसाब से भारत का एजुकेशन सिस्टम में बदलाव हो, यह भी तय किया जाना बहुत जरूरी था। नई शिक्षा नीति में स्कूली पाठ्यक्रम के 10+2 ढांचे से आगे बढ़कर अब 5+3+3+4 पाठ्यक्रम का ढांचा देना, इसी दिशा में एक कदम है।

राज्यपाल ने सुझाव देते हुए कहा कि जनजातियों की भाषा जिसमें गोंडी भी शामिल है, उन्हें प्राथमिक स्तर के शिक्षा में शामिल किया जाना चाहिए, इससे जनजाति समाज और उनकी नई पीढ़ी अपनी भाषा-संस्कृति को समझ सकेंगे और उससे उपलब्ध ज्ञान को संरक्षित रख पाएंगे। उन्होंने कहा कि जहां पर जनजातियों की संख्या अधिक है, वहां पर स्थानीय स्तर पर जनजाति भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति करने और क्षेत्रीय जनजाति भाषा के शिक्षकों के लिए पद आरक्षित करने की आवश्यकता है। आदिवासी अंचलों में मल्टी-डिसिप्लिनरी एजुकेशन एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी प्राथमिकता के आधार पर प्रारंभ किया जाए, जिससे इन क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो सकेगा और आदिवासी युवाओं को बेहतर शिक्षण संस्थानों में अध्ययन करने का मौका मिल सकेगा।

कार्यक्रम को पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजकुमार एवं विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, अनुसंधान प्रोफेसर वी.आर. सिन्हा ने भी संबोधित किया। इस वेबिनार में प्रोफेसर प्रशांत गौतम, प्रो. हरिश कुमार सहित गणमान्य नागरिक शामिल हुए।

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