प्रकृति ज्ञान का भंडार है , प्रकृति हमारी परम्परायें हैं जो हमें जीने का रास्ता दिखाती है – राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
कुमार राकेश
नई दिल्ली,9 जुलाई। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लिखा है कि प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएँ कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं।
उनका मानना है कि प्रकृति ज्ञान का भंडार है। जीने का एक नज़रिया है। प्रकृति हमारी परम्परायें है जो हमें जीना सिखाती है।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार सुबह (8 जुलाई, 2024) पवित्र शहर पुरी के समुद्र तट पर कुछ समय बिताया। विश्व के सबसे बेहतरीन समुद्री तट के अद्भुत सौंदर्य को महसूस किया।जो महसूस किया , उन भावों को शब्दों के माध्यम से व्यक्त किया, जिससे हमारा समाज प्रकृति को लेकर और जागरूक हो सके ।
श्री भगवान जगन्नाथ की भक्त द्रौपदी मूर्मू ने वार्षिक रथ यात्रा में भाग लेने के लिए पुरी पधारी थी । उसके अगले दिन उन्होंने अपने कुछ पल प्रकृति के साथ बिताए और अपने उन अनुभव को शब्दों के ज़रिए उकेरा । राष्ट्रपति ने लिखा, “ऐसी जगहें हैं जो हमें जीवन का सार समझाती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि हम प्रकृति का हिस्सा हैं। पहाड़, जंगल, नदियाँ और समुद्र तट हमारे भीतर की किसी चीज़ को कुरेदते हैं हमें आकर्षित करते हैं।जब मैं समुद्र तट पर टहल रही थी, तो मुझे वातावरण से एक जुड़ाव सा महसूस हुआ। मध्यम हवा, लहरों के शोर और पानी के विशाल फैलाव विचारों में खो जाने वाला अनुभव था।”
उन्होंने आगे कहा, ” इससे मुझे एक गहन आंतरिक शांति मिली, जो मैंने कल महाप्रभु श्री जगन्नाथजी के दर्शन के समय भी महसूस की थी और ऐसा अनुभव करने वाली मैं अकेली नहीं हूँ; हम सभी को ऐसा महसूस हो सकता है जब हम किसी ऐसी चीज़ का सामना करते हैं जो हमसे कहीं बड़ी है, जो हमें सहारा देती है और हमारे जीवन को सार्थक बनाती है,असीम ऊर्जा प्रदान करती है ।
राष्ट्रपति ने फिर प्रकृति को मानव जाति के लिए अहमियत बताई। उन्होंने कहा,” रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम माँ के समान प्रकृति शक्ति से अपना संबंध खो देते हैं। खो रहे हैं। हमे त्वरित गति से सजग होने की आवश्यकता है ।
द्रौपदी मूर्मू के अनुसार -मानव जाति मानती है कि उसने प्रकृति पर कब्ज़ा कर लिया है और अपने अल्पकालिक लाभों के लिए इसका दोहन कर रही है। इसका नतीजा सभी देख सकते हैं। इस गर्मी में, भारत के कई हिस्सों में भीषण हीट वेव चली। हाल के वर्षों में हमने देखा कि दुनिया असामान्य मौसम की मार झेल रही है। हालात इशारा कर रहे हैं कि आने वाले दशकों में स्थिति और भी बदतर हो सकती है।”
इसके बाद राष्ट्रपति ने ग्लोबल वॉर्मिंग से होने वाले नुकसान का भी जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है, ” पृथ्वी की सतह का सत्तर प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा महासागरों से बना है, और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से वैश्विक समुद्र स्तर बढ़ रहा है, इससे तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा भी बढ़ा है। महासागर और वहां पाए जाने वाली वनस्पतियों और जीवों की समृद्ध विविधता को विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है।” “सौभाग्य से, प्रकृति की गोद में रहने वाले लोगों ने ऐसी परंपराएँ कायम रखी हैं जो हमें रास्ता दिखा सकती हैं। उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों के निवासी समुद्र की हवाओं और लहरों की भाषा जानते हैं। हमारे पूर्वजों का अनुसरण करते हुए, वे समुद्र को भगवान के रूप में पूजते हैं।”
अपने भावों को विराम देते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने लिखा है, “मेरा मानना है कि पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण की चुनौती का सामना करने के दो तरीके हैं; व्यापक कदम जो सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से उठाए जा सकते हैं, और छोटे, स्थानीय कदम जो हम नागरिकों के रूप में उठा सकते हैं। बेशक, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। आइए हम बेहतर कल के लिए व्यक्तिगत रूप से, स्थानीय स्तर पर जो कुछ भी कर सकते हैं, उसे करने का संकल्प लें। ”
राष्ट्रपति में अपने ये उद्गार सोशल मीडिया पोस्ट एक्स पर भी प्रकट किया है
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