रोडरेज केस में बढ़ी नवजोत सिंह सिद्धू की टेंशन, एससी ने फैसला सुरक्षित रखा

समग्र समाचार सेवा

नई दिल्ली26 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ 1988 के एक रोडरेज मामले में पुनर्विचार याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिका इस मामले में मारे गए गुरनाम सिंह के परिजनों ये याचिका दायर की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में नवजोत सिद्धू के तीन साल की सजा को 1000 रुपये के जुर्माने में बदल दिया था।

वकीलों ने कहा कि उनका इरादा हत्या करने का नहीं था

जस्टिस एएम खानविल्कर की पीठ के समक्ष सिद्धू के वकीलों ने कहा कि उनका इरादा हत्या करने का नहीं था। यह झगड़ा गाड़ी पार्क करने को लेकर हुआ था, जिसमें हाथापाई में गुरनमा सिंह के चेाट लग गई और बाद में उनकी मृत्यु हो गई थी। याचिका में कहा गया कि घटना के 38 साल बाद अब सजा बढ़ाने पर की मांग करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। कोर्ट को इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए। सिद्धू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता व कांग्रेस सांसद एएम सिंघवी और आर वसंत पेश हुए।

सिद्धू इस मामले में चार साल तक पेश नहीं हुए थे

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू से कहा कि 1988 के रोड रेज मामले में समीक्षा याचिकाओं के समय पर सवाल उठाना उचित नहीं था। आपको बता दें कि सिद्धू इस मामले में चार साल तक पेश नहीं हुए थे। सितंबर 2018 में पीड़ितों द्वारा दायर की गई समीक्षा याचिका पर पहली बार नोटिस जारी किया गया था। पीठ ने कहा, ”इस मामले का चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है। जब आप नोटिस जारी होने के बावजूद हाजिर नहीं होते हैं तो आपकी ओर से टिप्पणी करना उचित नहीं है।”

सिद्धू बोले-नोटिस का दायरा बढ़ाने की मांग प्रक्रिया का दुरुपयोग

सिद्धू ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने की मांग करने वाली याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है। सुनवाई के दौरान कांग्रेस नेता की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने पीठ से कहा, “यह नकारात्मक अर्थों में एक असाधारण मामला है, जो आपके विचार करने लायक नहीं है, क्योंकि इसके आपराधिक न्याय की बुनियादी नींव को नुकसान पहुंचाने की क्षमता है और इसलिए यह प्रक्रिया का दुरुपयोग भी है।”

2018 में सिद्धू को ठहराया गया दोषी

इस मामले में शीर्ष अदालत ने मई 2018 में सिद्धू को 65 वर्षीय बुजुर्ग को ‘स्वेच्छा से चोट पहुंचाने’ के अपराध का दोषी ठहराया था। हालांकि, उसने सिद्धू को जेल की सजा नहीं सुनाई थी और उन पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति एसके कौल की पीठ ने पहले सिद्धू से उस याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा था, जिसमें कहा गया है कि मामले में उनकी सजा केवल स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए नहीं होनी चाहिए थी।

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