संसाधन दक्षता, टिकाऊ इस्पात उद्योग और आत्मनिर्भरता के लिए कोकिंग कोयला खनन एवं वॉशिंग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास व निवेश की आवश्यकता- फग्गन सिंह कुलस्ते

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27जुलाई। इस्पात और ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि बीएफ-बीओएफ रूट से इस्पात उत्पादन के लिए आवश्यक दो महत्वपूर्ण कच्चे माल लौह अयस्क और कोकिंग कोल में से भारत लौह अयस्क के मामले में आत्मनिर्भर है, जबकि हमारे देश ने 120 मिलियन टन स्टील के हिस्से के उत्पादन के लिए इस्पात उद्योग के बीएफ-बीओएफ के हिस्सों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्त वर्ष 2021-22 में लगभग 57 मिलियन टन कोकिंग कोयले का आयात किया।

मेटालॉजिक पीएमएस द्वारा आज यहां आयोजित “मेटलर्जिकल कोल, कोक और ब्लास्ट फर्नेस” के विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए फग्गन सिंह कुलस्ते ने कहा कि देश में कोकिंग कोल के खनन और वॉशिंग टेक्नोलॉजीज के विकास व इस्पात उद्योग की जरूरतों के साथ तालमेल नहीं है। उन्होंने कहा कि अपने देश में कम मात्रा में कोकिंग कोल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए, कोकिंग कोल के आयात की मात्रा में वृद्धि जारी रहेगी, क्योंकि देश की इस्पात उत्पादन क्षमता 2030-31 तक 30 करोड़ टन तक पहुंचने का लक्ष्य है।

यह महत्वपूर्ण है कि सभी संबंधित एजेंसियां नवीनतम तकनीकों को अपनाकर घरेलू उत्पादन को अधिकतम करने पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि देश के पास लगभग 34 बिलियन टन कोकिंग कोल का संसाधन है, जिसमें से लगभग 18 बिलियन टन पहले ही प्रमाणित हो चुका है, खनन और वॉशिंग के संदर्भ में प्रौद्योगिकी का विकास होने से देश को आत्मनिर्भर बनाने के अलावा रोजगार के विशाल अवसर भी पैदा करने और शहरी, अर्ध-शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के विकास की प्रक्रिया को तेज करने में भी मदद मिल सकती है।

कुलस्ते ने कहा कि हालांकि भारत 51 मिलियन टन से अधिक कोकिंग कोल का उत्पादन कर रहा है, लेकिन राख की अधिक मात्रा होने से उत्पन्न तकनीकी बाधाओं के कारण मौजूदा कोल वाशरीज में कम उत्पादन होने से इस्पात उद्योग द्वारा द्वारा धुले हुए कोकिंग कोल के रूप में इसका इस्तेमाल काफी सीमित है। बिजली संयंत्रों द्वारा इस कोकिंग कोल का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि कोकिंग कोल में राख की मात्रा की खपत और ब्लास्ट फर्नेस के प्रदर्शन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, इसलिए हमें प्रौद्योगिकी को उन्नत करने की आवश्यकता है।

देश के लिए इस्पात की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वदेशी कोकिंग कोयला खनन और वॉशिंग टेक्नोलॉजीज के विकास में निवेश करना समय की आवश्यकता है, क्योंकि भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और बुनियादी ढांचे, मशीनरी, रेलवे, आवास और कई अन्य क्षेत्रों में निरंतर निवेश किया जा रहा है।

राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017 में पर्यावरण और स्थिरता पर विश्व के सर्वोत्तम तौर-तरीकों के अनुपालन में विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी भारतीय इस्पात उद्योग की परिकल्पना की गई है। श्री कुलस्ते ने कहा कि हमें यह याद रखने की जरूरत है कि स्टील अब तक सबसे महत्वपूर्ण, अनेक रूपों में इस्तेमाल होने वाली और सबसे अधिक अपनाने योग्य मैटेरियल है।

विकास के साथ-साथ, पर्यावरणीय स्थिरता की चुनौतियां भी बनी हुई हैं और इसलिए, कार्बन से मुक्त और पर्यावरण प्रबंधन की दिशा में समाधान व प्रयास उद्योग को आगे बढ़ाने वाली पहल के प्रमुख कारक होंगे। उन्होंने उद्योग-अनुसंधान संस्थानों के बीच मजबूत साझेदारी पर जोर देते हुए कहा कि शिक्षाविद इस दिशा में मदद कर सकते हैं।

फग्गन सिंह कुलस्ते ने सुझाव देते हुए कहा कि कोकिंग कोल के घरेलू भंडार के दोहन के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को विकसित करना सभी हितधारकों की दोहरी जिम्मेदारी है और साथ ही, संसाधन की दक्षता पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है, इसके लिए प्रभावी संसाधन का इस्तेमाल सुनिश्चित करके प्रकृति पर बोझ को कम करना, एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था और इस प्रकार कार्बन उत्सर्जन को कम करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि इस्पात मंत्रालय इस प्रयास में उद्योग को आवश्यक सहायता प्रदान करेगा।

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