नीडोनॉमिक्स नैतिक अनुसंधान और सतत विकास की कुंजी है: यूजीसी-एमएमटीटीसी, एचपीयू शिमला में प्रो. एम.एम. गोयल ने कहा

समग्र समाचार सेवा,

शिमला, 4 जून: “नीडोनॉमिक्स सरलता, प्रामाणिकता और आवश्यकता-आधारित सिद्धांतों को बढ़ावा देता है, जो विद्वतापूर्ण अनुसंधान में ईमानदारी की पुनःस्थापना हेतु अत्यंत आवश्यक हैं,” यह कहना है प्रो. मदन मोहन गोयल का, जो तीन बार कुलपति रह चुके हैं और नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक हैं। वे हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में यूजीसी-एमएमटीटीसी द्वारा आयोजित आरसी-354 कार्यक्रम शोध पद्धति एवं प्रकाशन नैतिकता” में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। वर्तमान में प्रो. एम.एम.  गोयल भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला में विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।

उनके व्याख्यान का विषय था क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नीडोनॉमिक्स में शोध पद्धति”, जिसकी अध्यक्षता एमएमटीटीसी के निदेशक प्रो. डी.एस. ठाकुर ने की, जबकि कार्यक्रम समन्वयक डॉ. अश्विनी शर्मा ने स्वागत भाषण दिया और प्रो. गोयल के शैक्षणिक योगदानों को रेखांकित किया।

प्रो. गोयल ने शोध और लेखन में नैतिकता पर जोर देते हुए “प्रकाशित करो या समाप्त हो जाओ” की मानसिकता से “उद्देश्यपूर्ण प्रकाशन” की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जो नीडोनॉमिक्स के मूलमंत्र के अनुरूप है।

उन्होंने शोधकर्ताओं से सामाजिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देने, मौलिकता बनाए रखने और नैतिक व समावेशी अनुसंधान प्रथाओं के माध्यम से वैश्विक ज्ञान-संतुलन को बढ़ावा देने की अपील की।

प्रो. गोयल ने समझाया कि नीडोनॉमिक्स (आवश्यकताओं का अर्थशास्त्र)  संसाधनों के नैतिक और सतत प्रबंधन को बढ़ावा देता है, जो लाभ-केंद्रित आर्थिक मॉडल से भिन्न है। यह वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देता है और अपव्यय व पर्यावरणीय क्षति को कम करने पर केंद्रित है। यह सामान्यबुद्धि आधारित नैतिकता पर आधारित है और भगवद गीता के श्लोक “योगक्षेमं वहाम्यहम्” से प्रेरित है। इसमें नीडो-जीवनशैली की बात की गई है, जिसमें नीडो-उपभोग, नीडो-बचत, नीडो-उत्पादन, नीडो-निवेश, नीडो-व्यापार, नीडो-परोपकार और नीडो- वितरण के सिद्धांत  शामिल हैं।

प्रो. गोयल ने नीतिगत रूप से प्रासंगिक बहुविषयी शोध को प्रोत्साहित करने के लिए नीडोनॉमिक्स पर आधारित अनुभवजन्य अध्ययनों हेतु एक सशक्त शोध पद्धति की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने शोध सारांशों में स्पष्ट नीतिगत निष्कर्ष लिखने की सलाह दी और नैतिक लेखन को केवल एक तकनीकी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य बताया।

प्रो. गोयल का मत था कि जैसे-जैसे वैश्विक चुनौतियाँ तीव्र होती जा रही हैं, नीडोनॉमिक्स सतत विकास और न्यायसंगत प्रगति के लिए एक मार्गदर्शक ढांचा प्रदान करता है, जो  शोध में स्पष्टता, उद्देश्य और नैतिक आधार की आवश्यकता को सुदृढ़ करता है।

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