NISAR सैटेलाइट मिशन पहुंचा ‘कमीशनिंग फेज’ में, NASA-ISRO की ऐतिहासिक साझेदारी से बदल जाएगी पृथ्वी की

समग्र समाचार सेवा
श्रीहरिकोटा, 01 अगस्त: पृथ्वी की निगरानी तकनीक में नया अध्याय जोड़ते हुए, भारत और अमेरिका के साझा NISAR सैटेलाइट मिशन ने लॉन्च के बाद अब अपने सबसे महत्वपूर्ण चरण—90 दिनों के ‘कमीशनिंग फेज’—में प्रवेश कर लिया है।

30 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से GSLV-F16 रॉकेट द्वारा सफलतापूर्वक लॉन्च किए गए इस मिशन को भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO और अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA के बीच एक ऐतिहासिक सहयोग के रूप में देखा जा रहा है।

अब शुरू होगा असली परीक्षण

इस 90-दिन के दौर में सैटेलाइट के सभी तकनीकी उपकरणों की गहन जांच की जाएगी। इसमें रडार सिस्टम का कैलिब्रेशन, उपकरणों की संवेदनशीलता का मूल्यांकन, और कक्षा में आवश्यक समायोजन किए जाएंगे, ताकि यह सैटेलाइट पूरी तरह कार्यशील होकर धरती की निगरानी कर सके।

NASA के प्रोग्राम मैनेजर जेराल्ड डब्ल्यू बॉडन ने बताया कि “सभी प्रणालियों की सूक्ष्म निगरानी की जा रही है। यह केवल एक तकनीकी मिशन नहीं है, बल्कि यह पृथ्वी पर हो रहे परिवर्तनों को समझने की दिशा में एक वैश्विक प्रयास है।”

क्या है NISAR की खासियत?

NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) एक रडार इमेजिंग सैटेलाइट है, जो दिन-रात और किसी भी मौसम में पृथ्वी की सतह की सटीक निगरानी करने में सक्षम है।
इसकी प्रमुख विशेषताएं:

  • भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं की प्रारंभिक जानकारी देगा।
  • पर्यावरणीय बदलाव, ग्लेशियर पिघलने और समुद्री सतह के उतार-चढ़ाव की निगरानी करेगा।
  • उच्च रेज़ोल्यूशन में समय-समय पर पृथ्वी की तस्वीरें प्रदान करेगा।

भारत-अमेरिका की विज्ञान साझेदारी का प्रतीक

NISAR मिशन न केवल पृथ्वी विज्ञान की दिशा में एक तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि यह भारत और अमेरिका के बीच वैज्ञानिक सहयोग की एक मजबूत मिसाल भी है। इस मिशन के माध्यम से दोनों देश न केवल प्राकृतिक आपदाओं से बेहतर निपट सकेंगे, बल्कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय खतरों की वैश्विक चेतावनी प्रणाली में भी सुधार आएगा।

NISAR मिशन आने वाले वर्षों में पृथ्वी पर हो रहे सूक्ष्म परिवर्तनों को रिकॉर्ड करने में अहम भूमिका निभाएगा। इसका कमीशनिंग फेज अगर सफल रहता है, तो यह सैटेलाइट न केवल वैज्ञानिकों के लिए एक नई क्रांति लाएगा, बल्कि करोड़ों लोगों की जान और माल की सुरक्षा में भी सहायक होगा।

भारत और अमेरिका की यह साझेदारी दर्शाती है कि स्पेस टेक्नोलॉजी केवल खोज का माध्यम नहीं, बल्कि मानवता की रक्षा का भी साधन बन सकती है।

 

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