बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक, आंगनबाड़ी सेविकाओं का बढ़ा मानदेय

समग्र समाचार सेवा
पटना, 9 सितंबर: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल तेज़ हो गई है। एनडीए और महागठबंधन दोनों गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर चर्चा जारी है। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं और ग्रामीण वोटरों को साधने के लिए बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाने की घोषणा कर चुनावी रणनीति में नया मोड़ ला दिया है।

आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को मिलेगा सीधा लाभ

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बिहार में इस समय लगभग 1.15 लाख आंगनबाड़ी केंद्र सक्रिय हैं। इनमें 1.2 लाख से अधिक आंगनबाड़ी सेविकाएं कार्यरत हैं। नीतीश सरकार के इस फैसले से लगभग 2.10 लाख सेविकाओं और सहायिकाओं को सीधा फायदा मिलेगा। यह आंकड़ा मतदाताओं की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

ग्रामीण इलाकों में बढ़ेगी पकड़

आंगनबाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं मुख्यतः ग्रामीण इलाकों में कार्यरत हैं और वहां महिलाओं और बच्चों तक सरकारी योजनाओं को पहुंचाने का जिम्मा निभाती हैं। जानकारों का मानना है कि मानदेय बढ़ने से उनका मनोबल और बढ़ेगा और वे योजनाओं को और मजबूती से लागू कर सकेंगी। इससे महिलाओं और ग्रामीण मतदाताओं के बीच सरकार की सकारात्मक छवि बनेगी।

महिला सशक्तिकरण पर नीतीश का फोकस

नीतीश कुमार 2005 में पहली बार सत्ता में आए थे और तभी से उन्होंने महिला सशक्तिकरण को अपनी राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बनाया। हाल ही में उन्होंने महिलाओं के लिए “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना” की शुरुआत की, जिसके तहत महिलाओं को अपना काम शुरू करने के लिए 10,000 रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं के लिए “पिंक बस” सेवा शुरू की और अब आंगनबाड़ी सेविकाओं का मानदेय बढ़ाकर बड़ा चुनावी संदेश दिया है।

चुनावी समीकरण पर असर

राजनीतिक विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार भारती का कहना है कि नीतीश कुमार की इन योजनाओं का सीधा असर चुनावी समीकरणों पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि “बिहार की महिलाएं आज भी लालू यादव के दौर को याद करती हैं, जब घर से बाहर निकलना मुश्किल था। नीतीश कुमार के आने के बाद स्थितियां बदली हैं। आज महिलाएं रोजगार कर रही हैं और सरकार की योजनाओं से सीधे लाभान्वित हो रही हैं।”

नीतीश कुमार का यह फैसला न केवल महिला सशक्तिकरण का संदेश देता है, बल्कि चुनाव से पहले एनडीए के लिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार करने की रणनीति भी है। अब देखना होगा कि महागठबंधन इस दांव का जवाब कैसे देता है।

 

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