शोरगुल से पहले निष्क्षिप्त मौनव्रत: शशि थरूर बच गए पहलगाम बहस से

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 28 जुलाई: संसद के मानसून सत्र में सोमवार (28 जुलाई, 2025) को पहलगाम अग्निकांड और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहुप्रतीक्षित बहस की शुरुआत होनी थी, लेकिन जैसे ही लोकसभा में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बोलने के लिए उठें, विपक्षी दलों ने नारेबाजी शुरू कर दी। इस बीच अशांत माहौल को देखते हुए कार्यवाही 1 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई। इस नाटकीय रूप के बीच भारतीय राजनीति में शशि थरूर की मौन टिप्पणी ने ध्यान खींचा।

जब मीडिया ने थरूर से पूछा कि वह बहस के दौरान क्या भूमिका निभाएंगे, तो उन्होंने केवल दो शब्दों में जवाब दिया— “मौनव्रत… मौनव्रत”। यह प्रतीकात्मक और संक्षिप्त उत्तर सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपने सांसदों को इस बहस में सक्रिय भागीदारी के लिए तीन दिनों तक सदन में रहने की व्हिप जारी की है, जिससे यह बहस पार्टी की रणनीतिक प्राथमिकता बन गई।

हालांकि भाजपा और विपक्ष दोनों ने पहलगाम हमले जैसे राष्ट्रीय संकट पर एकजुटता का संकेत दिया था, इसके बावजूद कांग्रेस ने इस बहस में गठित छह नेताओं की सूची में शशि थरूर का नाम शामिल नहीं किया। जो छह नेता बहस की बागडोर संभालेंगे, उनमें गौरव गोगोई, प्रियंका गांधी वाड्रा, दीपेंद्र हुड्डा, प्रणीति एस. शिंदे, सप्तगिरि उलाका और बिजेंद्र एस. ओला शामिल हैं।

इस निर्णय ने पार्टी के भीतर थरूर और उच्च कमान के बीच कथित असहजता की आशंका को बल दिया है। हालांकि थरूर ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि उनकी कुछ विचारधाराएँ पार्टी लाइन से अलग हो सकती हैं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके पूर्व वे Operation Sindoor की जानकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने वाले विशेष भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी कर चुके हैं।

अब राजनीतिक विश्लेषक यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या शशि थरूर के विरुद्ध यह एक ठोस संकेत था कि पार्टी नेतृत्व असमर्थ प्रमुख को आगे नहीं लाना चाहता? उनके दो शब्दों में दी गई टिप्पणी—”मौनव्रत”—प्रधानमंत्री की सराहना करने वाले, अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर चुके इस सांसद की हाशिए पर खिसकने का संकेत भी हो सकता है।

निष्कर्ष: मौन रहना भी संदेश देता है। थरूर की मौनव्रत टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया कि संसद की चर्चाओं में शामिल नहीं होना भी अपनी धरना — कहीं अपेक्षित भूमिकाओं को न निभा पाने का विवेकपूर्ण संकेत हो सकता है। यह पल भारत के लोकतंत्र में बहस, नेतृत्व और दल गणित के परस्पर प्रभाव को दर्शाता है।

 

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