अब शुद्ध बिजनेस कुछ भी नहीं, सबकुछ पर्सनल भी है… US-चीन टैरिफ वॉर में इंडिया फैक्टर पर बोले जयशंकर
नई दिल्ली – “अब शुद्ध बिजनेस कुछ भी नहीं है, सब कुछ पर्सनल भी है।” यह बयान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर दिया, जहां वह वैश्विक व्यापार, कूटनीति और भू-राजनीति के बदलते समीकरणों पर बात कर रहे थे। उनका यह बयान अमेरिका और चीन के बीच जारी टैरिफ वॉर (शुल्क युद्ध) की पृष्ठभूमि में भारत की भूमिका को लेकर आया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर गहरा असर डाला है।
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि बीते वर्षों में वैश्विक व्यापार की परिभाषा और उसकी प्रकृति तेजी से बदली है। अब यह केवल आर्थिक हितों तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि इसमें रणनीतिक सोच, सुरक्षा मुद्दे और राजनीतिक समीकरण भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। “जब कोई देश दूसरे पर शुल्क लगाता है, तो यह केवल ट्रेड डिसिजन नहीं होता, इसके पीछे व्यापक रणनीतिक सोच होती है,” उन्होंने कहा।
जयशंकर ने यह भी संकेत दिया कि भारत अब केवल एक ‘बाजार’ नहीं है, बल्कि एक ‘निर्माण केंद्र’ और ‘नीतिगत विकल्प’ के रूप में उभर रहा है। चीन पर अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और शुल्कों के चलते कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र की तलाश में भारत की ओर रुख कर रही हैं।
“भारत न केवल लो-कॉस्ट मैन्युफैक्चरिंग का विकल्प है, बल्कि एक विश्वसनीय और लोकतांत्रिक साथी भी है,” उन्होंने जोर देते हुए कहा। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत अब किसी भी भू-राजनीतिक तनाव में केवल दर्शक नहीं, बल्कि एक सक्रिय और निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका और चीन के बीच तकनीकी और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा चरम पर है। अमेरिका द्वारा चीनी टेक्नोलॉजी कंपनियों पर पाबंदी लगाना, सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर नियंत्रण की कोशिशें और दक्षिण चीन सागर में तनाव — यह सब मिलकर वैश्विक व्यापार को प्रभावित कर रहे हैं।
“अब किसी भी निर्णय को केवल आर्थिक नजरिए से देखना पर्याप्त नहीं है। आज के दौर में हर बड़ा व्यापारिक कदम एक कूटनीतिक संदेश भी होता है,” जयशंकर ने कहा।
विदेश मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत न तो किसी एक ध्रुव की तरफ झुका है और न ही किसी के दबाव में है। “हम अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं। चाहे वह अमेरिका हो, यूरोप, रूस या चीन — भारत का दृष्टिकोण स्वतंत्र और संतुलित रहेगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत का लक्ष्य ‘विश्वसनीय भागीदार’ बनना है — ऐसा देश जिस पर संकट के समय भरोसा किया जा सके, और जो अपने सहयोगियों के साथ पारदर्शिता और स्थायित्व बनाए रखे।
एस. जयशंकर का यह बयान एक ऐसे यथार्थ को सामने लाता है जिसे वैश्विक समुदाय अब स्वीकार कर रहा है — कि वैश्विक व्यापार अब केवल आर्थिक गतिविधि नहीं, बल्कि रणनीतिक चाल बन चुका है। इस बदलते परिदृश्य में भारत की भूमिका केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अवसर बनती जा रही है — और यह अवसर तभी सार्थक होगा जब नीति, निवेश और नवाचार तीनों में संतुलन स्थापित किया जाए।
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