ओडिशा रेल भिड़ंत: दुर्घटना या षडयंत्र?

आलोक लाहड 
  आलोक लाहड 

ओडिशा रेल भिड़ंत: दुर्घटना या षडयंत्र?

आलोक लाहड 

ओडिशा के बालासोर में हुई रेल दुर्घटना अत्यंत हृदय विदारक है और इस परिस्थिति में देश और नागरिक सभी एकजुट होकर इससे बाहर निकलने का पूरा प्रयस कर रहे हैं. पर ऐसी दुःख भरी घड़ी में भी विपक्षी दलों की राजनीति और तीष्ण बातें मानवता को शर्मसार करती नज़र आ रही हैं.

घटनास्थल का दौरा करने पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये कहना कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा इस बात की ओर इशारा करता है कि ये दुर्घटना नहीं  बल्कि कोई साजिश भी हो सकती है. रेल मंत्री द्वारा घटना की सीबीआई जांच की मांग भी इसी साजिश का पर्दाफाश करने की ओर बढ़ा सटीक कदम है.

अपने सभी पूर्व निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दुर्घटना स्थल पर पहुंचे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अस्पताल में घायल नागरिकों से बात की और कहा,  “मेरे पास इस वेदना को प्रकट करने के लिए शब्द नहीं है, लेकिन परमात्मा हम सबको शक्ति दे कि जल्द से जल्द हम इस दुख की घड़ी से निकलें।”

प्रधानमंत्री ने कहा, “दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा

इस दौरान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव भी उनके साथ थे। उन्होंने मृतकों के परिवारों को दस लाख रुपये, और गंभीर रूप से घायलों को 200,000 रुपये, मामूली चोटों लगने वालों को  50,000 रुपये क्षतिपूर्ति के रूप में देने की घोषणा की।

दुर्घटना स्थल का निरीक्षण करने के बाद वैष्णव ने संवाददाताओं से कहा, “यह एक बड़ी, दुखद दुर्घटना है।” “हमारा पूरा ध्यान बचाव और राहत अभियान पर है, और हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि घायलों को हर संभव बेहतर इलाज मिले।”

ओडिशा सरकार तथा स्थानीय लोगों ने भी जिस प्रकार पीड़ितों की मदद की वह सराहनीय है। रक्तदान करने वाले लोगों की भी एक लंबी पंक्ति थी जी इस मानव त्रासदी के पीछे भारत के मानवीय मूल्य दर्शाता है। रेल मंत्री ने प्रधान मंत्री को स्थिति पर विस्तृत जानकारी दी। रेल मंत्री ने बताया कि रेल सुरक्षा आयुक्त घटना की एक स्वतंत्र जांच करेंगे। जांच का नेतृत्व ए एम चौधरी, कमिश्नर रेलवे सेफ्टी, साउथ ईस्ट सर्कल करेंगे।

इस के पश्चात प्रधान मंत्री ने एक वाक्य कहा जो इस मानवीय त्रासदी के कुछ आगे सोचने के लिए सोचने पर विवश करता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “किसी को बख्शा नहीं जाएगा” प्रधान मंत्री ने ऐसा क्यों कहा?  क्या हमें पंक्तियों के बीच पढ़ने की आवश्यकता है? कुछ समय से देश में कुछ ऐसी  घटनाएं हो रही हैं जो  हमे ऐसा सोचने पर विवश करती है।

इस रेल हादसे को दुर्घटना न मान के साजिश या षणयंत्र कहने से पहले बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं जिन्हें जानना और समझना बहुत ज़रूरी है.

केरल में त्रिची से २१ किमी दूर समयपुरम में किसी शरारती तत्व ने रेल लाइन पर ट्रक के दो टायर इस मंशा से रखे कि रेल को पटरी से उतर दिया जाए। इंजन चालक की सावधानी के कारण उसने समय पर ब्रेक लगा दिया और दुर्घटना टल गई।

मई माह में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी तथा अन्य खुफिया एजेंसियों ने अलर्ट जारी करते हुए कहा था कि पाकिस्तान की इंटर- सर्विसेज इंटेलिजेंस ने पंजाब और उसके आसपास के राज्यों में रेल की पटरियों को क्षति पहुंचाने की योजना बनाई है। इस योजना के अनुसार मालगाड़ियों को टक्कर देने के लिए कुछ भी किया जा सकता है। इस संभव बनाने के लिए बड़े स्तर पर पैसा दे कर भारत में उपस्थित पाकिस्तान के स्लीपर सेल को कार्यान्वित किया जा रहा है।

आरोपी शाहरुख सैफी ने अलप्पुझा-कन्नूर एग्जीक्यूटिव एक्सप्रेस में रविवार रात करीब 9:45 बजे एक सह- यात्री पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर कथित तौर पर आग लगा दी।  आरोपी शाहरुख सैफी ने अलप्पुझा-कन्नूर एक्जीक्यूटिव एक्सप्रेस पर रविवार रात लगभग 9:45 बजे एक सह-यात्री पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर आग लगा दी, जब ट्रेन कोझिकोड शहर को पार करने के बाद कोरापुझा रेलवे पुल पर पहुंची। इस दौरान आठ अन्य यात्री घायल हो गए।

इस प्रकार एक दुर्घटना तेल डिपो के पांच सौ मीटर पर ही रेल में आग लगा दी गई।

एनएसए ने दो आईएसआई के एजेंट भी पकड़े थे जिन्होंने यह उगला था की उन्हें रेल के ताने बाने को लक्ष्य बनाने के निर्देश थे।  तो हमें इस दृष्टिकोण से भी सतर्क रहना पड़ेगा।

टक्कर के एकदम बाद बहुत से राज नेताओं के वक्तव्य आने शुरू हो गए। किसी ने कहा हमे बुलेट ट्रेन नहीं सुरक्षित रेल गाड़ी चाहिए।  कवच प्रणाली को केवल 2% गाड़ियों में ही लगाया गया है, इत्यादि।

कवच ने काम क्यों नहीं किया?

कवच एक बहुत ही उन्नत प्रकार की सुरक्षा प्रणाली है जिस के प्रयोग से आमने सामने का गई रेलगाड़ी में स्वयं ब्रेक लग जाएगी।  इस प्रणाली का शोध एवं उत्पादन भारत में ही हुआ है। इसे धीरे धीरे सभी गाड़ियों में लगाने का लक्ष्य भी है और लगभग २% रेलगाड़ियों मैं इसे लगा भी दिया गया है। ओडिशा की रेल दुर्घटना के बाद एक ऐसा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जा रही है मानो अभी तक सरकार झूठ बोल रही थी। यह सच नहीं है। काम हुआ है और उन्नत स्तर का काम हुआ है। किंतु भारतीय रेल दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तंत्र है और एकदम से इसका आधुनिकीकरण संभव नहीं। इसमें कुछ समय तो लगेगा।

रेलगाड़ियों की दुर्घटनाओं में कमी आई है इसमें कोई संदेह नहीं।  किंतु अब सरकार को नीचा दिखाने के लिए भारत में विकसित कवच प्रणाली को ही गाली दी जा रही है। यह भारत के वैज्ञानिकों का अपमान है। कवच भारत में ही विकसित एक दुर्घटना रोकने की आधुनिक प्रणाली है जो यूरोप की टेक्नोलॉजी से अधिक सक्षम है और सस्ती भी।

कवच के काम करने का लाइव प्रदर्शन 4 मार्च, 2022 को सिकंदराबाद मंडल के गुल्लागुडा और चित्गिद्दा रेलवे स्टेशनों के बीच हुआ।  भारतीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव एक रेल इंजन में एक दिशा में यात्रा कर रहे थे, जबकि विनय कुमार त्रिपाठी, अध्यक्ष और सीईओ, रेलवे बोर्ड उसी लाइन पर विपरीत दिशा में एक अन्य इंजन में यात्रा कर रहे थे। कवच प्रणाली ने एक ही लाइन पर दो रेलगाड़ियों होने का पता लगाने पर, स्वचालित रूप से ब्रेक लगाए, इस प्रकार टकराव से बचा गया। मतलब मंत्री जी तथा उच्च अधिकारी ने अपनी जान जोखिम में डाल कर इस प्रणाली की परीक्षा ली और इसे उतीर्ण पाया।

तुरंत इस प्रणाली को प्रयोग में लाने के लिए निर्देश दे दिए गए। 13 महीनों के अल्प समय में ही कवच को 65 लोकोमोटिव,  1445 किमी मार्ग और 134 स्टेशनों पर दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र में लागू किया गया है, जबकि 1200 किमी पर कार्यान्वयन चल रहा है। नई दिल्ली-मुंबई मुख्य लाइन और हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन के 3000 किमी मार्ग पर लागू होने से पहले कवच स्वचालित सुरक्षा प्रणाली को 160 किमी प्रति घंटे की शीर्ष गति को संभालने के लिए अपग्रेड किया जा रहा है।

वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के केंद्रीय बजट ने 2000 किमी ट्रैक पर कवच प्रणाली के त्वरित कार्यान्वयन के लिए धन आवंटित किया, और स्वर्णिम चतुर्भुज रेल मार्ग के 34,000 किमी ट्रैक पर कार्यान्वयन को मंजूरी दी। यह नव निर्मित WAG-9HH कवच स्वचालित सुरक्षा प्रणाली से लैस होगा, इन लोकोमोटिव को 120 किमी प्रति घंटे की शीर्ष गति के लिए डिज़ाइन किया गया है।  भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क में से एक है, जिसमें 67,368 किमी के मार्ग पर 1,21,407 किमी ट्रैक की लंबाई शामिल है। वित्तीय वर्ष 2022 में, भारतीय रेलवे के कुल बेड़े की संख्या में वृद्धि देखी गई और यह 13,215 इकाइयों तक पहुंच गई।

जहां डीजल इंजनों की संख्या घट रही थी, वहीं बिजली के इंजनों की संख्या बढ़ती जा रही थी। अब इतने बड़े तंत्र में कवच लगाने मैं कुछ समय तो लगेगा ही। किंतु कुछ एजेंडा ग्रसित पत्रकार यह दिखाना चाह रहे हैं कि जिस दिन रेल मंत्री ने कवच के बारे में बयान दिया उसी दिन पूरे भारत के रेल तंत्र में इसे लगा भी दिया गया।

प्रोटोटाइप से औद्योगिक उत्पादन तक का सफर

1999 में जैसल में रेल दुर्घटना हुई थी जिस मैं 300 लोगों की मृत्यु हो गई थी। ऐसा एक दस्तावेज है की कोंकण रेलवे ने 1999 में रेल दुर्घटना को रोकने का एक प्रोटोटाइप बनाया था। यदि यह सच है तो इस पर कोई काम नहीं हुआ। भारत की अपनी स्वचालित सुरक्षा प्रणाली या टकराव से बचाव प्रणाली का विकास 2012 में शुरू हुआ।

इस परियोजना का नाम ट्रेन टक्कर बचाव प्रणाली (TCAS) था। यह प्रणाली कवच के नाम से अधिक प्रचलित है। कवच प्रणाली को शून्य दुर्घटना प्राप्त करने के लिए भारतीय रेलवे के लक्ष्य के हिस्से के रूप में विकसित किया गया है। पहला क्षेत्र परीक्षण 2016 में किया गया था और इस प्रक्रिया के साथ, मार्च 2017 तक कवच के प्रारंभिक विनिर्देशों को तैयार किया गया था। बाद के वर्षों में कवच का परीक्षण एक स्वतंत्र तृतीय पक्ष मूल्यांकनकर्ता द्वारा किया गया था। इसी के बाद ही इसका औद्योगिक उत्पादन आरंभ हुआ।

यदि 1999 में कवच का प्रोटोटाइप बन गया था तो अभी तक इसे लगाया क्यों नही गया?

बहुत ही दिग्गज नेता रेल मंत्री रहे जिनमे से कुछ नाम हैं: नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव, दिनेश त्रिवेदी और मल्लिकार्जुन खड़गे आदि। इतने साल से एक प्रणाली इस देश में उपस्थित है तो इस का प्रयोग क्यों नही किया गया? दुर्घटना का उत्तरदायित्व इन नेताओं पर भी जाना चाहिए।

अभी तक भारतीय रेल ऐसा मंत्रालय था जिस में प्रति वर्ष करोड़ों रुपए का घाटा होता था। नेता जी के निर्णय पर अपने निर्वाचन क्षेत्र की तक गरीब रथ चलाए जाते रहे हैं और कुल्हड़ में चाय को ही विस्तार माना गया है।

वहां पीयूष गोयल जी तथा अश्विनी वैष्णव जी ने रेलवे के आधुनिकीकरण की दिशा में बहुत अच्छा काम किया है और कर रहे हैं। सस्ती लोकप्रियता वादी निर्णय नहीं, एक अभियंता की तरह तकनीकी रूप से आधारभूत संरचना पर बहुत अच्छा काम हो रहा है। जिसके कारण गत वर्ष भारतीय रेल ने २,३९,८०३ करोड़ रुपए कमाए। वर्ष २०२२-२३ में यह आंकड़ा ६०६७  करोड़ का था।

भारतीय रेल का आधुनिकीकरण जोरो शोरो पर है जिस में आधुनिक तकनीक, वंदे भारत जैसी सेमी बुलेट ट्रेन जिसे भारत में भारत के ही अभियंताओं ने विकसित और उत्पादित  किया  है। नए एयरपोर्ट जैसे ट्रेन स्टेशनों का निर्माण हो रहा है, नए नए शोध हो रहे हैं और नए विकास हो रहा है।

रेल मंत्री एक आईआईटी इंजीनियर ही नहीं, उड़ा से आईएएस अधिकारी भी थे। जिसे छोड़ कर उन्होंने अलस्ट्रॉम जैसी कंपनियों का निर्देशन भी किया है।

एक ऐसे मंत्री के साथ काम कर के अधिकारी वर्ग, अभियंता वर्ग बहुत प्रसन्न है और कर्मचारी भी खुश हैं। सभी में एक नई उमंग जगी हुई है।

किंतु एक ऐसा वर्ग है जो इस उमंग की बाती पर प्रहार करना चाहता है। यह वही है जिन की दुकानदारी बंद हुई है, वह गाली देने का काम कर रहे हैं, जो स्वाभाविक है। इनके कमाई बाहर से मिले कमीशन से होती है इन्हे भारत में विकसित गाड़ियों से क्या लेना जिसका निर्यात, अमेरिका, कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे उन्नत देशों में हो रहा है।

इस सब के होते यह दुर्घटना दुर्भाग्यपूर्ण है। बाकी प्रधानमंत्री स्वयं दुर्घटना स्थान पर पहुंचे और स्थिति का संज्ञान लिया। एक उच्च स्तरीय जांच आयोग दुर्घटना के कारणों का पता लगा रहा है और अभी तक के तथ्यों से यह तो प्रतीत नहीं होता की यह मानवीय त्रुटि के कारण हुआ।

रेल मंत्रालय ने दुर्घटना की केंद्रीय जांच ब्यूरो से जांच कराने की मांग भी की है जिसका विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं, जबकि उन्हें तो इसका समर्थन करना चाहिए ताकि दुर्घटना के  सही कारण को सामने लाया जा सके।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ओडिशा रेल हादसे पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के सुरक्षा के सभी खोखले दावे अब  बेनकाब हो गए हैं और सरकार को इस गंभीर दुर्घटना सही कारणों को सामने लाना चाहिए।

मोदी को लिखे अपने पत्र में, खड़गे ने सीबीआई जांच की मांग करने के लिए रेल मंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि कानून प्रवर्तन एजेंसी को अपराधों की जांच करनी चाहिए,  रेलवे दुर्घटनाओं की नहीं।

दूसरी तरफ राहत कार्य जोरों पर है और बहुत से स्वयं सेवक अस्पताल में चोटिल व्यक्तियों की सहायता के लिए पांगती में खड़े है।

रेल मंत्री स्वयं पीछे २४ घंटे से घटना स्थल पर हैं और स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिए निरंतर कार्यरत है।

यह समय सरकार को नीचा दिखाने का नहीं सरकार से साथ खड़े हो कर उसकी मदद करने का है जिन्हें इस विकट परिस्थिति में सबके साथ और सहारे की आवश्यकता है। सत्ता के लालच में हमें मानवता को नहीं भूल जाना चाहिए।

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