समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 6 अगस्त: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बिहार में मतदाता सूची मसौदा (Draft Voter List) से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के संबंध में निर्वाचन आयोग (ECI) से पूरा विवरण मांगा है। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि वह यह विवरण 9 अगस्त तक प्रस्तुत करे, और इसकी एक प्रति एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR)’ को भी दी जाए।
कोर्ट की सख्ती: हटाए गए नामों की पूरी जानकारी जरूरी
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा कि यदि 65 लाख लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, तो यह एक गंभीर मामला है, और हर मतदाता के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।
पीठ ने स्पष्ट किया कि “हम हर प्रभावित मतदाता से संपर्क करेंगे और उनका पक्ष जानेंगे।”
ADR की याचिका और कोर्ट में बहस
एनजीओ ADR ने 24 जून को चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। संगठन का आरोप है कि मतदाता सूची से बिना स्पष्ट कारण बताए लाखों लोगों के नाम हटा दिए गए, और यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
ADR की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि कई राजनीतिक दलों को सूची उपलब्ध कराई गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हटाए गए नामों के पीछे कारण क्या हैं—मृत्यु, पलायन या अन्य।
दस्तावेजों की कमी और बीएलओ की भूमिका पर सवाल
प्रशांत भूषण ने दावा किया कि 75% मतदाताओं ने फॉर्म भरते समय 11 में से कोई भी जरूरी दस्तावेज नहीं दिए, और उनके नाम बीएलओ (Booth Level Officer) की सिफारिश के आधार पर ही सूची में जोड़े या हटाए गए। इससे मतदाता सत्यापन प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
अगली सुनवाई 12-13 अगस्त को
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वह 12 अगस्त से ADR की याचिका पर विस्तृत सुनवाई शुरू करेगी। अदालत ने चुनाव आयोग को 9 अगस्त तक पूरी जानकारी के साथ जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने यह भी दोहराया कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन अगर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम गैरकानूनी तरीके से हटाए गए हैं, तो शीर्ष अदालत हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगी।
बिहार में 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाने का मामला अब संवैधानिक बहस का रूप ले चुका है। सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट है—हर नागरिक का वोट देने का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए। चुनाव आयोग को अब पूरी पारदर्शिता के साथ जवाब देना होगा कि इतने बड़े पैमाने पर नाम क्यों हटाए गए। 12 और 13 अगस्त की सुनवाई इस विवाद में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है।
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