विश्व भर में हर पांच जेनेरिक गोलियों में में से एक का उत्पादन भारत में होता है : डॉ. मनसुख मांडविया

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की उपस्थिति में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना ( पीएमबीजेपी ) पर गहन सहयोग के लिए भारत में मिशन प्रमुखों के साथ परस्पर बातचीत की

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 25 फरवारी।वसुधैव कुटुम्बकम” के भारत के लोकाचार के अनुरुप, भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग वैश्विक बाजार में एक अग्रणी भूमिका का निर्वाह कर रहा है और विवेकपूर्ण मूल्य पर व्यापक उपभोग की उच्च गुणवत्तापूर्ण फार्मास्यूटिकल्स की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मानव जाति के अधिक से अधिक योगदान के लिए अथक प्रयत्न करता रहा है। साझीदार देशों के साथ काम करने की भारत की दृढ़ प्रतिबद्धता जीवंत रिश्ते बनाने तथा इस गठबंधन को केवल व्यापार तक सीमित न रख कर इसे कल्याण तक ले जाने के माध्यम से और गहरा बनाने के प्रति हमारे समर्पण को प्रदर्शित करती है। ‘‘ केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने आज यहां सुषमा स्वराज भवन में केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की उपस्थिति में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना पर लगभग 100 साझीदार देशों के विेदेशी मिशनों के प्रमुखों के साथ परस्पर बातचीत के दौरान उक्त बातें कहीं।

इस अवसर पर संबोधित करते हुए डॉ. मांडविया ने विशेष रूप से, कोविड-19 महामारी के बाद विश्व भर में स्वास्थ्य एवं फार्मा जैसे सेक्टरों में सुधार लाने की आवश्यकता पर फिर से बल दिया। जेनेरिक में, दुनिया भर में भारत की मजबूत उपस्थिति का लाभ उठाते हुए, डॉ. मांडविया ने कहा, ‘‘ भारत को सही मायने में दुनिया की फार्मेसी कहा जाता है। 50 प्रतिशत निर्यात तथा विश्व भर में हर पांच जेनेरिक गोलियों में से एक भारत में उत्पादित होने के साथ, हम दुनिया भर के कई देशों में लोगों के लिए दवाओं को किफायती बनाने में बड़े पैमाने पर योगदान करते हैं। ‘‘ उन्होंने देशों को भारत द्वारा सर्वश्रेष्ठ कार्ययोजनाओं पर गौर करने तथा उनकी स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरुप अपने देशों में उन्हें स्वेच्छा से कार्यान्वित करने के लिए आमंत्रित किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ‘‘ हमारे नागरिकों और विश्व के लिए औषधियों तथा चिकित्सा उपकरणों की पहुंच और सामथ्र्य के साथ साथ समानता, समावेशिता में निरंतर सुधार लाने ‘‘ के भारत के लक्ष्य पर और बल दिया।

प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरुप, 2014 से अब तक विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों और पहलों को आरंभ किया गया है। उन्होंने कहा कि ‘‘ सरकार ने नकदीरहित उपचार, स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों की स्थापना ( एबी-एचडब्ल्यूसीएस) की स्थापना और जन औषधि परियोजना के माध्यम से जेनेरिक दवाओं को लोकप्रिय बनाने जैसी युक्तियों के जरिये किफायती स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। ‘‘

जन औषधि परियोजना के लाभों को दुहराते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘‘ यह प्रमुख कार्यक्रम आम लोगों, विशेष रूप से निर्धनों के लिए सस्ती दरों पर, वाणिज्यिक बाजार की तुलना में 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक कम मूल्य पर, गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने का प्रयत्न करता है। ‘‘ इन लाभों के साथ साथ, डॉ. मांडविया ने रेखांकित किया कि ‘‘ जन औषधि परियोजना उद्यमियों के लिए खुदरा व्यवसाय आरंभ करने के लिए एक स्रोत है, यह नागरिकों को व्यापक लाभ प्रदान करती है तथा सरकारों के लिए आवश्यक बजटीय सहायता कम है। ‘‘

इस कार्यक्रम से अर्जित लाभों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, डॉ. मांडविया ने इस मॉडल को अन्य देशों में दुहराने की संभावना पर व्यापक रूप से चर्चा की। प्रायोगिक के रूप में, भारतीय फार्मा निर्यातकों के साथ लिंकेज स्थापित करने के द्वारा 50 फास्ट मूविंग दवाओं की खरीद की जा सकती है। समान आईटी और आपूर्ति श्रृंखला प्रणालियों, प्रचार कार्यनीतियों को अन्य देशों के साथ साझा किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि समान युक्तियों के माध्यम से, देश अपने नागरिकों को किफायती एवं गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कर सकते हैं जो उन्हें उच्च लागत वाली पेटेंटकृत दवाओं पर आयात निर्भरता से बचा सकते हैं, उनके नागरिकों के कल्याण को अधिकतम बना सकते हैं, रोजगार का सृजन कर सकते हैं तथा परिवारों को आर्थिक लाभ पहुंचा सकते हैं।

केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने वैश्वीकरण में स्वास्थ्य पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि ‘‘ स्वास्थ्य लागत शासन और समृद्धि के लिए केंद्रीय तत्व है। यहां तक कि विकसित देशो के बीच भी, आय विषमता को देखते हुए, स्वास्थ्य को कैसे सुलभ बनाया जाए, इस पर पूरी वैश्विक बहस ने हमें एक साथ ला दिया है। ‘‘ उन्होंने कहा कि इस वैश्वीकृत दुनिया में, किफायती, सुगम्यता और उपलब्धता के ‘‘ ट्रिपल ए लिंकेज ‘‘ पर ध्यान केंद्रित किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि वैश्विक अन्योन्याश्रितता, अंतर-संबंध भी सभी के लिए समाधान उपलब्ध करा सकता है जिसे महामारी की अवधि के दौरान भी देखा गया था। इसके साथ ही, डॉ. एस. जयशंकर ने साझीदार देशों को अपने देशों में जन औषधि परियोजना जैसी सार्वजनिक रूप से केंद्रित योजनाओं को स्थापित करने और कार्यान्वित करने में सहायता करने के लिए सभी आवश्यक मदद करने की पेशकश की।

एक विस्तृत प्रस्तुति के माध्यम से, स्कीम के विस्तृत विवरण प्रदर्शित किए गए। 1759 दवाओं ( 40 से अधिक प्रमुख चिकित्सकीय समूह ) से 280 सर्जिकल उपकरण तथा उपभोग योग्य वस्तुएं जन औषधि केंद्रों पर उपलब्ध हैं। पिछले आठ वर्षों में विक्रय केंद्रों की संख्या और बिक्री की मात्रा में 100 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। औसतन प्रत्येक दिन, 1.2 मिलियन व्यक्ति जन औषधि विक्रय केंद्रों पर जाते हैं। पीएमबीजेपी के प्रमुख सफलता कारकों में उत्पादों का गुणवत्ता आश्वासन, दक्ष लॉजिस्ट्क्सि, उद्यमियों को प्रोत्साहन, पर्याप्त उत्पाद रेंज, निरंतर संचार तथा जागरुकता, नागरिकों को बचत शामिल है।

जन औषधि केंद्रों के परिणामस्वरूप, पिछले आठ वर्षों में लाभार्थियों के अपनी जेब से होने वाले खर्च में भारी बचत हुई है जो लगभग 20,000 करोड़ रुपये ( 2 बिलियन डॉलर से अधिक ) के बराबर है।

मिशनों के प्रमुखों ने अपने अपने देशों में खरीद, अनुसंधान, कौशल विकास, दवा उत्पादन के लिए सक्रिय सहयोग के तरीकों और साधनों पर चर्चा की। यह बताया गया कि फार्मास्यूटिकल शिक्षा और अनुसंधान के 7 प्रमुख राष्ट्रीय संस्थान हैं। इच्छुक देश एनआईपीईआर के साथ संस्थागत सहयोग के लिए अवसरों की खोज कर सकते हैं।

फार्मास्यूटिकल विभाग की सचिव एस अपर्णा, विदेश मंत्रालय के विशेष सचिव प्रभात कुमार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी संवादपरक सत्र के दौरान उपस्थित थे।

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