प्याज की कीमत बढ़नी शुरू, नवंबर तक 100 रूपए प्रति किलो के पार

संदीप ठाकुर। 

केंद्र सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय के ताजा आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रति हजार व्यक्ति में से 908 लोग प्याज खाते हैं। यानी तकरीबन 100 करोड़ से ज्यादा लोग प्याज खाते हैं और  इस लिहाज से भारत में प्याज का उत्पादन काफी कम है। मांग और आपूर्ति में असंतुलन प्याज की कीमत काे हर साल कुछ माह के लिए आसमान पर पहुंचा देता है। नतीजतन प्याज के साथ नमक रोटी खाकर अपना गुजारा करने वालों का भी हाल बेहाल हाे जाता है। इस बार भी प्याज की कीमत बढ़नी शुरू हाे गई है। बाजार से मिल रहे संकेत बताने लगे हैं कि आने वाले तीन चार महीने प्याज सिर्फ काटने पर ही नहीं बल्कि खरीदने पर भी रुलाने वाला है।  प्याज के थोक व खुदरा विक्रेताओं का मानना है कि इस साल भी सितंबर से प्याज के दाम में बढ़ोतरी होनी शुरू हाे गई है जो नवंबर में चरम पर पहुंच जाएगी। अनुमानत: प्याज 100 रुपए प्रति किलो के पार भी चला जाए ताे काेई आश्चर्य नहीं।

सितंबर में प्याज की कीमत में तेजी आने लगती है। हाय तौबा मचती है। खरीदने की औकात रखने खरीदते ताे हैं लेकिन राे राे कर। हर साल प्याज की कीमतें बढ़ने से रोकने के उपाय किए जाते हैं। प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया जाता है। प्याज के स्टॉक पर रोक लग जाती है। सरकारी एजेंसियां सस्ते दामों पर प्याज की बिक्री शुरू कर देती है। लेकिन इसके बावजूद प्याज आम जनता का रुलाता रहता है। कुछ इस बार भी ऐसा ही होता लग रहा है। फिलहाल प्याज की कीमत बाजार में 40-60 रुपए किलो तक हो गई है। क्रिसिल रिसर्च की एक रिपोर्ट में साफ हो गया कि अनियमित बारिश के कारण प्याज की कटाई में देरी होगी, जिस कारण इस सीजन भी लोगों को महंगे प्याज खाने होंगे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि शुरुआती मानसून को देखते हुए किसानों ने जल्द खराब होने वाले टमाटर की जगह मिर्च और प्याज को तरजीह दी थी लेकिन बाद में मानसून के कमजोर पड़ने के बाद किसानों ने रिस्क लेना सही नहीं समझा और प्याज की रोपाई देरी से की। जानकारों ने बताया कि दरअसल कर्नाटक, आंध्र, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से इस समय खरीफ के प्याज की उपज बाजार में आती है। लेकिन इन सभी राज्यों में भारी बारिश के चलते 50 फीसदी फसल खराब हो गई। साथ ही भारी बारिश ने महाराष्ट्र में प्याज के पुराने स्टॉक की क्वालिटी पर भी असर डाला। इसके इनकी कीमतों में बढोतरी शुरू हो गई है। प्याज की नई फसल अब नवंबर में बाजार में आएगी। ये महाराष्ट्र में पैदा होने वाले प्याज की होगी पर इस पर भी बारिश का असर पड़ा है। भारत में 2.3 करोड़ टन प्याज का उत्पादन होता है। इसमें 36 फीसदी प्याज महाराष्ट्र से आता है। इसके बाद मध्य प्रदेश में करीब 16 फीसदी, कर्नाटक में करीब 13 फीसदी, बिहार में 6 फीसदी और राजस्थान में 5 फीसदी प्याज का उत्पादन होता है।

पूरे देश में साल में एक बार ऐसा मौका जरूर आता है जब घरों की किचन से प्याज गायब होने लगता है। 1980 में पहली बार प्याज की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया था। प्याज आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गया था। 1998 में एक बार फिर प्याज की कीमतें आसमान छूने लगी थीं।  दिल्ली में इसकी कीमत राजनीतिक मुद्दा बन गई थी। 2010 में प्याज की कीमत फिर बढ़ी। 3 साल बाद 2013 में प्याज कई जगहों पर 150 रुपए किलो तक बिका। 2015 में प्याज की कीमतों ने एक बार फिर लोगों को रुलाया। इसके बाद ताे तकरीबन हर साल सितंबर अक्टूबर में प्याज की कीमत बढ़ जाती हैं। प्याज के उचित स्टोरेज से उसकी कीमतों पर अंकुश रखा जा सकता है लेकिन हमारे देश में प्याज के भंडारण के लिए पर्याप्त संख्या में काेल्ड स्टाेरेज नहीं है। एक आंकड़े के मुताबिक देश
में सिर्फ 2 फीसदी प्याज के भंडारण की ही क्षमता है। 98 फीसदी प्याज खुले में रखा जाता है। बारिश के मौसम में नमी की वजह से प्याज सड़ने लगता है। भंडारण की समस्या की वजह से करीब 30 से 40 फीसदी प्याज सड़ जाता है। इस बर्बादी का प्याज की कीमत बढ़ाने में बड़ा योगदान रहा है। कीमत हर साल लाेगाें काे रुलाती ताे है लेकिन पता नहीं लोग इसका क्यों विरोध नहीं कर
पाते। 1998 में प्याज की बढ़ी कीमत राजनीतिक मुद्दा बन गई थी और दिल्ली में भाजपा की सरकार चली गई थी। लेकिन आज महंगाई आसमान छू रही है,नेता माैन हैं और जनता जैसे तैसे कर अपना कीचन चला रही है।

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