कुमार राकेश
बैंकॉक, 24 नवंबर। थाईलैंड के प्रधानमंत्री शेत्ता थाविसिन ने आशा व्यक्त की है कि उथल-पुथल से जूझ रही दुनिया सत्य, सहिष्णुता और सौहार्द्र के हिंदू जीवन मूल्यों से प्रेरणा लेगी और विश्व में शांति स्थापित हो सकेगी।
विश्व में हिन्दुओं की एक प्रगतिशील और प्रतिभासंपन्न समाज के रूप में पहचान स्थापित करने के उद्देश्य से तीसरे वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस का आज यहां भव्य शुभारंभ हुआ। ‘धर्म की विजय’ के उद्घोष के साथ प्रख्यात संत माता अमृतानंदमयी, भारत सेवाश्रम संघ के स्वामी पूर्णात्मानंद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, विश्व हिन्दू परिषद के महामंत्री मिलिंद परांडे तथा कार्यक्रम के संस्थापक-सूत्रधार स्वामी विज्ञानानंद ने दीप प्रज्ज्वलन से सत्रारंभ हुआ।
उद्घाटन सत्र में मेजबान देश के प्रधानमंत्री श्री थाविसिन को भाग लेना था लेकिन किन्हीं कारणों से वह नहीं आ सके। सभा में थाई प्रधानमंत्री का संदेश पढ़ा गया। उन्होंने संदेश में कहा कि थाईलैंड के लिए हिन्दू धर्म के सिंद्धांतों और मूल्यों पर आयोजित वर्ल्ड हिन्दू कांग्रेस की मेजबानी करना सम्मान की बात है। हमारी भारत से भौगोलिक दूरी जो भी है लेकिन हिन्दू धर्म के सत्य और सहिष्णुता के सिद्धांतों का हमेशा से आदर रहा है। आशा है कि आज की इस उथल-पुथल भरी दुनिया सत्य, सहिष्णुता और सौहार्द्र के हिंदू जीवन मूल्यों से प्रेरणा लेगी और विश्व में शांति स्थापित हो सकेगी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि अगर पूरा विश्व सद्भाव चाहता है, तो भारत के बिना यह संभव नहीं है। दुनिया में जो लोग इस दुनिया को एक साथ चाहते हैं, जो एक साथ सबका उत्थान चाहते हैं, वे धर्मवादी हैं। हिंदुओं के प्रति धर्म का दृष्टिकोण वैश्विक धर्म विचारों को जन्म देगा। दुनिया हमारी ओर आशा भरी नजरों से देख रही है और हमें इसे पूरा करना है।’
श्री भागवत ने सम्मेलन के ध्येय वाक्य में ‘जयस्य आयतनं धर्म:’ की व्याख्या करते हुए कहा कि सनातन धर्म में जय का अर्थ लड़ कर जीतना और शत्रु का दमन करना नहीं है। हमारे लिए विजय का अभिप्राय धर्म से है। धर्म की सदा जय ही होती है और यह सबके उत्कर्ष, सबके सुख, सबको जोड़ने और सबको साथ लेकर चलते हुए विविधता में भी एकता का काम करता है. यही हमारी परंपरा रही है।
सरसंघचालक ने कहा कि धर्म सातत्य और संतुलन या मध्यम मार्ग का नाम है। इसलिए इससे कट्टरता और उग्रवाद का शमन होता है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी जो लोग लड़ना नहीं चाहते, उन्हें भी धर्म की रक्षा और शांति सुनिश्चित करने के लिए लड़ना पड़ता है।
उन्होंने तमिल कवि तिरुवल्लुवर के कुरल को उद्धृत करते हुए कहा कि घृणा, वासना, क्रोध और अभद्र वचन को छोड़कर जो कुछ भी है, वह सब धर्म ही है। उन्होंने कहा कि हम कोई आंदोलन या प्रदर्शन नहीं बल्कि हिन्दुओं को मजबूती से जोड़ने वाले संगठन हैं। दुनिया में खुशी एवं शांति प्राप्त करने के लिए भौतिकता पर आधारित कई प्रयोग हुए हैं। लेकिन कोई संतोष और समाधान नहीं मिला। कोरोना महामारी के बाद दुनिया ने देखा कि उन्हें जो चाहिए वो भारत दे सकता है।
श्री भागवत ने कहा कि विविधता में एकता कहने वाले लोग यदि समझ लें और अनुभव कर लें कि विविधता का मूल ही एकता है तो उन्हें संतोष की अनुभूति हो जाएगी। यह एक बड़ा काम है। उन्होंने कहा कि हिन्दू विश्व के कोने-कोने में गये लेकिन कोई जमीन जीतने नहीं गए। बल्कि दुनिया भर में प्रताड़ित लोगों को सांत्वना भारत में ही मिली। हमने लोगों के हृदय जीते हैं और आगे भी जीतना है। उन्होंने कहा कि पहला कदम, हर हिंदू को जोड़ें। तब हिंदू शेष विश्व को जोड़ेंगे।” यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जो लोग एक साथ रहना चाहते हैं, जो एक साथ मिलकर उत्थान चाहते हैं, वे हिंदू हैं। इस सम्मेलन में लक्ष्य तय होना चाहिए और हमें अगले साल आने वाले सम्मेलन से पहले पूरा करना चाहिए। हमारा राष्ट्रीय कार्य धर्म विजय सभी के लिए है, भौतिक विजय नहीं। भारत सनातन धर्म के लिए उठ रहा है।
माता अमृतानंदमयी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि भारत वह भूमि है, जिसने विश्व को परम सत्य का मार्ग दिखाया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं।
इससे पहले श्री भागवत ने माता अमृतानंदमयी को हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए शाल श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर अभिनंदन किया।
सभा को विहिप के महामंत्री मिलिंद परांडे, स्वामी पूर्णात्मानंद जी और हिन्दूइज़्म के प्रधान संपादक आचार्य आरुमुगानाथ स्वामी ने भी संबोधित किया।
विश्व हिन्दू कांग्रेस में दुनिया के 61 देशों से आमंत्रित 2200 से अधिक ऐसे प्रतिनिधियों का जमावड़ा हुआ है जो शिक्षा, अर्थतंत्र, अकादमिक, अनुसंधान एवं विकास, मीडिया और राजनीति के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें से करीब 25 देशों के सांसद एवं मंत्री शामिल हैं।
थाईलैंड में भारतीय समुदाय के करीब 10 लाख लोग रहते हैं जिनका देश के व्यापार और आर्थिक विकास में योगदान उल्लेखनीय है। सम्मेलन में थाई प्रधानमंत्री के नहीं आने से स्थानीय लोग निराश दिखे।
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