2024 विधेयक के खिलाफ विपक्ष का संघर्ष: एक प्रभावहीन लड़ाई

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 मार्च।
2024 के वक्फ विधेयक ने जबरदस्त विरोध आंदोलन को जन्म दिया है। विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में इस विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए जा रहे हैं। दरअसल, जब तमिलनाडु विधानसभा में संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया, तो मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह वक्फ बोर्ड की शक्तियों को बाधित करने के लिए संशोधन कर रही है, जिससे मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी, लेकिन केंद्र सरकार इसकी परवाह नहीं कर रही। इस पूरे घटनाक्रम में सलीम की भूमिका ने एक और बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा शासित राज्यों में विधेयक के खिलाफ पारित प्रस्ताव केवल एक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हैं? एक ओर, मुस्लिम संगठन लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं और आंदोलन तेज हो रहा है, तो दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार इस विधेयक के खिलाफ पहला प्रस्ताव पारित कर चुकी है। हालांकि, मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन और सरकार के संबंधों को देखते हुए यह लग रहा है कि स्टालिन चुनावी अभियान में उतरेंगे, और कुछ स्थानों पर यह मुद्दा सड़कों तक भी पहुंच सकता है।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस प्रस्ताव से वास्तव में कोई प्रभाव पड़ेगा? चूंकि यह राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, इसलिए इस प्रस्ताव से कुछ भी बदलने वाला नहीं है। इसे केवल मुस्लिम समुदाय को खुश करने के लिए किया जा रहा है। ऐसा ही कुछ नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के दौरान भी हुआ था, जब ममता बनर्जी ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि उनके राज्य में यह कानून लागू नहीं होगा। गैर-भाजपा शासित राज्यों में इस तरह के प्रस्ताव पारित किए गए, हालांकि सभी को पता था कि नागरिकता राज्य का विषय नहीं है। राज्य सरकारें केवल अधिवास (डोमिसाइल) से जुड़े मामलों को देख सकती हैं, लेकिन नागरिकता जैसे राष्ट्रीय कानूनों पर उनका कोई अधिकार नहीं है।

इसी तरह, जब संशोधन विधेयक संसद में पारित होगा और यह कानून बन जाएगा, तब राज्य सरकारों के प्रस्ताव या कानूनों का कोई असर नहीं पड़ेगा। यह मसला केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही हल होगा। तमिलनाडु सरकार चाहकर भी इस विधेयक को रोक नहीं सकती, लेकिन फिर भी यह विरोध जारी है।

तमिलनाडु में वक्फ संपत्तियों को लेकर पहले से ही विवाद चल रहा है। तिरुचिरापल्ली गांव में एक 1500 साल पुराने मंदिर क्षेत्र को वक्फ संपत्ति घोषित किए जाने पर स्थानीय लोग कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी तरह मदुरै में मुरुगन मंदिर क्षेत्र पर भी मुस्लिम समुदाय ने दावा किया है, जिससे हर साल धार्मिक जुलूसों के दौरान तनाव बढ़ता जा रहा है।

इसके अलावा, केरल, पश्चिम बंगाल, असम और अन्य राज्यों में भी यह मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील बनता जा रहा है, खासकर 2025 के चुनावों को देखते हुए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस विधेयक का विरोध कर रहा है, और लालू यादव, प्रशांत किशोर सहित कई नेता मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन चुनावों के बाद ये नेता शायद इस मुद्दे को भूल जाएंगे।

2026 के चुनावों को देखते हुए पश्चिम बंगाल और असम में भी इस विधेयक के खिलाफ प्रस्ताव पारित हो सकते हैं। इन राज्यों में मुस्लिम वोटों को लेकर सियासी दलों में जबरदस्त होड़ लगी हुई है। ममता बनर्जी, एम.के. स्टालिन और अन्य नेता खुद को मुस्लिम हितैषी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मुस्लिम संगठनों में भी अंदरूनी फूट देखी जा रही है। यह तय नहीं हो पा रहा कि इन प्रदर्शनों की अगुवाई कौन करेगा। कांग्रेस भी इस आंदोलन के साथ जुड़ने की बात कह चुकी है। पटना में कांग्रेस नेता इमरान मसूद जैसे नेता इन विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो चुके हैं।

इन विरोध प्रदर्शनों के बावजूद, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन प्रदर्शनों को लेकर चिंतित नहीं दिख रही। भाजपा का मानना है कि मुस्लिम समुदाय वैसे भी उन्हें वोट नहीं देगा, इसलिए इन आंदोलनों से पार्टी की स्थिति पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन सामान्य बात है, और भाजपा इसे केवल एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देख रही है।

आने वाले महीनों में जैसे-जैसे यह विरोध बढ़ेगा, यह साफ हो जाएगा कि क्या विपक्षी दल इस मुद्दे का चुनावी लाभ उठा पाएंगे या यह केवल राजनीतिक फायदे के लिए उठाया गया एक और मुद्दा बनकर रह जाएगा।

 

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