समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 फरवरी। मभारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में गूंजने वाले एक मार्मिक क्षण में, ध्रुपद शैली के एक प्रतिष्ठित गुरु, ध्रुपदाचार्य पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग ने शनिवार को 93 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली. निमोनिया की बीमारी के चलते उनका असामयिक निधन हो गया और अन्य जटिलताओं की पुष्टि जयपुर के दुर्लभजी अस्पताल के मेडिकल स्टाफ द्वारा की गई, जहां उनका इलाज चल रहा था. सरकार द्वारा 26 जनवरी की पूर्व संध्या ध्रुपदाचार्य पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का ऐलान किया गया था. दुख की बात ये है कि पद्मश्री पुरस्कार ग्रहण करने से पहले ही पंडित लक्ष्मण भट्ट ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. भट्ट परिवार में जन्मे पंडित तैलंग का जीवन प्राचीन कला के प्रति अटूट समर्पण और निष्ठा का प्रतीक था.
पिता भी थे मशहूर ध्रुपद गायक
पंडित तैलंग के पिता, पंडित माधो भट्ट तैलंग, अपने आप में एक प्रसिद्ध ध्रुपद गायक थे, और यह उनके संरक्षण में था कि युवा लक्ष्मण भट्ट तैलंग ने अपनी संगीत यात्रा शुरू की. पंडित तैलंग ने 93 वर्ष की उम्र में राजस्थान के जयपुर के दुर्लभजी अस्पताल में अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से उनका निमोनिया और अन्य बीमारियों का इलाज चल रहा था. पंडित तैलंग की बेटी और राजस्थान की मशहूर ध्रुपद गायिका प्रोफेसर मधु भट्ट तैलंग के मुताबिक, ‘पिछले कुछ दिनों से पंडितजी की तबीयत खराब होने के कारण उन्हें दुर्लभजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान शनिवार सुबह 9 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली.’
पंडित तैलंग इन्हें छोड़ गए पीछे
आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, पंडित तैलंग का पूरा जीवन गायन में बीता और उन्होंने अपने बेटे रविशंकर और बेटियों शोभा, उषा, निशा, मधु, पूनम और आरती को संगीत की व्यापक शिक्षा दी और उन्हें विभिन्न विधाओं में पारंगत बनाया. वह 1950 से 1992 तक वनस्थली विद्यापीठ और 1991 से 1994 तक राजस्थान संगीत संस्थान, जयपुर में संगीत व्याख्याता रहे. इनके अलावा, वह 1985 में जयपुर में ‘रसमंजरी संगीतोपासना केंद्र’ और 2001 में ‘अंतर्राष्ट्रीय ध्रुपद-धाम ट्रस्ट’ के संस्थापक और निदेशक भी थे.
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