हम जिन प्रगतिशील किसानों को देख रहे हैं जिन्होंने कृषि क्षेत्र में सफलता का तमगा हासिल किया है, वो खाद्यान्न की ओर नहीं बल्कि फल, सब्जी, फूल, औषधीय पौधों इत्यादि के उत्पादन की ओर झुके हैं. इस क्षेत्र में अभी भी बहुत जरूरत और संभावनाएं हैं.” इसके साथ पेड़ लगाने के लिए जागरूकता और सहयोग के लिए कार्यक्रम चलें तो इस समय किये गए मेहनत से आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को काफी तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। हमें इस समय खाद्यान्न पर फोकस करने के साथ साथ पेड़ लगाने पर फोकस करना चाहिए क्युकि खाद्यान्न की आपूर्ति उतनी ही होगी मार्केट में ज्यादे माल होने से रेट भी गिरेंगे। पेड़ लगानें से और पेड़ों के तैयार होने के बीच में मार्किट की जरूरत नही होती तब तक लॉकडाउन के बाद जब मार्किट पूरी तरह से खुलेगा तो इंनके उत्पाद भी मार्केट में आकर किसानों के साथ साथ देश के आय का बड़ा जरिया बनेंगे कुल मिलाकर आज जमा की गई मेहनत भविष्य में काफी फलदाई होगा।
25 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगने के बाद शहरों में कार्य करने वाले कामगार लॉक डाउन के बाद बेरोजगार हो गए। जब यह लॉक डाउन बढने लगा तो ये लोग अपने मकानों के किराये देने में अक्षम होते गए। लॉक डाउन बढ़ने के साथ-साथ इन लोगों का धैर्य भी जाता रहा अंततः ये लोग पूरा काम धाम समेटकर बोरिया बिस्तर के साथ अपने गावों की तरफ लौटने लगे। गावों की तरफ आने के समय इनके कृषि कार्य से जुड़नें की सम्भावना भी बढती गईं। ये अपने गावं आये और कृषि से जुड़ भी चुके हैं। इन लोगों नें गर्मी के समय में लौकी, भिंडी, खरबूज, तरबूज, ककड़ी आदि की फसल बोकर पैसे कमाने का एक जरिया बनाया था। सफल भी हुआ है लेकिन कृषि पर दबाव बढने लगा है।
ढेर सारे युवा कोरोना काल में दूसरे शहरों से अपने गावं पहुच चुके हैं। ये युवा गावं में ही कृषि से जुड़े उद्योगों में ही अपने भविष्य की सम्भावनाएं तलाश रहे हैं। ऐसे युवाओं को एक समूह बनाकर सामूहिक वानिकी का कार्यक्रम चलाना चाहिए। सरकार भी ऐसे समूहों को बंजर जमीने मुहैय्या कराए तो काफी फायदा मिलेगा। इससे मिलने वाले उत्पादों (लकड़ी, फूलों, और फलों….) के एक बड़े हिस्से पर इनका अधिकार दिया जाय अगर ऐसा प्रावधान करके सरकार ऐसे युवाओं को आगे लेकर आती है तो कोरोना काल में ही आने वाले समय के लिए देश में हरियाली क्रांति का आधार बनाया जा सकता है।
अभी ज्यादे लोगों के कृषि कार्य से जुड़ने से जहाँ उत्पादन आवश्यकता से ज्यादे होंगे इस वजह से कृषि फसलों के दाम गिरने के भी आसार होंगे प्रति व्यक्ति कृषि आय कम होगी ऐसे में अगर लोगों अपने जमीनों के चारो और पेड़ लगायें या फिर कुछ जमीन के हिस्से में पूरा पेड़ लगाकर उसकी देखभाल करें तो वो उनका फिक्स डिपोजिट होगा क्युकि 20 साल बाद ये पेड़ तैयार होकर अर्थव्यवस्था और पर्यावरण सुधार में चार चाँद लगायेंगे।
हमारा देश कृषि प्रधान देश हैं। आजादी के समय हमारे देश की अर्थव्यवस्था 87 % से ज्यादा कृषि पर आधारित थी 1991 में लाये गए एल पी जी (उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण ) की नीतियों की वजह से हमारी अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान कम होता गया था । हमारी जो चीजें (लघु व कुटीर उधोग-जो कृषि से जुड़े हुए थे )अपनी मानी जाती थीं उसे हमने दरकिनार कर दिया अनेक बदलाव हुए पर जो देश की आत्मा हरियाली पर थी वो लिंक टूट गया हमारी नाभि थी हमने उसे काट दिया और अपना नाता ज्यादे आमदनी के लिए औधोगिक उत्पादन से जोड़ लिया बड़े पैमाने पर गावों से लोग शहर में कारोबार करने गए। यही वह दौर था जब देश के मध्यम और निम्नवर्गीय लोग मध्य एशिया के देशों में भी नौकरी करने गए। यह देश के विकास के लिए अच्छा भी रहा था। लेकिन कोरोना जैसी विश्विक बीमारी के पूरी दुनियाँ में तेजी से प्रसार की वजह से देश ही नहीं पूरी दुनिया में आवागमन और आयात निर्यात में गिरावट आई है नतीजतन हमारी अर्थव्यवस्था फिर से बंद अर्थव्यवस्था के स्वरूप में आ गई है। इसके अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं। कृषि पर निर्भरता और कृषि के क्षेत्र में लोगों के द्वारा जुड़नें की रफ्तार को देखने के लिहाज से ऐसा लगता है कि कृषि में उत्पादन खूब बढेगा ऐसी स्थिति में मार्किट की भी जरूरत होगी और मार्किट में अगर ज्यादे माल आया तो उत्पादों के दाम भी गिरेंगे तो कुल मिलाकर खेती घाटे का सौदा हो जाएगी। इन सब चीजों को अगर नियोजित तरीके से किया जाय तो खेती किसानी से जुड़ने वाले लोगों के इस लॉक डाउन में किये गए कार्य से भविष्य में काफी लाभ कमाया जा सकता है। किसान खेती के कार्य के साथ साथ अपने खेतों के किअनारे पेड़ लगायें या फिर पेड़ों के बागीचे लगायें जिससे कोरोना के बाद इन पेड़ों के तैयार होने से काफी फायदा होगा। ये आज किये गए मेहनत की डिपोजिट (फिक्स जमा ) से आने वाले समय में करोड़ो के पेड़ और फल तैयार होंगे उससे देश को शुद्ध हवा, किसानों को आय का जरिया विकसित होगा।
कोरोना परिदृश्य
भारत में कोरोना संकट के कारण करोडो मजदूर बेरोजगार हुए हैं, वहीं निजी प्राइवेट नौकरी करने वाले लोगों के सामने भी रोजगार बचाने का गम्भीर संकट है। इस परिदृश्य में शहरों से निराश लौट चुके लोग अपने रोजी के रास्ते को अपने गावों में तलाश रहे हैं। लॉक डाउन में हुई असुविधाओं और दूसरे सरकारों द्वारा कमजोर प्लानिंग की वजह से खड़ी होनें वाली दिक्कतों की वजह से ढेर सारे लोगों ने यह मन बना लिया है कि वो लौटकर वापस शहर नहीं जायेंगे। कोरोना काल में कृषि से जुड़ने वाले लोगों की तादाद काफी रही है इनमें भी युवाओं की संख्या काफी है। जो लोग शहरों में रोजगार कर रहे थे वो गावों में आकर खेती में लग गए हैं नतीजतन खेती में उत्पादन के बढने के काफी आसार हैं।
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