समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 2जून। कोरोना संकट में कई राज्यों में मृतकों के शव को नदी में बहाने का मामला सामने आया है जो बहुत चिंताजनक है। संक्रमितों के शवो को गंगा नही में बहाने से कोरोना का संक्रमण ज्यादा बढ़ सकता है। इसके साथ ही इस हरकत से गंगा नदी भी दूषित हो रही है। यहीं नही शवों का अंतिम सस्कार ना कर इसे नही में बहा देना..धर्म की अवहेलना भी माना जा रहा है। जहां एक तरफ हमारे देश में हिन्दू संस्कृति के अनुसार अंतिम सस्कार को मृतक के मुक्ति देने की बात कही जाती है वहीं दूसरी तरफ शवो को बहा कर उनका अपमान करना सही नहीं है।
इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर केंद्र और उत्तर प्रदेश तथा बिहार समेत चार राज्यों को कोविड-19 की मौजूदा लहर के बीच गंगा नदी में बहते मिले शवों को हटाने के लिए फौरन कदम उठाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
याचिका में उत्तर प्रदेश तथा बिहार में गंगा नदी में बहते पाए गए शवों की खबरों का हवाला दिया गया है। याचिका में उच्चतम न्यायालय से कोरोना वायरस के मृतकों का उचित तथा सम्मानित तरीके से अंतिम संस्कार करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तय करने के दिशा निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया है।
यह याचिका ‘यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ ने दायर की है. इसमें मुख्य सचिवों तथा जिला मजिस्ट्रेटों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि किसी भी नदी में शव फेंकने नहीं दिया जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।
वकील मंजू जेटली के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘मृतकों के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है जिसमें सम्मानित तरीके से अंतिम संस्कार करने का अधिकार भी शामिल है।’’
इसमें कहा गया है कि गंगा नदी का उद्गम स्थल उत्तराखंड है और यह उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल की ओर बहती है तथा नदी में शवों के बहने से पर्यावरण को नुकसान होगा और साथ ही यह स्वच्छ गंगा के राष्ट्रीय अभियान के दिशा निर्देशों का उल्लंघन भी है। प्राधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया जाए कि गंगा तथा अन्य नदियों से शवों को हटाया जाए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि प्राधिकारी जनता को शिक्षित करने के लिए प्रयास करने तथा अधजले या बिना जले शवों को गंगा नदी में बहाने से रोकने में नाकाम रहे।
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