कोयंबटूर में प्रधानमंत्री बोले, भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक केंद्र बनेगा
पीएम मोदी ने दक्षिण भारत नैचुरल फार्मिंग समिट 2025 में कहा—एक एकड़ से शुरुआत करें, प्राकृतिक खेती को विज्ञान-आधारित जन आंदोलन बनाएं
- देशभर के किसानों को 18,000 करोड़ रुपये की पीएम-किसान किस्त जारी
- अब तक 4 लाख करोड़ रुपये सीधे छोटे किसानों के खातों में भेजे जा चुके हैं
- प्राकृतिक खेती और बहुफसली मॉडल को 21वीं सदी की जरूरत बताया
- तमिलनाडु में 35,000 हेक्टेयर भूमि पर प्राकृतिक/जैविक खेती हो रही है
समग्र समाचार सेवा
कोयंबटूर, तमिलनाडु | 20 नवम्बर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कोयंबटूर में आयोजित दक्षिण भारत प्राकृतिक खेती शिखर सम्मेलन 2025 को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाले वर्षों में भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक नेतृत्व करेगा। प्रधानमंत्री ने प्राकृतिक खेती को “21वीं सदी की कृषि व्यवस्था की अनिवार्य दिशा” बताते हुए कहा कि यह न केवल मिट्टी की सेहत को बचाएगी, बल्कि किसानों की लागत घटाकर उनकी आय भी बढ़ाएगी।
कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री ने देशभर के किसानों के लिए PM-Kisan सम्मान निधि की अगली किस्त, 18,000 करोड़ रुपये, सीधे जारी की, जिससे करोड़ों किसानों को तत्काल लाभ मिला। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिए लगातार ठोस कदम उठा रही है।
देर से पहुंचने पर किसानों से सार्वजनिक माफी
अपने संबोधन की शुरुआत में पीएम मोदी ने समारोह में लगभग एक घंटे की देरी पर सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्होंने बताया कि पुट्टापर्थी में सत्य साई बाबा के कार्यक्रम में उपस्थित रहने के कारण समय अधिक लग गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि “किसानों का समय बहुत मूल्यवान है और इसके लिए मैं आप सभी से क्षमा मांगता हूँ।”
11 वर्षों में कृषि क्षेत्र में बड़े बदलाव – PM
प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले 11 वर्षों में भारतीय कृषि ने अभूतपूर्व परिवर्तन देखे हैं।
उन्होंने बताया कि
- इस वर्ष किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के माध्यम से 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी गई है।
- पशुपालक और मछुआरे भी KCC के दायरे में आने के बाद भारी लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
- अब तक PM-Kisan योजना के तहत 4 लाख करोड़ रुपये सीधे छोटे किसानों के बैंक खातों में भेजे जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि यह राशि किसानों की लागत, बीज, खाद, सिंचाई और अन्य जरूरतों पर महत्वपूर्ण राहत देती है।
प्राकृतिक खेती, समाधान, परंपरा और भविष्य
प्रधानमंत्री ने रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि इससे मिट्टी की उर्वरता और जल संरक्षण क्षमता प्रभावित हो रही है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि फसल विविधीकरण और प्राकृतिक खेती ही स्थायी समाधान है।
उन्होंने किसानों से आग्रह करते हुए कहा-
“एक सीजन में सिर्फ एक एकड़ से शुरुआत कीजिए। परिणाम देखकर इसे बढ़ाइए। यही प्राकृतिक खेती का सुरक्षित और प्रभावी रास्ता है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत ने पारंपरिक प्राकृतिक कृषि विधियों,पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन, जीवित रखा है। ये तरीके कम लागत में बेहतर उत्पादन देते हैं और मिट्टी को दीर्घकाल तक स्वस्थ बनाए रखते हैं।
श्री अन्ना (मिलेट्स) के साथ प्राकृतिक खेती का महत्व
मोदी ने बताया कि श्री अन्ना (मिलेट्स) और प्राकृतिक खेती का संयोजन वैश्विक बाजार में भारत की पहचान मजबूत करेगा। उन्होंने तमिल परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि भगवान मुरुगन को भी ‘थेनुम-थिनै-मावुम’ का प्रसाद चढ़ाया जाता है, जो स्थानीय मिलेट्स और शहद से तैयार होता है।
उन्होंने कहा कि मिलेट्स पोषक, पर्यावरण-हितैषी और भविष्य की सुपर-फूड कैटेगरी का प्रमुख हिस्सा हैं।
बहुफसली (Multi-layer) खेती मॉडल का उल्लेख
प्रधानमंत्री ने दक्षिण भारत के पहाड़ी इलाकों में अपनाई जाने वाली बहु-स्तरीय खेती (multi-storey farming) के मॉडल की विशेष प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि एक ही खेत में नारियल, सुपारी, फलदार पौधे, मसाले और काली मिर्च जैसी फसलें उगाने की यह प्रणाली पूरे देश के लिए प्रेरणादायक मॉडल है।
उन्होंने कहा कि यह मॉडल प्राकृतिक खेती की मूल भावना से सबसे ज्यादा मेल खाता है।
FPOs पर विशेष जोर
प्रधानमंत्री ने बताया कि देश में बनाए गए 10,000 किसान उत्पादक संगठन (FPOs) प्राकृतिक खेती को मजबूत समर्थन दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि FPOs के माध्यम से-
- किसानों को साफ-सफाई और पैकेजिंग सुविधाएँ
- स्थानीय प्रोसेसिंग इकाइयाँ
- और e-NAM जैसे ऑनलाइन बाज़ारों तक सीधे पहुंच
सुनिश्चित की जा सकती है।
यह किसानों की आय में सीधा इजाफा करेगा और प्राकृतिक खेती की उपज को बड़े बाजारों तक पहुंचाएगा।
दक्षिण भारत, कृषि का “जीवंत विश्वविद्यालय”
प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षिण भारत प्राचीन काल से ही कृषि नवाचारों का केंद्र रहा है।
उन्होंने क्लिंगरायण नहर, प्राचीन बांधों और मंदिर तालाबों की जल-संरक्षण तकनीकों का उल्लेख करते हुए कहा कि
“दक्षिण भारत ने हजारों वर्ष पहले जिस कृषि और जल-प्रबंधन ज्ञान का निर्माण किया, वही आज प्राकृतिक खेती के वैश्विक नेतृत्व का आधार बनेगा।”
समापन
प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि यह शिखर सम्मेलन प्राकृतिक खेती के लिए नए विचार, नई तकनीक और नए समाधान लेकर आएगा। उन्होंने किसानों, वैज्ञानिकों, स्टार्टअप्स और नीति-निर्माताओं को प्राकृतिक खेती को विज्ञान-आधारित आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाने की सलाह दी।
उन्होंने कार्यक्रम का समापन “भारत माता की जय” के उद्घोष के साथ किया।
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