राकेश शर्मा
तमाम विरोधों, अवरोधों और गतिरोधों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह साबित कर दिया कि वे ही किसानों के असली हितैषी हैं। बाकी किसानों के नाम पर सियासत करने वालों को किसानों के हित से कोई मतलब नहीं है। सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुरु पर्व के दिन तीनों कृषि कानून वापस लेने के लिए शुभकामनाएं। प्रधानमंत्री के इस एक फैसले ने इतिहास रच दिया। किसानों के एक वर्ग की बहुत बड़ी बात मान ली गई। अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वे एमएसपी और किसानों की अन्य समस्याओं के लिए एक कमिटी का भी गठन करेंगे, जिसमें किसान भी शामिल होंगे। इसके बाद किसानों के पास आंदोलन चलाने के लिए कोई कारण नहीं है। प्रधानमंत्री के एक फैसले ने विपक्ष की रीति-नीति धराशाई कर दिया है।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय से चल रहे किसानों के आंदोलन को खत्म करा दिया है। पीएम के फैसले की हर तरफ तारीफ हो रही है। पर अफसोसजनक यह है कि कुछ विपक्षी दल अभी भी प्रधानमंत्री के इस निर्णय का विरोध कर रहें हैं और किसानों को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं। एसे लोगों को सरकार नहीं, किसान ही जवाब देंगे। किसानों को सब पता कि उन्हें बरगलाकर कौन राजनीति कर रहा है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के हित में लगातार काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के एक फैसले से उन सभी विपक्षियों को जवाब मिल गया है जो मोदी को अधिनायकवादी कहते हुए नहीं थकते थे। प्रधानमंत्री ने यह बता दिया कि वह अपनी बात किसानों को समझा नहीं पाए और कृषि क़ानून वापस लेते हुए देश से माफ़ी भी मांगी। यह प्रधानमंत्री का अधिनायकवाद नहीं बल्कि उनके हृदय में वास कर रही संवेदनशीलता और सहृदयता ही दर्शाता है। हर निर्णय को राजनैतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
कृषि कानूनों की वापसी को लेकर पूरे देश में चर्चाएं हो रही हैं, पीएम मोदी के ऐलान के बाद देशभर से नेताओं की प्रक्रियाएं सामने आ रही हैं। ऐसे में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी पीएम मोदी के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि देर आए, दुरुस्त आए। इसके अलावा सत्यपाल मलिक ने कहा कि पहले कर देते तो अच्छा था लेकिन मोदी जी ने बड़प्पन दिखाया। मैं किसानों की बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने शांतिपूर्ण आंदोलन चलाकर इतिहास बना दिया। सत्यपाल मलिक से जब पूछा कि आपने कहा था कि किसान की मांग को नजरअंदाज किया तो यूपी और संसद में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ेगा तो इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैंने कहा था कि मुझे मोदी जी से उम्मीद है। मैं मोदी जी को बधाई देता हूं। मोदी जी ने बड़प्पन दिखाया और किसानों की तकलीफ को समझा। किसानों कों बधाई देता हूं कि उन्होंने बहुत तकलीफ सही लेकिन डटे रहे। किसान आंदोलन में जाने वाली किसानों की जानों को लेकर जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि देर आए, दुरुस्त आए। क्या आने वालेचुनावों के चलते यह फैसला लेना सरकार की मजबूरी था, इस सवाल पर मलिक बोले कि इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता। मोदीजी बेसिकली प्रो किसान (किसान समर्थक) हैं। गुजरात में वे प्रो किसान थे। पता नहीं यहां इनको क्या हो गया। मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 20 अक्टूबर को एक एक इंटरव्यू में कहा था कि कृषि क़ानून पर केंद्र सरकार को ही मानना पड़ेगा, किसान नहीं मानेंगे।
यूं कहें कि अब सबकी भाषा बदल गई है। हर तरफ मोदी की तारीफ हो रही है। जानकारों का कहना है कि तीनों कृषि कानूनों को वापिस लेने की बात से भाजपा ने एक झटके में विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीन लिया है। विपक्ष इस कानूनों और किसान आंदोलन को लेकर उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी यूपी की सियासत गरमाए हुए था और चुनाव में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की उनकी तैयारी थी, लेकिन किसान वोट बैंक के नजरिए से देखें तो भाजपा ने उस नुकसान को कवर अप कर लिया है। वैसे विपक्ष चाहे तो आंदोलन के दौरान किसानों के साथ हुई त्रासदी और सैंकड़ों किसानों की मौत को अभी भी मुद्दा बना सकता है और सरकार को घेर सकता है, लेकिन यदि तब तक किसान अपने घर लौट जाते हैं तो फिर यह मुद्दा प्रभावहीन हो और बेअसर हो जाएगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विशेषकर जाट समुदाय में भाजपा के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था, जो विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी पड़ सकता था। देर से ही सही, लेकिन भाजपा ने चुनाव से ठीक पहले कृषि कानूनों, खासकर पश्चिमी यूपी को वापस लाने की कोशिश की है। वैसे भाजपा और उसके रणनीतिकार जानते हैं कि मिशन 2024 के लिए 2022 में भी यूपी में कमल खिलना बहुत जरूरी है। इस लिहाज से मोदी द्वारा किसानों के हित में लिया गया यह फैसला एतिहासिक है।
मोदी के फैसले का सबसे ज्यादा असर पंजाब में देखने को मिल सकता है। पंजाब की राजनीति के जानकार बताते हैं कृषि कानूनों की वजह से ही भाजपा और अकाली दल के ढाई दशक के रिश्ते टूट गए जिसकी बदौलत भाजपा पंजाब में राजनीति करती रही। अब कानून वापस लेने के बाद भाजपा को पंजाब में अपने लिए एक ठोस जमीन तैयार करने का मौका मिला है। तीनों कृषि कानूनों का वापिस लिए जाने की घोषणा करने से पार्टी को पंजाब में सबसे ज्यादा फायदा हो सकता है। इसमें कैप्टन अमरिंदर सिंह मददगार साबित हो सकते हैं। जल्दी ही पंजाब में एक नई सियासत की शुरुआत हो सकती है। दो महीने पहले जब कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद कांग्रेस के खिलाफ बगावत की थी, तो ऐसी अटकलें थीं कि मोदी सरकार कृषि कानूनों को वापस ले सकती है और पंजाब कांग्रेस में मची उथल-पुथल को राज्य में अपने आधार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। वैसे कृषि कानूनों को वापस लेने से भाजपा और अकाली के एक साथ आने के दरवाजे भी खुल गए हैं। हालांकि 2022 के पंजाब चुनाव में इसकी संभावना कम है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले इन पुराने दोस्तों को एक बार फिर साथ देखा जा सकता है।
बहरहाल, आज मोदी जी ने समस्त विपक्षी नेताओं की आशाओं और आकांक्षाओ पर पानी फेरते हुए तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेकर और एमएसपी व अन्य किसान समस्याओं के लिए कमिटी बनाने का निर्णय लेकर उनके चुनावों में सबसे बड़े मुद्दे की हवा निकाल दी। अब यह तो नहीं हो सकता की उनकी सारी उम्मीदों को धराशाई कर उन्हें अलाप विलाप भी ना करने दिया जाए। जो लोग सुबह से विलाप कर रहे हैं, करने दो, किसान और देश की जनता इस निर्णय के मायने समझ रही है। देश हित में यही काफ़ी है। आखिर में यही कहा जा सकता है कि मोदी है तो मुमकिन है।
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