अपराध के 50 % मामले भी नहीं सुलझा पाती पुलिस, साढ़े चार लाख मामलों को सुलझाने में दिल्ली पुलिस नाकाम
इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2022 में अपराध के तीन लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं. लेकिन अपराध के पचास फीसदी से
ज्यादा मामलों को पुलिस सुलझा ही नही पाई है.
पिछले तीन साल के आंकड़ों से पता चलता है कि अपराध के साढ़े चार लाख से ज्यादा मामलों को सुलझाने में पुलिस नाकाम रही है. पुलिस की अपराध को सुलझाने की दर पचास फीसदी से भी कम है.
इससे पता चलता है कि लोगों को अपना शिकार बनाने वाले लाखों अपराधी खुले घूम रहे हैं.
राज्य सभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एमडीएमके के सांसद वाइको और आम आदमी पार्टी के सांसद नारायण दास गुप्ता द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में अपराध के यह आंकड़े दिए हैं.
अपराध सुलझाने की दर कम-
दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2022 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध के कुल 301882 मामले दर्ज किए हैं. पुलिस सिर्फ 137584 मामले ही सुलझा पाई है.पुलिस ने 127552 आरोपियों को गिरफ्तार किया है.
वर्ष 2021 में आईपीसी के तहत अपराध के कुल 293303 मामले दर्ज किए गए. पुलिस सिर्फ 136609 मामले ही सुलझा पाई है. पुलिस ने 134486 आरोपियों को गिरफ्तार किया है.
वर्ष 2020 में आईपीसी के तहत अपराध के कुल 250324 मामले दर्ज किए गए. पुलिस सिर्फ 114431 मामले ही सुलझा पाई. पुलिस द्वारा 114668 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.
साढे़ चार लाख मामले अनसुलझे-
इस तरह वर्ष 2020, 2021और 2022 में आईपीसी के तहत अपराध के कुल 845509 मामले दर्ज किए गए. पुलिस इस अवधि में कुल 388624 मामलों को ही सुलझा पाई है. कुल 376706 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है.
काबलियत पर सवालिया निशान-
इन आंकड़ों से पता चलता है कि दर्ज किए गए अपराध के आधे से ज्यादा मामलों में पुलिस अपराधियों का पता लगाने/ पकड़ने में नाकाम रही है.
इससे पुलिस की कार्य प्रणाली और तफ्तीश करने की पेशेवर काबलियत पर सवालिया निशान लग जाता है.
अन्य अधिनियम-
साल 2020, 2021और 2022 में यूएपीए, शराब, जुए, आर्म्स एक्ट आदि जैसे विभिन्न अधिनियमों के तहत क्रमशः15746,13086 और 18392 मामले दर्ज किए गए. कुल 65161 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया.
महिलाओं के खिलाफ अपराध-
वर्ष 2022 में बलात्कार के 2084 मामले दर्ज किए गए हैं. वर्ष 2021 में बलात्कार के 2076 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में बलात्कार के क्रमशः 2135, 2168 और 1699 मामले दर्ज किए गए थे .
महिला का शील भंग करने के इरादे से उस पर हमला करने के अपराध (धारा 354) के वर्ष 2022 में 2509 मामले दर्ज किए गए हैं. वर्ष 2021 में 2551 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में क्रमशः 3314 , 2921 और 2186 मामले दर्ज किए गए थे.
महिला के शील का अपमान करने के अपराध (धारा 509) के वर्ष 2022 में 403 मामले दर्ज किए गए हैं. वर्ष 2021 में 440 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में क्रमशः 599 , 495 और 434 मामले दर्ज किए गए थे.
झपटमारों का आतंक-
दिल्ली के लोग झपटमारों/चेन स्नैचरों से बुरी तरह आतंकित और त्रस्त हैं लेकिन पुलिस ने आंकड़ों की बाजीगरी से एक बार फिर साबित कर दिया है कि झपटमारी के अपराध वर्ष 2022 में भी कम हुए हैं. पुलिस ने साल 2022 में जंजीर झपटमारी के सिर्फ 996 मामले दर्ज किए हैं. साल 2021 में 1133 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में क्रमशः 1822 , 1604 और 1184 मामले दर्ज किए गए थे.
डकैती-
वर्ष 2022 में डकैती के मामले भी कम दर्ज हुए हैं. पुलिस ने साल 2022 में डकैती के 1808 मामले दर्ज किए हैं. साल 2021 में डकैती के 2333 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में डकैती के क्रमशः 2444 , 1956 और 1963 मामले दर्ज किए गए थे.
चोरी-
वर्ष 2022 में भी चोरी के मामलों में वृद्धि हुई हैं. पुलिस ने साल 2022 में चोरी के 198263 मामले दर्ज किए हैं. साल 2021 में 190598 मामले दर्ज किए गए थे. वर्ष 2018, 2019 और 2020 में चोरी के क्रमशः 188756 , 239719 और 169474 मामले दर्ज किए गए थे. चोरों से लोग सबसे ज्यादा त्रस्त हैं, लेकिन पुलिस चोरों को पकड़ने के लिए ईमानदारी/ गंभीरता से कोशिश ही नहीं करती.
आंकड़ों की बाजीगरी की परंपरा –
सच्चाई यह है कि अपराध दिनों दिन बढ़ रहें हैं. पुलिस के आंकड़े हमेशा हकीकत से कोसों दूर होते हैं। आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध को कम दिखाने के लिए मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा जारी है। ऐसा करके पुलिस एक तरह से अपराधियों की मदद करने का गुनाह ही करती है.
अपराध और अपराधियो पर अंकुश लगाने का सिर्फ और सिर्फ एकमात्र रास्ता यह है कि पुलिस अपराध के मामलों को सही धारा में दर्ज करें।
पुलिस के इन आंकड़ों से भी अपराध सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने में पुलिस की नाकामी उजागर होती हैं।
आईपीएस जिम्मेदार-
अपराध के मामले सही दर्ज न करना और अपराधियों को पकड़ने में नाकामी के लिए आईपीएस अफसर ही पूरी तरह जिम्मेदार है।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखा कर ही पुलिस कमिश्नर, डीसीपी,एसएचओ खुद को सफल अफसर दिखाना चाहते हैं।
आंकड़ों से अपराध कम दिखाना गृहमंत्री से लेकर पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एसएचओ तक सब के लिए अनुकूल रहता है।
जबकि सच्चाई यह है कि अपराध सही दर्ज होगा, तभी अपराध की सही तस्वीर सामने आएगी और तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना कामयाब हो सकती हैं।
पुलिस अपराध को सुलझाने और अपराधियों को पकड़ने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश कर अपनी पेशेवर काबिलियत का परिचय दें। आसानी से सुलझने वाले अपराध को सुलझा कर अपनी पीठ थपथपाने की बजाए उन अपराध को भी सुलझाए, जिनमें वाकई पुलिस की तफ्तीश की काबिलियत का पता चलता है।
जितना दिमाग और मेहनत पुलिस अपराध कम दिखाने में लगाती है अगर उसकी बजाए ईमानदारी से सही धारा में एफआईआर ही दर्ज करने लगे तो अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण लग सकता हैं.
लुटे पिटे लोगों को धोखा देते.अफसर-
दिल्ली में लुटे पिटे लोगों को पुलिस अफसरों द्वारा भी धोखा दिया जाता है.
अपराध का शिकार व्यक्ति पुलिस पर भरोसा करके एफआईआर दर्ज कराने थाने जाता हैं.
लेकिन अपराध का मामला आईपीसी की सही धारा में दर्ज न करके एसएचओ/डीसीपी लुटे पिटे व्यक्ति को धोखा देने और उसका भरोसा तोड़ने जैसा अक्षम्य अपराध करते है. ऐसा करके अफसर एक तरह से जानबूझकर अपराधी की मदद करने का अपराध करते हैं.
जागो लोगों जागो-
लोगों को भी जागरुक होना चाहिए लूट, झपटमारी और मोबाइल/ पर्स चोरी के मामले में सही धारा में एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस के सामने अड़ना चाहिए।
पुलिस ऐसे मामलों में लोगों को थाने, कोर्ट के चक्कर काटने और अपराधी को पहचानने के ख़तरे बताने के नाम पर डरा देती हैं। ऐसा पुलिस सिर्फ इसलिए करती है ताकि उसे एफआईआर दर्ज ना करनी पड़े। क्योंकि अगर एफआईआर दर्ज की तो अपराध में वृद्धि उजागर होगी और पुलिस पर अपराध सुलझाने का दबाव बनेगा।
लूट, झपटमारी, चोरी के ज्यादातर मामलों में शिकायतकर्ता से यह भी कह दिया जाता है कि वह खुद ऑन लाइन मोबाइल/पर्स की खो जाने या चोरी की रिपोर्ट दर्ज कर दे.
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