नई दिल्ली से स्निग्धा श्रीवास्त्तव की विशेष रिपोर्ट
26 अप्रैल की रात लगभग 11: 30 बजे का समय,पश्चिम अगरतला का पूरा शहर लगभग सोया हुआ था। पर कोरोना महामरी को लेकर पश्चिम त्रिपुरा के जिलाधिकारी डॉ शैलेश कुमार यादव स्वभावगत रूप से काफी सजग थे, चौकंन्ने थे। उसी वक़्त उनके मोबाइल पर कई कॉल एक साथ आये…वो घबरा से गए। काल करने वाला खुद को मुख्यमंत्री बिप्लब देब का खास आदमी बता रहा था, वजह थी कोरोना के नियमों का घोर उल्लंघन…वो भी शहर के बीच एक विवाह भवन में..तमाम परिस्थितियों के मद्देनजर शैलेश यादव ने स्थानीय थाना को फोन किया और कुछ पुलिस वाले के साथ उस घटना स्थल पर पहुंचे। वहां का दृश्य देखते ही उनका पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, क्योंकि वो कोरोना का प्रकोप खुद भी झेल रहे थे। उनका पूरा परिवार भी कोरोना से संक्रमित था। उनसे दूर दिल्ली में…पर वो एक मुस्तैद राष्ट्रवादी सिपाही की तरह हज़ारो किलोमीटर दूर अगरतला में अपना फ़र्ज़ का निर्वहन कर रहे थे।
जैसे ही वो उस विवाह स्थल पर पहुंचे, वहां पर अफरा तफरी मच गयी। वहां के लोगो को ये सहज अनुमान नहीं था कि जिले का सबसे बड़ा अधिकारी देर रात वहां पहुँच भी सकता है। शैलेश यादव को भी ये भी आश्चर्य हुआ कि उनसे पहले वहां पर कई पुलिस वाले कुछ मीडिया टीम के साथ वहां पहुंचे हुए थे।
घटना स्थल पर पहुँचने और वहां का जो दृश्य डीएम शैलेश यादव ने देखा, इससे उनका खून खौल उठा। ऐसा किसी के साथ हो सकता है, होना चाहिए…जो शैलेश ने किया। मेरे मत से शैलेश यादव ने जो भी कार्यवाही की..सही किया। किसी भी जिम्मेदार अफसर को ऐसा करना चाहिए था। उनके द्वारा घोषणा के वावजूद उस विवाह स्थल से कोई बाहर नहीं निकल रहा था। अंत में वह खुद अन्दर जाकर सबको बाहर निकालने का उपक्रम शुरू किया। उस तात्कालिक गुस्से से तिलमिलाए शैलेश ने कुछ लोगो को हाथ से भी बाहर निकालने की कोशिश की। उसमें उस विवाह के पंडित भी आये..दुल्हे राजा भी आये..उनका परिवार भी आया। परन्तु उस कोरोना काण्ड को रोकने के लिए जहाँ डीएम शैलेश की वाहवाही होनी चाहिए था, परन्तु हुआ उसका उल्टा। उनके धक्का-मुक्की और पंडाल खाली करने को लाकर किये गए उपक्रमों को एक खलनायक की तरह पेश किया गया। इससे इस वायरल युग में डीएम् शैलेश यादव की काफी किरकिरी हुई। जिसके लिए वो कतई जिम्मेदार नहीं थे। इस फेक न्यूज़ के दौर में कई अखबारों ने तो बेचारे शैलेश के निलंबन किये जाने की खबरे भी चलवा दी। बिना शैलेश यादव का पक्ष जाने…बिना किसी आधिकारिक पुष्टि के…उसी वायरल वीडियो में अंत में एक बेहतर फुटेज भी दिखाया गया है। जिसमे विवाह पंडाल के अन्दर का शैलेश और बाहर मीडिया से बातचीत करते शैलेश में काफी फर्क दिख रहा था। कहते है कि शासन को जनप्रिय होना चाहिए न कि जन विरोधी। ताज़ा स्थिति के अनुसार जिस पंडित के साथ धक्कामुक्की का आरोप था,उनसे भी शैलेश यादव ने माफ़ी मांग ली है। प्रदेश और देश का ब्राह्मण समाज फिलहाल शांत हो गया। बताते हैं जिस पंडित को वायरल विडियो में दिखाया गया था,उनका नाम पंडित सर्वानन्द झा है।
बताया जा रहा हैं कि इस पूरे एपिसोड में डीएम् शैलेश यादव फ़िल्मी कहानी की तरह एक मोहरा बनाये गए थे। मोहरा बनाया खुराफाती व चालबाज़ कहे जाने वाले सीएम बिप्लब देब और उनके सिपहसालारो ने…रंगीन मिजाज़ कहे जाने वाले बिप्लब के चरित्र पर हिंदी फिल्मो का बड़ा प्रभाव बताया जाता हैं। इसलिए उनके लगभग ज्यादातर निर्णय फ़िल्मी स्टायल के होते हैं। बिप्लब के बारे में कहा जा रहा है कि भाजपा जैसी पार्टी के सीएम होते हुए वह आजकल अपनी कारगुजारियों से भाजपा के दुश्मन बन गए हैं। केंद्र में एक ताक़तवर कहे जाने वाले नेता का उन पर वरदहस्त बताया जाता है। बिप्लब देब के खिलाफ त्रिपुरा के 20 से ज्यादा विधायको ने भाजपा अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री श्री मोदी और संघ के कई वरिष्ठ नेताओ को हर तरह से शिकायत कर चुके हैं, पर कांग्रेस को कोसने वाली भाजपा अब उनके कुकर्मो से भी आगे हो गयी लगती हैं। त्रिपुरा के कई विधायको से बातचीत में ये स्पष्ट हुआ है कि यदि समय रहते बिप्लब देब को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाया गया तो त्रिपुरा में भाजपा का खात्मा हो जायेगा। लाखो भाजपा कार्यकर्ताओ का स्वप्न चकनाचूर हो जायेगा। करीब 25 वर्षो के बाद पहली बार भाजपा त्रिपुरा को वाम दलों के तानशाही चंगुल से मुक्त किया गया था, लेकिन बिप्लब देब के रहते फिर से वहां वाम दलों का कब्ज़ा हो सकता है। कहते हैं कि चारित्रिक रूप से भी भ्रष्ट बिप्लब देब अवसर मिलने पर वाम दलों के साथ भी जा सकते हैं।
इस घटना ने त्रिपुरा की राजनीति व शासन पर कई प्रकार के सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह उठता है कि 26 अप्रैल की रात को पश्चिम त्रिपुरा के जिलाधिकारी डॉ शैलेश कुमार यादव की एक स्पष्ट अनियंत्रित कार्रवाई हुई क्यों.? ऐसा क्या हुआ जो वो अपना आपा खो बैठे. इतने उत्तेजित कि उन्होंने हॉल में किसी को नहीं बख्शा..वहां पर मौजुद पंडित जी पर भी हाथ उठा दिया…..दरअसल उनकी ये अनियंत्रित औऱ अमानवीय कार्रवाई राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी के सत्ता पक्ष के खराब शासन को उजागर करता है। डॉ शैलेश के इस सात मिनट के “एक्शन वीडियो” ने भाजपा व उनके शासन की छवि ख़राब करते हुए वैश्विक समुदाय को नाराज कर दिया है। इससे लोग उनके करियर को बर्बाद करने में लग गए। बताया जाता है कि शैलेश को उकसाने के लिए घंटों की लंबी योजना बनाई गई थी जिसके बारे में ना वो जानते थे ना ही जनता जानती है। उस रात्रि कर्फ्यू के दौरान विवाह भवन के आसपास तैनात पुलिस बल की मूक भूमिका के बारे में भी कई कहानियां घटना के अब तीन दिन बाद सामने आने लगी है। घटना की जांच करने के लिए दो सदस्यों की समिति गठित करने के बाद, जांचकर्ताओं के सामने दो बुनियादी सवाल उठाए गए हैं।
पहला ये कि नॉर्थ गेट जंक्शन पर बड़ी संख्या में पुलिस की तैनाती के बावजूद, पुलिस ने हॉल को निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक चलने की अनुमति क्यों दी? दूसरा, 11.30 बजे के बाद अचानक शैलेश विशिष्ट मैरिज हॉल से बाहर क्यों आए?
जानकारी के अनुसार, इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ त्रिपूरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और उनके करीबी शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ का है जिन्होंने त्रिपुरा के प्रद्योत किशोर देबबर्मन पर दबाव बनाने के लिए शैलेश यादव को अपना मोहरा बनाया था। बता दें कि बिपलब के विरोधी प्रद्योत किशोर देबबर्मन ने त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (ADC) चुनाव में जीत हासिल की थी। शैलेश यादव ने जिन दो विवाह स्थलों पर छापे मारें उसमें से एक जगह खुद प्रद्योत का है तो दूसरा उनकी बहन प्रज्ञा का।
इसी परिपेक्ष्य में दरअसल एडीसी चुनावों से पहले शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने पिछले बजट सत्र के दौरान प्रद्योत का विधानसभा में भी अपमान किया था। एडीसी चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले, प्रद्योत को पुलिस के सामने मोहनपुर उप-मंडल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) कार्यालय में उनके निर्वाचन क्षेत्र में नाथ के अनुयायियों नें हमला भी किया था। न तो एसडीएम और न ही उप-विभागीय पुलिस अधिकारी (एसडीपीओ) ने अपराधियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई की, हालांकि दोनों ने मीडिया में स्वीकार किया कि हमलावरों को रतन लाल नाथ ने भेजा था। राजनीति में एक नए व्यक्ति का आना और एडीसी चुनाव में जीतना भाजपा नेता बिप्लब कुमार देब और रतन लाल नाथ की कथित राजनीति पर एक जोरदार थप्पड़ था।
सूत्रों के अनुसार, बाद में बिप्लब और रतन ने बीजेपी की परिषद बनाने के लिए प्रद्योत टीम के कुछ चुने हुए सदस्यों को लुभाने की भी कोशिश की थी , लेकिन वे असफल रहे.उसके बाद बिप्लब देब को अपने केन्द्रीय नेताओं के सामने शर्मिंदा होना पड़ा था । देब ने केंद्रीय भाजपा नेताओं को आश्वासन दिया था कि अगर उनके विरोधी विधायकों को चुनाव प्रचार व कार्यकर्मो से दूर रखा गया तो वे एडीसी चुनाव को जरूर जीतेंगे। बता दें कि सीएम बिप्लब देव के भाजपा विरोधी लोगों को बढ़ावा देने और उनके कुशासन के कारण राज्य में 20 से अधिक विधायक उनके खिलाफ हैं। इसके बावजूद केंद्रीय पार्टी के नेताओं ने उन पर भरोसा किया,जिसकी वजह से भाजपा की प्रदेश में अपमानजनक हार हुई।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि बिप्लब कुमार देब और उनकी टीम के कुशासन के कारण लोगों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया है। आम जनता भाजपा के खिलाफ कम बिप्लब और उसकी कथित टीम के खिलाफ ज्यादा हैं .उन्होंने कहा कि इसके लिए वे पीएम मोदी, गृह मंत्री श्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी बात कर चुके है कि मुख्यमंत्री देब को तत्काल रूप से हटा दिया जाए।
अब बात करते है घटना वाले रात की….रिपोर्ट के अनुसार, डॉ शैलेश कुमार यादव को उस रात मुख्यमंत्री बिप्लब देब और मंत्री रतन लाल नाथ का हवाला लेते हुए कई अज्ञात नंबरों से बार-बार कॉल आ रहे थे जिसमें उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ काम करने और प्रद्योत किशोर देबबर्मन का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। फोन करने वालों ने कहा था कि जिला मजिस्ट्रेट शैलेश यादव .. प्रद्योत के विअवः स्थलों के खिलाफ कोई कारवाई नहीं कर रहे हैं जबकि वो कर्फ्यू के दौरान बड़ी भीड़ एकत्रित कर रहे है। कॉल करने वालों ने उन्हें चेतावनी दी थी कि उन्होंने मुख्यमंत्री से बात की है कि अगर डीएम ने हॉल को बंद नहीं करवाया तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब डीएम शैलेश ने आव देखा ना ताव अपने दो पुलिसकर्मियों के साथ सम्बन्धित विवाह भवन पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ कि वहां पूर्वी अगरतला पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी सरोज भट्टाचार्जी और केबल चैनल के तीन व्यक्तियों सहित कम से कम 20 सुरक्षाकर्मियों का जमावड़ा पहले से था। इसलिए डीएम शैलेश भी उस समय वहां कन्फ्युज्ड हो गए।
दुर्भाग्यवश डीएम् यादव उस समय वहां की वास्तविक साजिश को समझ नहीं पाए औऱ बस पांच मिनट के अंदर कैमरामैन ने बहुत से लोंगो को वहां बुला लिया। सबसे बड़ी बात वहां मौजुद पुलिसकर्मीयों को जिलाधिकारी को देख कर बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई, बल्कि वे बहुत खुश नजर आ रहे थे। जब शैलेश ने सरोज भट्टाचार्जी से पूछा था कि कर्फ्यू के दौरान मैरिज हॉल पुलिस की मौजूदगी में कैसे काम कर रहे हैं, तो उन्होंने भी ठीक से जवाब नहीं दिया और उन्हें नजरअंदाज कर दिया। डीएम शैलेश हॉल की ओर बढ़े, जहाँ दूल्हा-दुल्हन और पुजारी सहित लगभग 78 लोग मौजूद थे, लेकिन तीन सिपाहियों के अलावा कोई भी पुलिसकर्मी उनके साथ हॉल के अंदर नही गया। हॉल के बाहर और अंदर पुलिस के व्यवहार को देखने के बाद शैलेश यादव को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने अपना सारा नियंत्रण खो दिया।
जब उन्होंने मैरेज हॉल में कर्फ्यू के नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों आयोजकों से पूछा तो उनमें से किसी ने भी उन्हें ठीक से जवाब नहीं दिया, बल्कि तर्क दिया कि उन्हें रात 11.30 बजे के बाद विवाह समारोह करने की अनुमति दी गई थी। तब उन्होंने अन्य पुलिसकर्मी को 144 सीआरपीसी का उल्लंघन करने के लिए उन्हें सील करने का आदेश दिया तो किसी पुलिसकर्मी ने उनकी नहीं सूनी। उन्होंने एक सब-इंस्पेक्टर से कहा कि वे अंदर के लोगों की गिनती करें, तब उसने सीधे मना कर दिया… जाहिर है अब डीएम को गुस्सा आना ही था। चिढ़े और नाराज डीएम ने अब अन्य पुलिसकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। शैलेश ने दो निजी सुरक्षा गार्डों के साथ डाइनिंग स्पेस सहित अलग-अलग स्थानों से लोगों को बाहर निकालना शूरू कर दिया। हाथापाई भी हुई.. उन्होंने दूल्हे को धक्का दिया, अनुमति के आदेश को फाड़ दिया और तो और पुजारी को भी धक्का दिया । उसी समय दूल्हे का भाई बीच में आया औऱ उसने कर्फ्यू का उल्लंघन करने वाले भीड़ को सही ठहराना शुरू कर दिया। जिसके बाद नाराज जिला मजिस्ट्रेट ने उसके साथ भी दुर्व्यवहार किया और पुलिस को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए कहा।
दिलचस्प बात यह है कि पांच मिनट के भीतर घटना का वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो गया.. जो केवल तभी संभव माना जाता है जब घटना की कहानी का रूपांतरण पहले से प्लान किया गया हो। कैमरे वालों को कैमरे दृश्य को कैसे कैप्चर करना है यह भी पहले ही सीखाया गया हो। तभी तो कैमरे वालों ने सभी दृश्यों को अलग- अलग तरीके से कैप्चर किया और वीडियो सभी एंगल से विल्कुल साफ दिखाई दिए।
किसी ने अभी तक यह सवाल नहीं उठाया है कि विशेष स्थान पर उल्लंघन के खिलाफ पुलिस क्यों मूकदर्शक थी जबकि वे अन्य जगहों पर निर्दोष लोगों को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराने के लिए बहुत तानाशाही करते है, आए दिन ऐसा देखा जाता है कि कोरोना प्रोटोकाल का पालन ना करने वालें लोगो को पुलिस किस तरह पीटती है,अभद्र व्यवहार करती है, फिर उस खास जगह पर इतनी बड़ी संख्या में कर्फ्यू के बाद भी बाकी पुलिस वाले मूकदर्शक क्यों बने, उन्होंने डीएम की बात मानने से क्य़ों इंकार किया।जिला मजिस्ट्रेट के साथ पुलिसकर्मियों के अभद्र व्यवहार से साफ पता चलता है कि वे उल्लंघनकर्ताओं के साथ है और घटना की योजना के बारे में वे पहले से अच्छी तरह से वाकिफ़ थे।
अगर दूसरे पहलू से देखा जाए तो डीएम शैलेश की कार्रवाई को काफी हद तक सही माना जाना चाहिए। देश में कोरोना मामलों में इतनी तेजी के बावजुद इतनी बड़ी मैरिज पार्टी को अनुमति क्यों दी गई….इतनी बड़ी संख्या में वहां लोग एकत्रित क्यों हुए…अगर उस दौरान एक भी व्यक्ति कोरोना संक्रमित होता तो पार्टी के सभी लोग चपेट में आ सकते थे….तब भी लोग सवाल प्रशासन पर ही उठाते …ये और बात है कि इस पूरी कार्रवाई का हरजाना मात्र एक व्यक्ति को भूगतना पड़ा और वो थे डीएम शैलेश यादव। अगर डीएम यादव उन अज्ञात फोन करने वाले की बात ना मानते तो भी उन पर कार्रवाई हो सकती थी, उन्हें सस्पेंड किया जा सकता था। हालांकि वो बस मोहरा थे सत्ता पर बैठे राजनीतिकारों के जिन्होंने अपने राजनीति बदले के लिए डीएम शैलेश यादव का सहारा लिया। खबरे तो यह भी आने लगी थी कि डीएम शैलेश यादव को संस्पेंड कर दिया गया है, जो कि सरासर गलत है। डीएम यादव अपने अमानवीय व्यवहार के लिए पहले ही माफी मांग चुके है और अपने पद पर यथावत हैं।
चालाक सीएम् ने खुद को निष्पक्ष जताने के लिए उलटे डीएम् शैलेश यादव को नाटकीय ढंग से निलंबित करने की योजना बनायीं थी,लेकिन मुख्य सचिव व एनी वरिष्ठ अफसरों का आक्रामक रुख के मद्देनजर अपने एक्शन को उन्हें समेटने व वापस लेने को मजबूर होना पड़ा.बताया जा रहा है कि इससे भविष्य में भाजपा सरकार और संगठन को जन हित में कई प्रकार के नुकसान हो सकते हैं।
त्रिपुरा में बिप्लब देब की प्रतिशोधात्मक राजनीति ने भाजपा को बर्बाद कर दिया है, सरकार को पूरी नौकरशाही में अलोकप्रिय और अब शत्रुतापूर्ण बना दिया। उनकी अदूरदर्शी राजनीति अब बीजेपी के लिए दोधारी तलवार बन गई है। वीडियो के अनुसार -शैलेश यादव का अनियंत्रित व्यवहार सरकार को हिंदू संगठनों, भावनात्मक समुदाय को संतुष्ट करने और पुलिस की भावना को खत्म करने के लिए उसके खिलाफ कुछ कार्रवाई करने के लिए मजबूर करेगा। दूसरी ओर, अगर सरकार शैलेश यादव के खिलाफ भी कोई कार्रवाई करती है, तो प्रशासन पर कई प्रभाव पड़ेंगे। कोई भी अधिकारी किसी भी राजनीतिक व्यक्ति के निर्देश के तहत काम नहीं करेगा और नौकरशाही सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ प्रतिशोध की भावना से काम करेगी।
बिप्लब देब सरकार के सत्ता में आने के बाद, CPI-M से जुड़े सभी अपराधियों ने अपने अपराधिक कार्यों को पूरा करने के लिए भाजपा में शरण ले ली है। उन्हें पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो मिले हैं और निर्णय लेने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। उनके सभी अवैध कारोबार भी जारी हैं और जो वास्तविक भाजपा समर्थक है वे उनके निशाने पर है। देखना है आपने वाले दिनों में त्रिपुरा की इस प्रतिशोधात्मक राजनीति प्रदेश को किस दिशा में ले जाती हैं।
*स्निग्धा श्रीवास्तव
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