धनतेरस के साथ ही मनाया जाएगा प्रदोष व्रत, जानें इसका महत्‍व और पूजन विधि

प्रदोष व्रत इस बार धनतेरस के दिन पड़ रहा है, जिससे व्रत का महत्व काफी बढ़ गया है. प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है. मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था. माना जाता है श्राप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था. तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी।

प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है, जो साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हुए उसका कल्याण करती हैं. प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा दिन और वार के अनुसार बदल जाता है. गुरुवार के दिन पड़ने के कारण आज गुरु प्रदोष व्रत है. ऐसे में चलिए क्यों खास होता है ये व्रत और क्या है इसका विशेष महत्व है।

प्रदोष व्रत पूजा विधि
सबसे पहले उठ कर स्‍नान करें. इसके बाद पवित्र होकर बादामी रंग के वस्‍त्र धारण करें. एक सफेद कपड़े पर स्‍वास्तिक बनाएं. अब भगवान गणेश जी का ध्‍यान करें और उस पर चावल, चावल चढ़ाएं. इसके बाद महादेव की प्रतिमा विराजित करें और उन्‍हें सफेद फूलों के हार पहनाएं. इसके बाद दीप और धूप भी जला दें. अब ओम नम: का 108 बार जाप करें और शिव चालीसा, शिव स्‍तुति और शिव आरती करें. इसके बाद भगवान शिव को सफेद मिठाई का भोग लगाएं. इसके बाद पूरे दिन निराहार रहते हुए प्रदोषकाल में भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं

प्रदोष व्रत का है विशेष महत्व

प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है. इस व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्र देव ने महाराजा दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था. मगर इन सबमें उन्‍हें एक बहुत प्रिय थी. इस बात से क्रोधित होकर महाराजा दक्ष ने चंद्र देव को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया. कुछ समय बाद यह श्राप उन्‍हें लग गया और वह मृत्‍यु अवस्‍था में पहुंच गए. इसके बाद महादेव की कृपा से प्रदोष काल में चंद्र देव को पुनर्जीवन मिला. इसके बाद से ही त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत रखा जाने लगा.

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