संविधान दिवस समारोह में शामिल हुईं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु

हमारा संविधान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति का स्रोत है: राष्ट्रपति

  • राष्ट्रपति ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम में भाग लिया
  • कहा, भारत का संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार
  • बच्चों के लिए संविधान का बाल-सुलभ संस्करण तैयार करने पर दिया बल
  • तीनों संवैधानिक अंगों के समन्वय से विकसित भारत के लक्ष्य पर विश्वास व्यक्त किया

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27 नवंबर: भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (26 नवंबर, 2025) नई दिल्ली में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में भाग लिया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने संविधान के संस्थापकों को आदरपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने विश्व इतिहास में सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा संविधान विश्व इतिहास के सबसे बड़े गणतंत्र का स्रोत है। यह विविधता में एकता का स्रोत है, विषमताओं की पृष्ठभूमि में स्थापित समानता का स्रोत है और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में शांतिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्रांति का स्रोत है। यह व्यक्तिगत गरिमा, राष्ट्रीय एकता, बहुस्तरीय शासन प्रणाली, निरंतरता और परिवर्तन का आधार है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का संविधान हमारा राष्ट्रीय ग्रंथ है और संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप संस्थाओं और व्यक्तिगत जीवन का संचालन करना प्रत्येक नागरिक का राष्ट्रीय कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि आम जनता से लेकर विशेषज्ञों तक संविधान में आस्था लगातार बढ़ी है। “इस विषय पर संविधान क्या कहता है?”—यह प्रश्न किसी भी व्यवस्था की उपयुक्तता का मानदंड बन चुका है।

उन्होंने कहा कि संविधान एक विधायी दस्तावेज़ होने के बावजूद व्यापक जनभागीदारी का परिणाम है और लोगों के लिए एक संदर्भ ग्रंथ बन गया है। भावी पीढ़ियों में संविधान के प्रति जुड़ाव बढ़ाने के लिए बच्चों को रोचक और सरल परिचय दिया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि संविधान का एक बाल-सुलभ संस्करण तैयार किया जाए, जिसमें संविधान विशेषज्ञों और भारतीय भाषाओं के बाल साहित्य लेखकों का संयुक्त योगदान हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि जब बच्चे का जीवन-दृष्टिकोण निर्माण की अवस्था में होता है, तब संवैधानिक आदर्शों और कर्तव्यों को आत्मसात करके अच्छे नागरिक का व्यक्तित्व विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने विस्तृत विचार-विमर्श के बाद संसदीय प्रणाली को चुना था, जिसमें कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों और प्रक्रियाओं के स्पष्ट प्रावधान शामिल हैं।

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि शासन के ये तीनों अंग समन्वय के साथ कार्य करते हुए संवैधानिक व्यवस्था को और सुदृढ़ करेंगे। इससे नागरिकों को लाभ होगा और भारत विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ेगा।

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि अन्य सेवाओं की तरह न्याय भी घर-द्वार पर उपलब्ध होना चाहिए और ज़मीनी स्तर पर कानूनी सहायता की सुलभता अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें स्वतंत्रता के बाद से अब तक हुई प्रगति की समीक्षा करते रहना चाहिए।

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