समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 01 अगस्त: एनआईए अदालत ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। इस फैसले ने हिंदू आतंकवाद की बहस फिर से गरमा दी है। इस सिलसिले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने एक नया विमर्श शुरू किया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि ‘भगवा आतंकवाद’ जैसी अभद्र अभिव्यक्ति के बजाय इसे ‘सनातन आतंकवाद’ कहा जाना चाहिए।
‘भगवा’ शब्द पवित्र, नहीं अपमान योग्य
चव्हाण ने कहा कि भगवा रंग भारत की पवित्रता और वीरता का प्रतीक है—जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज और स्वतंत्रता आंदोलन। इसलिए किसी अपमानजनक संदर्भ में ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल गलत है। उन्होंने कहा, “भगवा की बजाय हिंदू या सनातन आतंकवाद कहना उचित है।”
'भगवा एक पवित्र शब्द है…इस शब्द का अपमान मत करिए, भगवा नहीं, हिंदू या सनातन आतंकवाद कहिए', कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने दिया विवादित बयान. कहा, 'देश की पहली आतंकी घटना गांधी जी की हत्या थी'#MalegaonVerdict #PrithvirajChavan #Bhagwa #Hindus #Congress | #ZeeNews pic.twitter.com/zUSEYmnIUy
— Zee News (@ZeeNews) August 1, 2025
2014 में मामला बंद क्यों नहीं किया गया?
पूर्व मुख्यमंत्री ने बीजेपी सरकार पर सवाल उठाया कि अगर आरोपियों को निर्दोष माना जाता था तो साल 2014 में मुकदमा वापस क्यों नहीं लिया गया? अब जब अदालत में दोष सिद्ध नहीं हुआ, तो ग्यारह वर्षों तक मामले को खींचना लोकतंत्र और न्याय दोनों के साथ छल है।
क्या हिंदू आतंकवाद से इंकार करना इतिहास से धोखा है?
चव्हाण ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर भी निशाना साधा। हाल ही में फडणवीस ने कहा था कि “हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।” इसके जवाब में चव्हाण ने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और हिंदू आतंकवादी न हो सकता, यह विचार इतिहास के साथ धोखे जैसा है।
उन्होंने कहा, “महात्मा गांधी की हत्या भारत की पहली आतंकी घटना थी और नाथूराम गोडसे भी एक हिंदू था।” ऐसे में किसी विशेष धर्म को आतंकवाद से अलग ना करना ही सही दृष्टिकोण है।
मालेगांव ब्लास्ट केस की बरी करने वाली अदालत के फैसले ने हिंदू आतंकवाद पर बहस को तेज कर दिया है। पृथ्वीराज चव्हाण का ‘सनातन आतंकवाद’ शब्दार्थ इस बहस को एक नई दिशा देता है: कि प्रतीकों और सांकेतिक रंगों से ऊपर उठकर वास्तविक संदर्भों पर विचार करना चाहिए। जब आप किसी धर्म की पवित्रता को ठेस पहुँचाने वाले शब्द इस्तेमाल करते हैं, तो केवल राजनीति नहीं, बल्कि सांस्कृतिक घाव भी गहरे होते हैं।
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