समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 अप्रैल। बेंगलुरु भारत की न्यायपालिका एक बार फिर सुर्खियों में है, इस बार कारण है कर्नाटक हाईकोर्ट के चार न्यायाधीशों के संभावित ट्रांसफर को लेकर उपजा विवाद। धारवाड़ पीठ से जुड़ी इस खबर ने कानूनी गलियारों में हलचल मचा दी है। धारवाड़ एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वीएम शीलवंत ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति कृष्ण दीक्षित, न्यायमूर्ति के नटराजन, न्यायमूर्ति संजय गौड़ा और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौड़ा के स्थानांतरण की संभावित योजना का कड़ा विरोध किया है।
शीलवंत ने अपने पत्र में इन चारों न्यायाधीशों की कार्यशैली और नैतिक मूल्यों की सराहना करते हुए उन्हें “कानूनी विद्वता, ईमानदारी, सहानुभूति और दक्षता के प्रतीक” बताया। उन्होंने चेतावनी दी कि इस तरह के ट्रांसफर न केवल न्यायपालिका के मनोबल को चोट पहुंचाएंगे, बल्कि वकीलों और आम नागरिकों के बीच न्याय व्यवस्था पर विश्वास को भी कमजोर करेंगे। शीलवंत ने इस कदम को “न्यायिक प्रणाली के लिए बाधक और प्रतिगामी” करार दिया।
इस घटनाक्रम ने न केवल कर्नाटक में, बल्कि देशभर के कानूनी विशेषज्ञों और अधिवक्ताओं में चिंता पैदा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही वक्फ अधिनियम को लेकर एक अहम सुनवाई जारी है, जिसमें न्यायपालिका की भूमिका और उसके फैसलों पर सामाजिक व राजनीतिक प्रभावों की पड़ताल हो रही है। ऐसे में कर्नाटक हाईकोर्ट के चार जजों के ट्रांसफर का मामला न्यायपालिका की स्वायत्तता और निष्पक्षता को लेकर एक नई बहस को जन्म दे रहा है।
कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रांसफर की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और कोलेजियम सिस्टम पर उठते सवाल इस तरह के विरोधों को जन्म दे रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक ट्रांसफर की वजहें सार्वजनिक नहीं की जाएंगी, तब तक न्यायपालिका पर “राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव” के आरोप लगते रहेंगे।
उधर, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और विभिन्न राज्य बार काउंसिल्स ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जो स्थिति को और पेचीदा बना रही है। यदि इस विरोध को नजरअंदाज किया गया, तो आने वाले दिनों में अधिवक्ताओं के आंदोलन और न्यायिक कामकाज में व्यवधान की स्थिति बन सकती है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के इन संभावित ट्रांसफर और सुप्रीम कोर्ट में लंबित संवेदनशील मामलों के बीच एक बात स्पष्ट है—भारत की न्यायपालिका आज सामाजिक, राजनीतिक और संस्थागत दबावों के नए दौर से गुजर रही है। यह जरूरी है कि कोलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित की जाए, ताकि न्यायपालिका न केवल निष्पक्ष दिखे, बल्कि वास्तव में निष्पक्ष रह भी सके।
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