नेपाल में राजशाही की बहाली के समर्थन में प्रदर्शनों का उभार

समग्र समाचार सेवा
नेपाल,7 मार्च।
नेपाल में पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र के समर्थकों द्वारा राजशाही की बहाली की मांग को लेकर प्रदर्शनों का दौर तेज हो गया है। विभिन्न हिस्सों में हुए इन प्रदर्शनों में हजारों लोग शामिल हुए, जिन्होंने राजशाही को पुनः स्थापित करने की अपनी इच्छा को व्यक्त किया। ये प्रदर्शन राजनीतिक असंतोष और वर्तमान शासन प्रणाली के प्रति निराशा का प्रतीक बन चुके हैं। मोटरसाइकिल रैलियों और सड़कों पर मार्च के माध्यम से लोग अपने समर्थन का इज़हार कर रहे हैं।

पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र की छवि और नेपाल की पूर्व राजशाही को लेकर समर्थकों की भावनाएँ बहुत गहरी हैं। नेपाल में 2008 में राजशाही समाप्त करने के बाद से गणराज्य की स्थापना की गई थी, लेकिन अब कुछ लोग इसे सही कदम नहीं मानते और पुरानी राजशाही को फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि राजशाही प्रणाली में स्थिरता और एकता थी, जो वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं दिखती।

प्रदर्शनों में शामिल लोग विभिन्न तख्तियाँ और बैनर लेकर चल रहे थे, जिन पर राजशाही की बहाली के समर्थन में नारे लिखे थे। उनका मानना है कि नेपाल में बढ़ते राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार की वजह से राजशाही का शासन बेहतर था। कुछ प्रदर्शनकारियों ने यह भी कहा कि देश को एक मजबूत और समझदार नेतृत्व की आवश्यकता है, जो राजशाही में ही मिल सकती है।

हालांकि, ये प्रदर्शन नेपाल सरकार के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि नेपाल एक गणराज्य है, और राजशाही की बहाली की कोई संभावना नहीं है। इसके बावजूद, यह आंदोलन समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है, और अब यह राजनीतिक बहस का हिस्सा बन चुका है।

इस आंदोलन के समर्थक राजनेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान प्रणाली में लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ खो गया है। उनका तर्क है कि राजनीतिक दलों के बीच आपसी संघर्ष और भ्रष्टाचार ने देश की प्रगति को रोक दिया है। नेपाल की युवा पीढ़ी में भी कुछ लोग राजशाही के दिनों को याद करते हैं, जब शासन में स्पष्टता थी और विकास के कार्यों में गति थी।

नेपाल के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इस आंदोलन का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि यह नेपाल में राजनीतिक असंतोष का प्रतीक बन गया है। इसने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या वर्तमान गणराज्य की प्रणाली देश के लिए सबसे उपयुक्त है या फिर राजशाही में वापस जाने से देश में एक स्थिरता लौट सकती है।

वर्तमान में नेपाल के राजनीतिक नेताओं और नागरिक समाज का एक हिस्सा इस विरोध के प्रति चुप है, जबकि दूसरे हिस्से ने इस पर स्पष्ट रूप से विरोध व्यक्त किया है। ऐसे में यह आंदोलन आने वाले दिनों में नेपाल की राजनीति को प्रभावित कर सकता है।

अंततः, यह देखना होगा कि नेपाल की सरकार इस आंदोलन के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देती है, और क्या यह आंदोलन वास्तविक बदलाव ला पाता है या फिर सिर्फ एक आस्थावादी मुद्दा बनकर रह जाता है।

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