पंजाब सरकार बहाल करेगी ‘जहाज़ हवेली’: जानिए टोडर मल की वह अमर गाथा, जो आज भी धर्म और मानवता की मिसाल है

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,9 अप्रैल।
पंजाब सरकार ने ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए ‘जहाज़ हवेली’ को पुनः संरक्षित और विकसित करने की घोषणा की है। यह वही ऐतिहासिक स्थल है, जो हिंदू व्यापारी और श्रद्धालु टोडर मल के उस त्याग और बलिदान की गवाही देता है, जिसे उन्होंने सिखों के दो साहिबज़ादों और उनकी दादी के सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए अदा किया था।

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया कि जहाज़ हवेली, जो इस समय जर्जर स्थिति में है, को पुरातात्विक मानकों के अनुसार बहाल किया जाएगा। इसके लिए विशेष बजट और विशेषज्ञों की टीम गठित की गई है। सरकार का लक्ष्य है कि यह स्थान न केवल पंजाब बल्कि पूरे देश के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित हो।

“टोडर मल न सिर्फ सिख इतिहास के बल्कि भारत की धार्मिक सहिष्णुता और बलिदान की आत्मा हैं। उनकी विरासत को संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।”

लाखपति व्यापारी और अग्रवाल समाज के प्रतिष्ठित सदस्य, टोडर मल का नाम आज भी इतिहास में त्याग, श्रद्धा और धर्मनिष्ठा के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। जब 13 दिसंबर, 1705 को साहिबज़ादा फतेह सिंह (7) और साहिबज़ादा जोरावर सिंह (9) को मुग़ल फौजदार वज़ीर ख़ान द्वारा इस्लाम न अपनाने पर दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया, तो उनकी दादी माता गुजरी ने भी सदमे में दम तोड़ दिया।

मुगलों ने इन तीनों के दाह संस्कार की अनुमति भी नहीं दी, जिससे उनकी शहादत को अपमानित किया जा सके। उस समय टोडर मल ने मुगल सम्राट औरंगज़ेब से बात कर वह भूमि खरीदी, जिस पर अंतिम संस्कार संभव हो सके। शर्त यह थी कि वे जितनी भूमि को सोने के सिक्कों से ढक पाएंगे, उतनी ज़मीन उन्हें मिलेगी।

टोडर मल ने बिना कोई संकोच किए 7,800 सोने के सिक्के बिछाकर वह भूमि खरीदी। आज के हिसाब से इन सिक्कों की कीमत लगभग ₹350 करोड़ आँकी गई है। इसी ज़मीन पर उन्होंने तीनों शहीदों का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया। यह भूमि और हवेली आज इतिहास में जहाज़ हवेली के नाम से जानी जाती है।

जहाज़ हवेली, जो कभी धार्मिक बलिदान और मानवता की मिसाल थी, समय के साथ उपेक्षा और जर्जरता का शिकार हो गई। छतें ढह चुकी थीं, दीवारें टूट चुकी थीं, और श्रद्धालु सिर्फ आंसुओं के सहारे स्मृति में दीप जलाते थे।

अब पंजाब सरकार के इस फैसले के बाद विरासत संरक्षण, संग्रहालय निर्माण, श्रद्धालुओं के लिए सूचना केंद्र और स्मारक स्थापना की योजना पर काम शुरू हो गया है। यह स्थान अब भविष्य में न केवल सिख इतिहास, बल्कि भारतीय संस्कृति में बहुधर्मीय सहिष्णुता का केंद्र बनेगा।

जहाज़ हवेली का पुनरुद्धार सिर्फ एक इमारत की मरम्मत नहीं, बल्कि भारत के आत्म-सम्मान और धार्मिक सौहार्द की मरम्मत है। टोडर मल अग्रवाल ने जो किया, वह धर्म, जाति या समुदाय से ऊपर उठकर मानवता का वह पाठ है जिसे पीढ़ियों तक दोहराया जाना चाहिए।

अब यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम इस धरोहर को केवल ईंट-पत्थरों से नहीं, बल्कि सम्मान और स्मरण से पुनर्जीवित करें।

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