पुरी में निकली बाहुड़ा यात्रा, भगवान जगन्नाथ भाई-बहन संग लौटेंगे श्रीमंदिर

समग्र समाचार सेवा
पुरी, 5 जुलाई: भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी देवी गुंडिचा के मंदिर से नौ दिवसीय विश्राम के बाद आज पुरी स्थित श्रीमंदिर लौट रहे हैं। भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भगवान की यह वापसी यात्रा ‘बाहुड़ा यात्रा’ कहलाती है, जो विश्वप्रसिद्ध रथ यात्रा महोत्सव का ही अभिन्न भाग है। ओड़िया में ‘बाहुड़ा’ का अर्थ ही वापसी होता है।

विशेष पड़ाव और पोड़ा पीठा का स्वाद
परंपरा के अनुसार वापसी यात्रा के दौरान भगवानों के रथ अर्धासनी मंदिर पर रुकते हैं, जिसे मौसी मां का मंदिर भी कहा जाता है। यहां भगवान को विशेष मिठाई ‘पोड़ा पीठा’ अर्पित की जाती है, जिसे चावल, गुड़ और नारियल से तैयार किया जाता है। यह भोग भगवान को बेहद प्रिय माना जाता है।

भोर से शुरू हुए अनुष्ठान
बाहुड़ा यात्रा का आरंभ ब्रह्म मुहूर्त में मंगला आरती से हुआ। उसके बाद तड़प लगी, रोजा होम और सूर्य पूजा सहित कई धार्मिक विधियां पूरी की गईं। सेनापतलगी अनुष्ठान के जरिए भगवानों को रथों की ओर ले जाने की तैयारी हुई। करीब 12 बजे ‘पहंडी’ रस्म शुरू हुई, जिसमें भगवानों को भक्तों की टोली रथों तक लेकर आई।

छेरा पहंरा में दिखी भक्ति और समर्पण
पुरी के गजपति महाराज दिव्यसिंह देव ने दोपहर में छेरा पहंरा रस्म निभाई। महाराज ने सोने की झाड़ू से रथों की सफाई कर भगवानों के प्रति अपनी विनम्र भक्ति प्रकट की। यह रस्म दर्शाती है कि भगवान के आगे सब समान हैं।

रथ खींचने को उमड़ा भक्तों का सैलाब
दोपहर बाद भगवान बलभद्र का ‘तालध्वज’ रथ सबसे पहले गुंडिचा मंदिर से निकला। इसके बाद देवी सुभद्रा का ‘दर्पदलन’ और अंत में भगवान जगन्नाथ का ‘नंदीघोष’ रथ खींचा जाएगा। शाम होते-होते पुरी की सड़कों पर लाखों श्रद्धालु रथ खींचने को उमड़ पड़ेंगे।

आगे भी भव्य अनुष्ठान बाकी
6 जुलाई को सुनाबेशा अनुष्ठान होगा, जिसमें भगवान रथों पर स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित होकर भक्तों को दर्शन देंगे। 8 जुलाई को नीलाद्री बिजे अनुष्ठान के साथ भगवान श्रीमंदिर में वापसी करेंगे और इस वर्ष की रथ यात्रा का विधिवत समापन होगा।

 

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