छठे आर्कटिक फोरम में पुतिन ने आर्कटिक भू-राजनीति पर डाली रोशनी, ग्रीनलैंड पर अमेरिका के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,28 मार्च।
छठे आर्कटिक फोरम में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव पर जोर दिया, खासतौर पर ग्रीनलैंड पर अमेरिका के दावों को लेकर। उन्होंने कहा कि यह सोचना एक भ्रम होगा कि अमेरिका की ये आकांक्षाएं महज दिखावटी हैं। बल्कि, इन दावों की जड़ें एक सदी से भी अधिक पुरानी हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब आर्कटिक क्षेत्र पर वैश्विक ध्यान केंद्रित हो रहा है, जो अपनी अमूल्य संसाधनों और रणनीतिक महत्व के कारण तेजी से विवाद का केंद्र बनता जा रहा है।

पुतिन ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका 1860 के दशक से ही ग्रीनलैंड में रुचि रखता है। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए बताया कि 1868 में अमेरिकी अखबारों ने अलास्का की खरीद का मजाक उड़ाया था और इसे “पागलपन” करार दिया था। उसी समय, ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव भी आया था, लेकिन वह ठंडे बस्ते में चला गया। हालांकि, समय के साथ परिप्रेक्ष्य बदले हैं और अब अलास्का को अमेरिका के लिए एक अमूल्य संपत्ति माना जाता है। इस ऐतिहासिक संदर्भ के जरिए पुतिन ने यह दिखाने की कोशिश की कि अमेरिका की ग्रीनलैंड और पूरे आर्कटिक क्षेत्र में रुचि कोई नई बात नहीं है

पुतिन ने इस बात पर जोर दिया कि अमेरिका केवल बयानबाजी नहीं कर रहा, बल्कि उसने ग्रीनलैंड को लेकर गंभीर योजनाएं बनाई हैं। उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट है कि अमेरिका आर्कटिक में अपने रणनीतिक, भू-राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य हितों को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाता रहेगा।” यह टिप्पणी इस ओर इशारा करती है कि आर्कटिक देशों के बीच इस क्षेत्र में अमेरिका की गतिविधियों को लेकर बढ़ती चिंता वाजिब है। जलवायु परिवर्तन और बर्फ पिघलने के कारण इस क्षेत्र में नई नौवहन मार्गों और अछूते संसाधनों तक पहुंच आसान हो गई है, जिससे प्रतिस्पर्धा और बढ़ गई है।

पुतिन ने रूस को सबसे बड़ी आर्कटिक शक्ति बताते हुए यह स्पष्ट किया कि रूस ने कभी किसी देश के लिए खतरा उत्पन्न नहीं किया है, लेकिन वह अपने संप्रभुता और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध रहेगा। यह बयान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों दर्शकों के लिए था, जिससे रूस की शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति को दोहराने के साथ-साथ यह भी स्पष्ट किया गया कि वह अपने आर्कटिक क्षेत्रों पर किसी तरह का समझौता नहीं करेगा

पुतिन के बयान उस संदर्भ में भी महत्वपूर्ण हैं, जहां विभिन्न देश आर्कटिक में अपनी स्थिति मजबूत करने की होड़ में लगे हैं। बर्फ पिघलने के साथ तेल, गैस और खनिजों के विशाल भंडार सामने आ रहे हैं, जिससे अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे और चीन जैसे देशों की इस क्षेत्र में दिलचस्पी बढ़ गई है

इस बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आर्कटिक को अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और सैन्य तैनाती का केंद्र बना दिया है। अमेरिका ने इस क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत किया है, जहां वह अभ्यास कर रहा है और अन्य आर्कटिक देशों के साथ गठबंधन बना रहा है। इसके जवाब में, रूस ने भी अपने सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है, जिससे क्षेत्र में टकराव की आशंका बढ़ गई है।

पुतिन का छठे आर्कटिक फोरम में दिया गया यह संबोधन आर्कटिक में उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य की जटिलताओं को उजागर करता है। ऐतिहासिक दावों और आधुनिक महत्वाकांक्षाओं के आपस में उलझने से ग्रीनलैंड और आर्कटिक क्षेत्र का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।

जैसे-जैसे इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदलता जा रहा है, अंतरराष्ट्रीय स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए सहयोग और संवाद अत्यंत आवश्यक होंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में यह संघर्ष कूटनीतिक वार्ता के जरिए हल होगा या फिर यह तनाव और बढ़ेगा

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