समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21 जुलाई: लोकसभा के मानसून सत्र के पहले दिन विपक्ष और सरकार के बीच की नाराज़गी साफ झलक गई है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि उन्हें बोलने का मौका नहीं दिया गया, जबकि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सत्तापक्ष के अन्य नेताओं को आसानी से मंच मिला। इस घटनाक्रम ने संसद परिसर में गर्मा‑गर्म बहस को जन्म दिया।
राहुल गांधी का नाराजगी भरा आरोप
राहुल गांधी ने कहा, “मैं नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपनी बात रखना चाहता था, लेकिन मुझे बोलने की इजाज़त नहीं मिली। जबकि रक्षा मंत्री जी को पर्दा खोलकर बोलने का मौका मिलता है।” उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया और कहा कि यदि सरकार के लोग बोल सकते हैं, तो विपक्ष को भी बराबरी का प्लेटफ़ॉर्म मिलना चाहिए।
विपक्ष के मुद्दों पर हंगामा
पहले दिन लोकसभा में विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले और बिहार में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) जैसे संवेदनशील विषयों पर चर्चा की मांग की थी। जब सदन में शोर-शराबा बढ़ा, तब कार्यवाही बाधित होकर दोपहर 2 बजे तक के लिए स्थगित करनी पड़ी
परंपरा बनाम नया रवैया
गांधी ने याद दिलाया कि “लोकतांत्रिक परंपरा यही है कि विपक्ष को भी बोलने का अवसर दिया जाए।” उन्होंने यह भी कहा कि विरोधी दलों को बोलने की अनुमति मिलते ही वे उन मुद्दों पर ठोस चर्चा की उम्मीद रखते हैं
संसदीय लोकतंत्र का परीक्षण
यह विवाद संसद के इस सत्र के मकसद को फिर से प्रश्न के घेरे में लाता है: क्या सत्ता पक्ष विपक्ष के आवाज़ को दबाने की प्रवृत्ति दिखा रहा है? लोकतंत्र में बहस ही नहीं बल्कि सुनवाई का अधिकार भी लोकतांत्रिक अधिकारों का केंद्रीय हिस्सा है।
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