राहुल गांधी के अमेरिका दौरे पर उठा सियासी तूफान, बीजेपी का हमला—’विदेशों में जाकर भारत को बदनाम करते हैं’

21 अप्रैल, नई दिल्ली: कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर अपने विदेश दौरे को लेकर सियासी विवादों में घिर गए हैं। अमेरिका के बोस्टन में ब्राउन यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ 20 अप्रैल को संवाद के दौरान राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली और भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गड़बड़ी हुई थी। उनके इस बयान को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि 2024 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शाम 5:30 बजे के बाद 65 लाख से अधिक वोट डाले गए, जो आंकड़ों के अनुसार असंभव है। उन्होंने कहा, “अगर हर मतदाता को वोट डालने में 3 मिनट का समय लगे, तो इतनी भारी संख्या में वोट रात 2 बजे तक ही डाले जा सकते थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इसका सीधा मतलब है कि चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई।”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जब कांग्रेस ने चुनाव आयोग से मतदान की वीडियोग्राफी के फुटेज मांगे, तो न केवल उन्हें यह खारिज किया गया, बल्कि आयोग ने नियम ही बदल दिए। उन्होंने कहा, “इससे यह साफ है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।”
इस बयान पर भाजपा ने तीखा पलटवार किया है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, “कई चुनाव हारने के बाद भी कुछ नेता नहीं सीखते। वे लगातार ईवीएम, चुनाव आयोग और लोकतंत्र पर सवाल उठाते हैं। भारत को दुनियाभर में बदनाम करने का काम करते हैं, लेकिन देश की जनता के बीच भरोसा नहीं जीत पाते।”
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी राहुल गांधी को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा, “जो लोग विदेशों में छुट्टियां मनाते हैं और भारत को बदनाम करते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वोट भारत की जनता देती है। भारत को जितना बदनाम करोगे, जवाब उतना ही सख्त मिलेगा।”
भाजपा का आरोप है कि राहुल गांधी का यह कोई पहला मौका नहीं है जब उन्होंने विदेशी मंच से भारत की छवि पर प्रश्न उठाए हों। इससे पहले भी उनके बयानों को लेकर खालिस्तान समर्थकों और चीन के प्रति नरम रुख का आरोप लगता रहा है।
लोकतंत्र में आलोचना आवश्यक है, लेकिन जब देश के नेता विदेशी मंचों से अपने ही लोकतंत्र और संस्थाओं को कठघरे में खड़ा करते हैं, तो सवाल उठते हैं कि यह आलोचना है या देश की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश? राजनीति में असहमति हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय संस्थाओं की गरिमा और जनता का विश्वास सर्वोपरि होना चाहिए। ऐसे में भारत की जनता ही तय करेगी कि किसकी बात में सच्चाई है और किसकी मंशा में राजनीति।

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