कल न्यूज़ चैनल पर यह समाचार चौंकाने वाला था कि दूध, दही, छांछ, पनीर, गेंहू, चावल, दाल, मुरमुरे, नमक, पेंसिल, रबर, शार्पनर आदि को जी इस टी कौंसिल वस्तु एवं सेवा कर (जी एस टी) के अंदर ले आई है। अब इन उत्पादों पर 5 प्रतिशत GST लगेगा। यह निर्णय जी एस टी कौंसिल की बैठक में लिया गया है। बताया तो यह जा रहा है कि यह कर ब्रांडिड और पैक्ड वस्तुओं पर लगेगा लेकिन जब बाजार में विक्रेता खुले समान को भी टैक्स जोड़कर बेचेगा उसे कौन रोकेगा। इस बात पर कौंसिल का कोई स्पष्टीकरण जानकारी में नही आया। दूध, दही, छांछ जो बाजार में प्लास्टिक की थैलियों में बिकता है। ऐसे ही नमक का भी हाल है। लगता है जी एस टी कौंसिल के सदस्य आम जनता के दर्द से बेखबर हैं।
वस्तु एवं सेवा कर (GST) परिषद का गठन को वर्ष 2016 में एक अधिनियम के अंतर्गत किया गया था इस परिषद में कुल 33 सदस्य होते हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री पदेन अध्यक्ष होते हैं जबकि केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री या राजस्व मंत्री अन्य सदस्य होते हैं, शेष सदस्य सभी राज्यों के वित्तमंत्री के प्रतिनिधि के रूप में राज्यों के वित्त राज्यमंत्री/राजस्वमंत्री होते हैं। यह परिषद समय समय पर राजस्व की संमीक्षा करती रहती है और समीक्षा के बाद चार कर वर्गों 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 व 28 प्रतिशत कर निर्धारण करने का अधिकार रखती है।
आम तौर पर यह परिषद इस बात का ध्यान रखती है कि आम आदमी पर मंहंगाई का बोझ न पड़े इसलिए ऐसे उत्पादों पर कर लगाने से बचा जाता है जो नागरिकों पर बोझ बनते हैं। कभी उत्पादन करने वाली कंपनियां कीमतें बढ़ा देती हैं तो कभी सरकार टैक्स बढ़ा देती है। अभी कुछ ही समय पूर्व दुग्ध उत्पादक कंपनियों ने स्वेच्छा से प्रतिलीटर दूध की कीमत दो रुपये बढ़ाई थी। अब 5 प्रतिशत बढ़ते ही, उदाहरण के लिये एक लीटर अमूल दूध की कीमत में तीन रुपये की बढ़ोत्तरी होगी। इसी प्रकार नमक, गेंहू आदि पर भी GST लगेगा। इस भार को मध्यम वर्ग के नागरिक झेल नही पाएंगे। मोटे तौर पर इस घोषणा के बाद 4 व्यक्तिओं के परिवार पर कम से कम पांच सौ रुपये का बोझ पड़ेगा। डीजल और पेट्रोल की कीमतों के बढ़ने से पहले ही आम आदमी त्रस्त है फिर इस घोषणा की आवश्यकता क्यों पड़ी। देश भक्ति की रबर की डोर को दो छोर की रस्साकशी में आम आदमी का दम जैसे ही कम पड़ेगा वैसे ही जी एस टी के नाम पर करोड़ों रुपये इकठ्ठा करने वाली व्यवस्था के खिलाफ लोग मुखर हो जाएंगे। कहा जाता है कि सितार के तारों को इतना भी न कसो कि वे टूट जाएं और इतना भी ढीला न रखो कि सितार बेसुरा हो जाय।
देश की अधिकतर जनसंख्या कोरोना में खराब हुई अर्थव्यवस्था से ऊपर नही उठ पाया है लाखों लोगों पर उसका असर पड़ा है। सरकारी सार्वजनिक वितरण प्रणाली वालों पर और उच्च आयवर्ग के लोगों पर इसका प्रभाव न गण्य होगा लेकिन मध्यम वर्ग के लोग अपने नाते रिश्तेदारों को घर पर नही बुला पाएंगे। नमक जैसे उत्पाद पर भी टैक्स? गांधी जी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन चलाया था। दांडी यात्रा संभवतः याद हो…। और हां जनप्रतिनिधि जो खुल्लमखुल्ला भ्रष्टाचार करते हैं उसे सरकारों ने क्यों नही रोका? विधायक और सांसद के रूप में जो पेंशन जनप्रतिनिधियों को मिलती है क्या नैतिक आधार पर वह उचित है? एक एक जनप्रतिनिधि को विभिन्न पेंशन क्यों मिलती हैं? बड़े अधिकारियों और नेताओं के घरों पर होने वाले अवैध खर्चो को रोकिए, जनता के धन का दुरूपयोग रुकेगा तो सरकार का राजस्व सही होगा। जनप्रतिनिधि होना कोई नौकरी नही, जनप्रतिनिधि लाभकारी पद नही, जबकि उसे लाभकारी पद बना दिया गया है। सरकार एक तरफ तीन-चार साल नौकरी करने वाले अग्निवीरों को पेंशन नही दे पा रही है लेकिन किसी जनप्रतिनिधि ने शपथ ग्रहण कर लिया तो वह पेंशन का हकदार बन जाता है। पेंशन एक बार नही विधायक होने पर अलग, सांसद होने पर अलग। इसे रोका जाना चाहिए। विधान सभाओं और संसद में इन महा महिमों के आचरणऔर भाषा को देखते हैं तो दुःख होता है। दूसरी ओर प्रशासनिक अधिकारी वर्ग है जो बजट के 20 से 30% की चपत ऐसी मारता है कि डकार भी नही लेता। सरकार के पास यदि धन की कमी है तो धन प्राप्ति का यह सबसे सरल उपाय है। यह प्रवृत्ति पहले आई ए एस अधिकारियों में नही थी। हाल के दिनों में अब इस वर्ग के अधिकारी भी नाम कमाने लग गए हैं। प्रॉपर्टी बिल्डर, पुलिस, चिकित्सा विभाग और निर्माण विभाग तो पहले ही इन मामलों में ख्याति प्राप्त हैं। टैक्स लगाने की बजाय राजस्व की छीजत (leakage) को रोकने की जरूरत है। अवैध कृत्य और अवैध संपत्ति धारकों से वसूली करें तो टैक्स लगाने की जरूरत ही न पड़ेगी। जी एस टी कौंसिल को इस प्रकार आम जनता को टैक्स में राहत देने की बात सोचनी चाहिए।
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