सीमाएं बदलती रहती हैं,क्या पता सिंध फिर भारत का हिस्सा बन जाए
दिल्ली में सिंधी समाज के कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के संदर्भ में सिंध पर बड़ा दावा किया
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राजनाथ सिंह बोले, सभ्यता के स्तर पर सिंध कभी भारत से अलग नहीं रहा।
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कहा, बॉर्डर स्थायी नहीं होते, समय के साथ बदलते हैं।
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आडवाणी की किताब और रामायण का उल्लेख कर ऐतिहासिक रिश्ते बताए।
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सिंधी समाज की मेहनत, भाषा और परंपरा की सराहना भी की।
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली | 23 नवंबर:दिल्ली में आयोजित सिंधी समाज के एक बड़े सम्मेलन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सिंध को लेकर ऐसा बयान दिया, जिसने राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों हलकों में चर्चा बढ़ा दी है। उन्होंने साफ कहा कि भौगोलिक सीमाएं स्थायी नहीं होतीं और समय के साथ बदलती भी रहती हैं। उनके शब्दों में“आज सिंध पाकिस्तान में सही, लेकिन सभ्यता के आधार पर वह हमेशा भारत की संस्कृति, परंपरा और इतिहास से जुड़ा रहा है। कौन जानता है, आने वाले समय में सिंध दोबारा भारत में शामिल हो जाए।”
कार्यक्रम के दौरान उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी की किताब का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि आडवाणी जी ने अपने अनुभवों में लिखा है कि सिंधी हिंदू आज भी अपने मूल प्रदेश सिंध को भारत से अलग नहीं मानते। उनका मानना है कि बंटवारे ने सीमाएं जरूर बदलीं, लेकिन दिल और जुड़ाव वही हैं, जो सदियों पहले थे।
राजनाथ सिंह ने यह भी कहा, “मैंने देखा है कि लखनऊ में जब भी कोई राष्ट्रीय स्तर का कार्यक्रम होता है तो उसमें सिंधी समाज के लोग बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी करते हैं. रामायण में लिखे श्लोक से साफ हो जाता है कि सिंध प्रदेश राजा दशरथ के राज्य का हिस्सा था। सिंध वह क्षेत्र भी है, जहां वेद ज्ञान सबसे पहले आया था, हमारी संस्कृति में मां गंगा को सबसे पूजनीय माना गया है दूसरे देशों में भारत की पहचान भी सिंधु नदी से ही है “सिंधी समाज अपनी मेहनत और प्रतिभा के लिए जाना जाता हैः
अपने संबोधन में उन्होंने सिंधी समुदाय की मेहनत, व्यापारिक कौशल, भाषा, साहित्य, कला और संत-परंपरा की भी खुलकर प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में सिंधी समाज अपनी प्रतिभा और अपनी सांस्कृतिक मिठास के लिए जाना जाता है। भाषा की बात करते हुए उन्होंने याद दिलाया कि अटल बिहारी वाजपेयी जी ने 1957 में सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए पहला गैर-सरकारी विधेयक पेश किया था। वाजपेयी ने कहा था, सिंधी में भारत की आत्मा बोलती है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम का मुद्दा भी उन्होंने अपने संबोधन में उठाया। रक्षा मंत्री ने बताया कि पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न झेलकर भारत आए अल्पसंख्यकों को केंद्र सरकार ने 2024 तक बिना पासपोर्ट यहां रहने की अनुमति दी है। नागरिकता संशोधन अधिनियम ने ऐसे लोगों को सुरक्षित, सम्मानजनक और अधिकारपूर्ण जीवन दिया है, जिसमें सिंधी समाज के प्रभावित परिवार भी शामिल हैं।
इतिहास की पृष्ठभूमि समझाते हुए उन्होंने याद दिलाया कि 1947 के बंटवारे के बाद सिंध पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा प्रांत बना। आजादी से पहले इस क्षेत्र में हिंदू आबादी बड़ी संख्या में रहती थी और विभाजन के बाद इन परिवारों ने भारत के कई शहरों में बसकर अपनी पहचान को संभाला।
राजनाथ सिंह के बयान ने एक बार फिर उस सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जुड़ाव को सामने ला दिया है, जो सीमाओं से कभी खत्म नहीं हुआ, और शायद यही वजह है कि उन्होंने कहा, सीमाएं बदल सकती हैं, लेकिन सभ्यताएं नहीं।
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