राम गोपाल वर्मा ने ‘आग’ की असफलता और अधूरी ‘शोले’ सीक्वल पर किया खुलासा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,31 मार्च।
बॉलीवुड के चर्चित फिल्ममेकर राम गोपाल वर्मा, जो अपनी प्रयोगधर्मी फिल्मों और ‘सत्या’ जैसी क्लासिक क्राइम-थ्रिलर के लिए मशहूर हैं, हाल ही में अपनी सबसे विवादास्पद फिल्म ‘आग’ की असफलता और अधूरी रह गई ‘शोले’ सीक्वल के बारे में खुलकर बोले। फिल्म क्रिटिक कोमल नाहटा के यूट्यूब चैनल ‘गेम चेंजर्स’ पर दिए एक विशेष साक्षात्कार में वर्मा ने ‘आग’ के पीछे की कहानी, उसके निर्माण के दौरान आई रचनात्मक चुनौतियों और उन अनपेक्षित कारणों का खुलासा किया, जिन्होंने फिल्म को एक बड़ी विफलता बना दिया।

वर्मा ने बातचीत की शुरुआत करते हुए स्वीकार किया कि अगर उन्होंने ‘आग’ को उसी गंभीरता और समर्पण के साथ बनाया होता, जैसे उन्होंने ‘सत्या’ बनाई थी, तो यह फिल्म सफल हो सकती थी। उन्होंने माना कि मूल विचार में संभावना थी, लेकिन वह खुद रचनात्मक अवरोध (क्रिएटिव ब्लॉक) से जूझ रहे थे और फिल्म को वह गंभीरता नहीं दे सके, जो इसकी सफलता के लिए जरूरी थी। उन्होंने कहा, “अगर मैंने इसे ‘सत्या’ जितना गंभीरता से लिया होता, तो यह फिल्म सफल होती, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया,” वर्मा ने खेद जताते हुए कहा।

‘आग’ के पीछे की प्रेरणा तब मिली जब जी.पी. सिप्पी के पोते साशा सिप्पी ने राम गोपाल वर्मा को ‘शोले’ के सीक्वल के प्रस्ताव के साथ संपर्क किया। हालांकि, यह वर्मा ही थे, जिन्होंने एक दिन साशा से बात करते हुए बताया कि उनके दादा उनसे मिलने के इच्छुक हैं, ताकि ‘शोले’ के सीक्वल पर विचार किया जा सके। लेकिन सिप्पी परिवार की योजना बेहद अजीब थी।

उनकी कहानी के अनुसार, “महबूबा” गाने के बाद गब्बर सिंह (जिसे मूल फिल्म में अमजद खान ने निभाया था) हेलेन के किरदार के साथ संबंध बनाता है, जिससे ‘जूनियर गब्बर’ नाम का बेटा जन्म लेता है। आगे की कहानी में ‘जूनियर गब्बर’ अपने पिता की मौत का बदला लेने निकलता है, जबकि वीरू और बसंती, राधा से मिलने जा रहे होते हैं। इस सीक्वल में ‘जूनियर गब्बर’ वीरू और बसंती को अगवा कर लेता है और आखिर में उनके बेटे को भी इस दुश्मनी में शामिल होना पड़ता है।

वर्मा इस कहानी से बेहद चकित रह गए और उन्होंने इस प्रोजेक्ट से खुद को अलग करने का फैसला किया। हालांकि, इस अजीबोगरीब मीटिंग ने वर्मा की अपनी कल्पना को झकझोर दिया और उन्होंने शोले को एक नए अंदाज में रीक्रिएट करने का फैसला किया।

सीधे सीक्वल बनाने के बजाय, राम गोपाल वर्मा ने ‘शोले’ की एक समकालीन रीमेक बनाने की कोशिश की, जिसमें नए तत्व, किरदार और विषय शामिल थे। लेकिन तमाम रचनात्मक प्रयोगों के बावजूद, ‘आग’ में वह जादू नहीं आ पाया, जिसने ‘शोले’ को अमर बना दिया था। आलोचकों और दर्शकों ने फिल्म की जमकर आलोचना की।

वर्मा का मानना है कि फिल्म की असफलता की एक बड़ी वजह यह थी कि उनकी कल्पना और जो पर्दे पर उतरा, उसके बीच बड़ा अंतर रह गया। उन्होंने स्वीकार किया, “मेरी गलती यह थी कि मैंने इसे वह गंभीरता नहीं दी, जो इसे मिलनी चाहिए थी।”

राम गोपाल वर्मा ने मजाकिया लहजे में फिल्म की असफलता के लिए कुछ अन्य कारणों को भी जिम्मेदार ठहराया, जिनमें अमिताभ बच्चन भी शामिल थे। हालांकि, उन्होंने साफ तौर पर माना कि फिल्म की विफलता की जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उन्होंने कहा, “मैं अमिताभ बच्चन को दोष दे सकता हूं, लेकिन फिल्म तो मैंने ही बनाई थी,” यह दर्शाते हुए कि वह ‘आग’ की असफलता को अपने रचनात्मक सफर का हिस्सा मानते हैं।

पीछे मुड़कर देखने पर वर्मा ने समझा कि ‘आग’ कभी भी ‘शोले’ की सफलता को दोहरा नहीं सकती थी। उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि भले ही यह फिल्म फ्लॉप हुई, लेकिन इससे उन्होंने फिल्म निर्माण में ईमानदारी और गंभीरता का महत्व सीखा।

‘आग’ वर्मा के करियर में हमेशा एक विवादास्पद अध्याय रहेगा, लेकिन यह रचनात्मक महत्वाकांक्षा के खतरों और भारतीय सिनेमा में क्लासिक्स को दोबारा गढ़ने की चुनौती का एक बड़ा उदाहरण भी है।

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