राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शस्त्र पूजा कर मनाई विजयादशमी, RSS के दशहरा समारोह में पहली बार कोई महिला बनी मुख्य अतिथि
समग्र समाचार सेवा
नागपुर, 5अक्टूबर। नागपुर में बुधवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने विजयादशमी मनाई। शस्त्र पूजा के दौरान पहली बार महिला मुख्य अतिथि संतोष यादव मौजूद थीं। संतोष दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं। RSS के लिए आज का दिन खास है क्योंकि आज ही के दशहरे वाले दिन सन 1925 में आरएसएस की स्थापना हुई थी। इस इवेंट में समाज के गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया जाता है। खास बात यह है कि पहली बार RSS के इस कार्यक्रम में एक महिला संतोष यादव को आमंत्रित किया गया है।
RSS ने ट्वीट में दी जानकारी
आरएसएस ने आज के कार्यक्रम को लेकर ट्वीट जानकारी दी थी. ट्वीट में लिखा गया, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वार्षिक विजयादशमी उत्सव 5 अक्तूबर 2022 को नागपुर में सम्पन्न होगा. इस उत्सव में प्रमुख अतिथि सुप्रसिद्ध पर्वतारोही पद्मश्री श्रीमती संतोष यादव जी होंगी और परमपूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत का उद्बोधन होगा.”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का वार्षिक विजयादशमी उत्सव 5 अक्तूबर, 2022 को नागपुर में सम्पन्न होगा। इस उत्सव में प्रमुख अतिथि सुप्रसिद्ध पर्वतारोही पद्मश्री श्रीमती संतोष यादव जी होंगी और परमपूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत का उद्बोधन होगा। pic.twitter.com/H720QwuYBn
— RSS (@RSSorg) September 15, 2022
संतोष यादव एक मशहूर पर्वतारोही हैं. वे ऐसी पहली महिला हैं जिन्होंने दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है. वहीं पहली बार मई 1992 में और दूसरी बाद मई 1993 में उन्होंने पहली बार चढ़ाई की है. यह एक बड़ा विश्व रिकॉर्ड है. इसके अलावा कांगसुंग की तरफ़ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली दुनिया की पहली महिला भी हैं.
संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस, सरसंघचालक डा. मोहन भागवत मौजूद थे। मोहन भागवत ने अपनी स्पीच में एक बार फिर जनसंख्या नियंत्रण, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा नीति जैसे मुद्दों का जिक्र किया। कहा- जनसंख्या नियंत्रण और धर्म आधारित जनसंख्या असंतुलन ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लंबे समय तक नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
भागवत ने महिला मुख्य अथिति की मौजूदगी में एक घंटे तक स्पीच दी। कहा- जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है।
“यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए। हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे हैं। हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे। जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता।
संघ प्रमुख भागवत ने समाज में एकता की अपील की। उन्होंने कहा, जाति के आधार पर विभेद करना अधर्म है। यह धर्म के मूल से भी परे हैं। उन्होंने कहा, कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं..ऐसी बातें समाज से विदा हो जानी चाहिए। समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशाम एक होने चाहिए। उन्होंने कहा, स्वयंसेवक इसके लिए प्रयास करें तो सामाजिक विषमता को दूर किया जा सकता है।
भागवत ने कहा, भाषा, संस्कृति और संस्कार बचाने के लिए हमें खुद ही जागरूक होना होगा। उन्होंने कहा, हमें देखना होगा कि इसके लिए हम अपनी ओर से क्या करते हैं। क्या हम घर की नेम प्लेट को मातृभाषा में लगवाते हैं? क्या निमंत्रण पत्र मातृभाषा में छपवाते हैं? क्या अपने बच्चों को संस्कारों के लिए पढ़ने के लिए भेजते हैं? उन्होंने कहा, हम बच्चों को इस लिहाज से भेजते हैं कि वह ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए ज्यादा डिग्री लें।
मोहन भागवत ने कहा, देश में जनसंख्या का सही संतुलन जरूरी है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि अपने देश का पर्यावरण कितने लोगों को खिला सकता है, कितने लोगों को झेल सकता है। यह केवल देश का प्रश्न नहीं है। जन्म देने वाली माता का भी प्रश्न है। उन्होंने कहा, जनसंख्या की एक समग्र नीति बने, वह सब पर लागू हो। उस नीति से किसी को छूट न मिले। उन्होंने कहा, जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है तब-तब उस देश की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है। एक भूभाग में जनसंख्या में संतुलन बिगड़ने का परिणाम है कि इंडोनेशिया से ईस्ट तिमोर, सुडान से दक्षिण सुडान व सर्बिया से कोसोवा नाम से नये देश बन गये। उन्होंने कहा, जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ पांथिक आधार पर जनसंख्या संतुलन भी महत्व का विषय है जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।
भागवत ने कहा, नयी शिक्षा नीति के कारण छात्र एक अच्छा मनुष्य बने, उसमें देशभक्ति की भावना जगे, वह सुसंस्कृत नागरिक बने यह सभी चाहते हैं। उन्होंने कहा, इसके लिए मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने वाली नीति बननी चाहिए यह अत्यंत उचित विचार है और नयी शिक्षा नीति के तहत उस ओर शासन व प्रशासन पर्याप्त ध्यान भी दे रहा है।
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