धर्म आधारित आरक्षण अंबेडकर के विचारों के खिलाफ: RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबोले

समग्र समाचार सेवा
बेंगलुरु ,25 मार्च।
कर्नाटक सरकार द्वारा मुस्लिम समुदाय को सरकारी अनुबंधों में चार प्रतिशत आरक्षण देने के फैसले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि धर्म आधारित आरक्षण न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर भी आघात करता है

होसबोले ने अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के अंतिम दिन इस विषय पर अपना स्पष्ट मत रखते हुए कहा,
“धर्म के आधार पर आरक्षण की कोई जगह संविधान में नहीं है। बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने जिस संविधान का निर्माण किया, वह धर्म के आधार पर आरक्षण को मंजूरी नहीं देता। जो कोई भी इस तरह के कदम उठा रहा है, वह संविधान के निर्माता के विचारों के खिलाफ काम कर रहा है।”

होसबोले ने कहा कि पहले भी आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की सरकारों ने मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी, लेकिन उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया

उन्होंने कहा,
“भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है। किसी भी धर्म विशेष के आधार पर आरक्षण देना न्यायसंगत नहीं है और इसे पहले भी न्यायालयों ने खारिज किया है।”

जब उनसे मुगल शासक औरंगजेब की कब्र को लेकर चल रहे विवाद पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि भारत में हमेशा से भारतीय मूल्यों और संस्कृति की रक्षा करने वालों को नजरअंदाज किया गया, जबकि आक्रांताओं को महिमामंडित किया गया

उन्होंने दारा शिकोह का उदाहरण देते हुए कहा कि,
“जो व्यक्ति भारतीय मूल्यों में विश्वास करता था, उसे इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया गया, जबकि आक्रांताओं को हीरो बना दिया गया।”

इसके साथ ही, उन्होंने महाराणा प्रताप जैसे महान योद्धाओं को याद किया, जिन्होंने भारत की संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए मुगलों से संघर्ष किया

जब होसबोले से पूछा गया कि क्या RSS केंद्र सरकार की नीतियों को प्रभावित करता है, तो उन्होंने इसे सिरे से खारिज कर दिया।

उन्होंने कहा,
“संघ सरकार को रोज़ाना कोई निर्देश नहीं देता। हां, जब जनता की ओर से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठते हैं, तो संघ के कार्यकर्ता उन्हें विभिन्न मंचों के माध्यम से सरकार तक पहुंचाते हैं।”

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार के कामकाज का आकलन करने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि जनता चुनावों के माध्यम से पहले ही अपना निर्णय सुना चुकी है।

होसबोले ने दोहराया कि हिंदू पहचान केवल धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचारधारा है

उन्होंने कहा कि समाज में जातिवाद और लैंगिक असमानता जैसी समस्याएं अब भी मौजूद हैं, लेकिन RSS अपने शाखाओं के माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है

उन्होंने दावा किया कि RSS के प्रयासों से कई अंतरजातीय विवाह हुए हैं, जो सामाजिक एकता का प्रतीक हैं।

संस्कृति और इतिहास पर बात करते हुए होसबोले ने कहा कि भारतीय समाज को पश्चिमी मानसिकता से मुक्त करने की आवश्यकता है

उन्होंने कहा,
“जो लोग इस देश की सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं, वे कभी भी इस देश का हिस्सा नहीं हो सकते। हमें उन विकृत ऐतिहासिक व्याख्याओं का विरोध करना चाहिए, जो हमारी मूल पहचान को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं।”

होसबोले के इस बयान के बाद कर्नाटक में पहले से चल रही आरक्षण बहस और भी तेज हो गई है

RSS के विचार समर्थकों को मजबूती देते हैं, जो मानते हैं कि धर्म आधारित आरक्षण से सामाजिक असमानता बढ़ेगी।
विपक्षी दल और मुस्लिम समुदाय के नेता इस कदम को अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमले के रूप में देख रहे हैं।
संविधान और अंबेडकर की विचारधारा को लेकर भी नई बहस छिड़ गई है कि क्या धर्म आधारित आरक्षण वास्तव में उनके सिद्धांतों के खिलाफ है।

धर्म आधारित आरक्षण के खिलाफ RSS की यह मुखर प्रतिक्रिया संवैधानिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दे रही है

जहां एक ओर सरकार और न्यायपालिका के निर्णय इस विषय पर महत्वपूर्ण होंगे, वहीं दूसरी ओर RSS के इस रुख से भारतीय राजनीति में धर्म, आरक्षण और सामाजिक समरसता को लेकर नई दिशा तय हो सकती है

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