राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका

डॉ०ममता पांडेय

“महारानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक की “हीरक जयंती” (डायमंड जुबली ) के अवसर पर नागपुर में बांटी गई मिठाइयों को फेंकने  वाले बालक की उम्र उस समय आठ साल  की थी।”बचपन में ही  इस बालक के मन में यह  प्रश्न  उठने लगा कि कैसे मुठ्ठी भर विदेशी इतने लंबे समय तक भारत जैसे विशाल और प्राचीन  राष्ट्र  पर शासन कर सकते हैं?

सन 1908 में स्कूल में अंग्रेज निरीक्षक निरीक्षण हेतु आए हुए थे उसे दिन स्कूल में “वंदे मातरम”  गाने की वजह से उन्हें स्कूल से निष्कासित कर दिया गया था ।यह असाधारण बालक (मां रेवती बाई और  पिता पंडित बलिराम  पंत हेडगेवार ) 1अप्रैल1889 अवतरित  पुत्र  केशव बलिराम हेडगेवार जी का ऐतिहासिक महत्व पूर्ण परिचयहै।स्कूल से निष्कासन के बाद उनके भाइयों ने उन्हें पढ़ने के लिए पुणे भेजा।मैट्रिक के बाद हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बीएस मुंजे ने उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए सन 1910 में कोलकाता  भेजा।

कोलकाता में रहते हुए डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार ने “अनुशीलन समिति “और “युगांतर “जैसी विद्रोही संगठनों से अंग्रेजी सरकार से निपटने के लिए विभिन्न विधाएं सीखी। अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण करने के बाद वह रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए। केशव चक्रवर्ती के छद्म नाम से डॉ० हेडगेवार ने “काकोरी कांड” मेंभीभागीदारी निभाई इसके बाद वे भूमिगत हो गए। इस संगठन के द्वारा उन्होंने अनुभव से सीखा की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ रहे भारतीय विद्रोही अपने  मकसद को पाने के लिए कितने ही सुदृढ़ क्यों ना हो? फिर भी भारतजैसे देश में एक सशस्त्र विद्रोह को भड़काना संभव नहीं है।इसलिए नागपुर वापस लौट के बाद उनका सशस्त्र आंदोलन से मोह भंग हो गया। नागपुर लौटआए।उन दोनों देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी और सभी सचेत युवा उसमें अपनी सोच और क्षमता के हिसाब से भागीदारी निभा रहे थे डॉक्टर हेडगेवार जी ने भी शुरुआती दिनों में कांग्रेस में शामिल हो गए इसके कारण वे लोकमान्य तिलक डॉक्टर मूंज; विनायक दामोदर सावरकर के और नजदीक आ गए ।1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण राजद्रोह का इन पर मुकदमा चलाया गया एक साल का करवा भी मिला लेकिन मिस्र के घटनाक्रम के बाद भारत में शुरू हुए धार्मिक राजनीतिक खिलाफत आंदोलन के बाद डॉ०हेडगेवार का मन कांग्रेस के प्रति भी खिन्न हो गया ।1923 में सांप्रदायिक दंगों ने उन्हें पूरी तरह से हिंदुत्व की ओर प्रेरित किया।

सावरकर जी ने हिंदुत्व को परिभाषित करते हुए कहा”सिंधु नदी से पूर्व की ओर लोगों की विकास यात्रा के दौरान सनातनी आर्य समाज बौद्ध जैन और सिख धर्म समेत जितने भी धर्म और धार्मिक धाराओं का जन्म हुआ वह सभी हिंदुत्व के दायरे में आते हैं उनके मुताबिक मुसलमान; ईसाई और यहूदी इस मिट्टी की उपज नहीं है और इसलिए इस मिट्टी के प्रति उनके मन में ऐसी भावना नहीं है जो हिंदुओं के मन में होती है।”

इसी परिभाषा के आधार पर डॉ० केशव बलिराम हेडगेवार ने हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना की और उस परिकल्पना को साकार रूप देने के लिए 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन भैया जी दानी;बाबा साहब आप्टे; बालासाहेब देव रस और मधुकर राव भागवत के साथ मिलकर ” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” “की नींव रखी। ( 8 वर्ष के  उस  बालक के संकल्प ने उम्र के 36 वर्ष  ब्रिटिश भारत की तस्वीर और तकदीर बदलने  के संकल्प को कार्यरूप में परिणित  किया) पहले “सरसंघ संचालक” बने। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उन्हें प्रेम स्नेह से “डॉ० साब” संबोधित  करता है। संघ की स्थापना के बाद उन्होंने उसके विस्तार की योजना बनाई और नागपुर में शाखा लगने लगी। संस्थापक सदस्यों को अलग-अलग प्रदेशों में प्रचारक की भूमिका सौंपी गई।

“हिंदू संस्कृति ही हिंदुस्तान की प्राणवायु है ।इसलिए  यह स्पष्ट है कि यदि हिंदुस्तान की रक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति का पोषण करना चाहिए। यदि हिंदुस्तान में ही हिंदू संस्कृति नष्ट हो जाए तथा हिंदू समाज का अस्तित्व समाप्त हो जाए तो केवल भौगोलिक इकाई को हिंदुस्तान कहना उचित नहीं होगा ।केवल भौगोलिक स्थिति से राष्ट्र नहीं बनता। संपूर्ण समाज को इतनी सजगता  तथा संगठित स्थिति में होना चाहिए कि कोई भी हमारे सम्मान के किसी भी बिंदु पर बुरी नजर डालने का साहस न कर सके।” लहराते  “भगवा ध्वज” के साथ 1939 में  संघ की प्रार्थना  हेतु 10 दिन बैठक चली। सभी भाषाओं की जननी स्वरूप देववाणी संस्कृत को चुना गया। संघ संगठन का आराध्य है “भारत माता”(श्री नरहरि भिडे गुरुजी या भिड़े मास्टर द्वारा रचित प्रार्थना) को स्वीकृति मिली।

श्रद्धा पूर्वक प्रार्थना का पाठ

“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि”

” भारत माता की जय” प्रेरक मंत्र है। इसमें भाग लेने वाले सदस्य “राष्ट्रीय स्वयं सेवक” कहलाते हैं। नियमित अंतराल पर प्रांतीय और अखिल भारतीय स्तर पर “संघ शिक्षा वर्ग “नामक श्रेणीबद्ध प्रशिक्षण शिविरों द्वारा शाखा प्रक्रिया को और अधिक सुदृढ़ किया जाता है।छोटे-छोटे बलूत के पेड़ों से बड़े-बड़े ओक के पेड़ उगते हैं नागपुर में संघ की पहली शाखा से संघ के “मिशन” को गति मिली I “प्रचारक” (राष्ट्र निर्माण गतिविधियों के लिए पूरी तरह समर्पित पूर्णकालिक सामाजिक कार्यकर्ता) काम करने लगे  एक छोटी सी “धारा” ने विशाल पुण्य सरिता का रूप ले लिया। देश संघ की शाखाओं की 67000 से भी अधिक हैं।

       राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का  “ध्येय” (मिशन ) राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए राष्ट्रीय चरित्र; मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण; अनुशासन; आत्म संयम; साहस और वीरता का पालन पोषण आवश्यक है । इन महान आवेगा को पैदा करना और उसका पोषण करना देश के सामने सबसे चुनौती पूर्ण कार्य है_ जिसे स्वामी विवेकानंद ने “मानव निर्माण” कहा है।

दयानंद सरस्वती विवेकानंद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीय पुनर्जागरण के जो बीज  बोए थे उसी  प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए “डॉ साहब” ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में  राष्ट्र को स्वतंत्रता की  भावना के प्रज्वलन को अक्षुण रखना ; राष्ट्र की सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करना राष्ट्रीय सेवक संघ की चारित्रिक विशेषताओं को सुदृढ़ किया। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर राष्ट्र की अखंडता  का क्षरण;आर्थिक और नैतिक दिवालियापन; धन बल के माध्यम से हिंदू धर्म से निरंतर धर्मांतरण अलगाव की बढ़ती प्रवृत्ति ;लोगों के मूल चरित्र के साथ असंगत विचार पद्धति और शिक्षा तथा हिंदू या हिंदुत्व के नाम पर चलने वाली किसी भी चीज का राज्य प्रायोजित अपमान ;यह व्यापक प्रवृत्तियां डॉ०हेडगेवार द्वारा परिकल्पित संघ के दार्शनिक आधार की सुदृढ़ता  और हिंदू समाज तथा पूरे राष्ट्र के अस्तित्व और स्वास्थ्य के लिए इसकी निरंतर प्रासंगिकता का पर्याप्त प्रमाण प्रदान करती हैं।

संघ की स्थापना के बाद इसकी सफलता को देखते हुए महात्मा गांधी; सावरकर; सुभाष चंद्र बोस ;मदन मोहन मालवीय और अन्य प्रतिष्ठित मूर्धन्य विद्वानों ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के विजन मिशन*की प्रशंसा की और यह कहा की राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा*

ध्येय वाक्य*”मातृभूमि के लिए निःस्वार्थ सेवा”

“किसी घने जंगल को जलहीन मरुस्थल को या निर्जन भूभाग को राष्ट्र नहीं कहते हैं; जिस भूभाग पर एक विशेष जाति;  विशेष धर्म के ;परंपरा वाले  विशेष विचारधारा वाले और विशेष इतिहास वाले लोग एकत्रित रहते हैं वह भूभाग “राष्ट्र” माना जाता है। तथा वह राष्ट्र उन्हीं लोगों के नाम से ही पहचाना जाता है।”

डॉ० साब अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति समर्पित करते हुए 21 जून 1940 में नागपुर में  51 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। उनकी समाधि “रेशम बाग” नागपुर में स्थित है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 99 वर्ष की इस यात्रा के दौरान कई उतार-चढ़ाव भी देखे हैं ।संघ को अब तक कुल  चार बार अग्नि परीक्षा से भी गुजरना पड़ा है * संघ * और निखरकर  सामने आया।

*1947 :में 4 दिन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित किया गया।

*स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार द्वारा   राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 99 वर्ष की  अब तक की यात्रा में तीन बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को  प्रतिबंधित किया गया वर्ष 1948 में जब आरएसएस के पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या की गई। आपातकाल के दौरान (1975-1977) 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद।राष्ट्र निर्माण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतुलनीय योगदान को देखें:

जनमत निर्माण*जन जन तक पहुंच बनाना भारत को सशक्त बनाने का संकल्प*

*:पांचजन्य* (साप्ताहिक)

राष्ट्र धर्म*(दैनिक समाचार पत्र)

स्वदेश*(दैनिक समाचार पत्र)

के माध्यम से राष्ट्रीय से स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने समाचार पत्रों के माध्यम से जन जागरण का कार्य किया। इनमें प्रमुख है नानाजी देशमुख दीनदयाल उपाध्याय आदि।

*कश्मीर सीमा पर निगरानी विभाजन पीड़ितों को आश्रय: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तान सुना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नजर रखी। यह काम ना नेहरू माउंटबेटन सरकार कर रही थी ना कश्मीर की हरि सिंह सरकार कर रही थी इस समय जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपने मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर किए हैं ।विभाजन के बाद दंगे भड़काने पर जब नेहरू सरकार नियंत्रण नहीं कर सकी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों  ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे। 1962 का युद्ध: 1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देशभर से राष्ट्रीय सेवक संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे उसे पूरे देश ने देखा और सराहा भी। स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी सैनिक आवाजाही ;मार्गों की चौकसी प्रशासन की मदद ;रसद और आपूर्ति में मदद और यहां तक की शहीदों के परिवारों की भी चिंता की। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा परेड करने वालों को आज भी तैयारी करने के लिए समय की आवश्यकता होती है लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए। निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू जी ने कहा यह दर्शाने के लिए की” “केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा जा सकता है ।”विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए राष्ट्रीय सेवक संघ को आननफानन में  आमंत्रित किया गया।

कश्मीर विलय: कश्मीर विलय के समय कश्मीर के महाराजा हरि सिंह  विलय का फैसला नहीं कर पा रहे थे पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी जब नेहरू सरकार भी कोई निर्णय नहीं ले पाई। तब सरदार पटेल ने गुरु गोलवलकर जी से मदद मांगी। गुरुजी श्रीनगर पहुंचे महाराज से मिले इसके बाद 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर में भारत में विलय का पत्र हस्ताक्षर कर दिल्ली भेज दिया।

*जम्मू एवं कश्मीर प्रजा परिषद के मुद्दे पर अगस्त 1952 में कश्मीर द्वारा पर डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विद्या गुरु दत्त अटल बिहारी वाजपेई बलराज मोदक के साथ जम्मू गए एक “देश में दो विधान दो प्रधान और दो निशान “के विरोध में सबसे पहले आवाज उठाने वाले भारतीय जनता के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ही  थे। भारतीय एकता के लिए 23 जून 1953 को अपना बलिदान देने वाले डॉक्टर मुखर्जी ही थे।

*1965 के युद्ध में कानून व्यवस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही संभाली: पाकिस्तान से युद्ध के समय  लाल बहादुर शास्त्री जी को भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ याद आया।  लाल बहादुरशास्त्री जी ने कानून व्यवस्था की स्थिति को संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से किया ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिस कर्मियों को सेवा की मदद में लगाया जा सके घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयंसेवक ही थे।युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ हटाने का काम राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयंसेवकों ने ही किया था।

*गोवा का विलय*: दादर नगर हवेली और गोवा के भारत विलय में राष्ट्रीय स्वयं  सेवक संघ की निर्णायक भूमिका थी। 21 जुलाई 1954 को दादर को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया। 28 जुलाई को नरौली और फीपरिया  मुक्त कराए गए ।और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त हुई। संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुर्तगाल का झंडा उतार कर भारत का तिरंगा फहराया । संपूर्ण दादर नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त कराकर भारत सरकार को सौंप दिया गया। संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे । गोवा में सशस्त्र  हस्तक्षेप करने से नेहरू जी ने इनकार कर दिया ।जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंचकर आंदोलन शुरू किया ।परिणाम स्वरुप जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को 10 वर्ष की सजा सुनाई गई ।हालत बिगड़ने पर  भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा स्वतंत्र हुआ।

*1952 में गोरखपुर में पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शिक्षा के गिरते हुए स्तर को देखते हुए । नैतिक एवं चारित्रिक शिक्षा के उद्देश्य से नानाजी देशमुख ने गोरखपुर में सबसे पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की। आज विद्या भारती संस्था के अंतर्गत 50000 से अधिक सरस्वती स्कूल संचालित हैं।

*भारतीय मजदूर संघ*: 1955 में बना भारतीय मजदूर संघ विश्व का ऐसा पहले मजदूर संगठन है जो विध्वंस के बजाय निर्माण की धारणा पर चलता है कारखाने में विश्वकर्मा जयंती का चलन भारतीय मजदूर संघ ने ही शुरू किया यह रचनात्मक एवं शांतिपूर्ण मजदूर संगठन है।

*आपातकाल1975-1977 के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेखनीय योगदान: 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के चार दिन बाद चार दलों का विलय कर जनता पार्टी का निर्माण हुआ जनता पार्टी के निर्माण में राष्ट्रीय स्वयं संघ के स्वयंसेवकों में नानाजी देशमुख दीनदयाल उपाध्याय जी का विशेष योगदान रहा।

जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का उद्घोष “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”* इस कार्य में  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक नानाजी देशमुख का योगदान अतुलनीय है।

1951 में जनसंघ की स्थापना में भी राष्ट्रीय सेवक संघ के स्वयंसेवकों का महत्वपूर्ण योगदान है।

*जमींदारी प्रथा समाप्त करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक श्री भैरव सिंह शेखावत की प्रगतिशील शक्ति ने ही  यह कार्य कर दिखाया जो बाद में भारत के उपराष्ट्रपति भी बने ।

*सेवा कार्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अप्रतिम योगदान: भारत को जब भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की आवश्यकता पड़ी है  “संघ सेवक”सदैव अपने कर्तव्य पर तत्पर रहे हैं। चाहे वह 1971 में उड़ीसा में आए भयंकर चक्रवात या भोपाल की गैस त्रासदी 1984 में सिख दंगे गुजरात के भूकंप सुनामी का प्रलय हो या उत्तराखंड की बाढ़ हो ;कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा हो या फिर कोरोना काल में सेवा की आवश्यकता हो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवको ने अपनी सहभागिता दी है। आज भी ऐसे अनगिनत स्वयंसेवक हैं जो पल प्रति पल राष्ट्र निर्माण में अपनी सेवाएं दे रहे हैं जो कि कभी प्रकाश में ही नहीं आ पाते हैं।

आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 99 वर्ष पूर्ण कर रहा है। संघ की प्रासंगिकता  सम सामयिक है।

(यशस्वी भारत*: वर्तमान सर संघ संचालक मोहन भागवत जी के 17 भाषणों  के संकलन पर आधारित;2018 में प्रकाशित है)

इस पुस्तक में महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं जिसके माध्यम से संघ के वैचारिक अधिष्ठान कार्य पद्धति व प्रासंगिकता को समझने में मदद मिलती है।

1* यशस्वी भारत:”हिंदू विविधता में एकता के उपासक हैं” । हम स्वस्थ समाज की बात करते हैं तो उसका आशय संगठित समाज से है।

2*हमको दुर्बल नहीं रहना है हमें एक होकर सबकी चिंता करनी है।

3* हमारा काम सबको जोड़ने का है।

4* शक्ति संपन्न होने के बाद भी दुनिया के किसी भी देश को ना रोंदने वाला भारत है। सम्पूर्ण  विश्व को सुख शांति पूर्वक जीने की सीख अपने जीवन से देने वाला भारत है।(पृष्ठ 45)

5* संघ में आकर ही संघ को समझा जा सकता है।

6* राष्ट्रीयता ही संवाद का आधार है वैचारिक मतभेद होने के बाद भी एक देश के हम सब लोग हैं और हम सबको मिलकर इस देश को बड़ा बनाना है। इसलिए हम संवाद करेंगे (पृष्ठ 73)

7*संघ का काम व्यक्ति निर्माण का है व्यक्ति निर्मित होने के बाद  समाज में वातावरण बनाते हैं। समाज में आचरण में परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं यह स्वावलंबी पद्धति से सामूहिकता से चलने वाला काम है संघ केवल एक ही काम करेगा व्यक्ति निर्माण लेकिन स्वयं सेवक समाज के हित में जो जो करना पड़ेगा वह करेगा( पृष्ठ 205)

8*भारत से  निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्य बोध है; उसका नाम हिंदुत्व है।

9*हमारा कोई शत्रु नहीं है ना दुनिया में है ;ना देश में। हमारी शत्रुता  करने वाले लोग होंगे। उनसे अपने को बचाते हुए भी हमारी आकांक्षा उनको खत्म करने की नहीं; उनको साथ लेने की है। जोड़ने की है ।यह वास्तव में हिंदुत्व है।( पृष्ठ 221)

10*परंपरा से ;राष्ट्रीयता से; मातृभूमि से; पूर्वजों से हम सब लोग हिंदू हैं यह हमारा कहना है और यह हम कहते रहेंगे। (पृष्ठ 257)

11* हमारा कहना है कि हमारी जितनी शक्ति है हम करेंगे। आपकी जितनी शक्ति है आप करो ।लेकिन इस देश को हमको खड़ा करना है क्योंकि संपूर्ण दुनिया को आज तीसरा रास्ता चाहिए ।दुनिया जानती है और हम भी जाने की तीसरा रास्ता देने की अंतर्निहित  शक्ति केवल और केवल भारत की है ।(पृष्ठ 276)

12* देशहित की मूलभूत अनिवार्य आवश्यकता है कि भारत के” स्व”की पहचान के  सु स्पष्ट अधिष्ठान पर खड़ा हुआ सामर्थ्य_संपन्न व गुणवत्ता वाला संगठित समाज इस देश में बने। यह हमारी पहचान हिंदू पहचान है ;जो हमें सबका आदर ;सबको स्वीकार; सबका मेल _मिलाप व सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिंदू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य संपन्न बनाना चाहता है और इस काम को संपूर्ण संपन्न करके रहेगा। ( पृष्ठ 279 )

एमपी वैद्य जी का कहना है वर्तमान पीढ़ी  इस “यशस्वी भारत ” पुस्तक को  पढ़े उसमें व्यक्त किए गए विचारों पर विचार करें; संघ को समझने का अर्थ संघ की। अनुभूति है इसलिए हम  यथा संभव शाखा के कार्य से जुड़े हैं और सामाजिक एकता और सामाजिक समरसता का अनुभव लेकर अपना जीवन समृद्धि एवं सार्थक बनाएं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  के संस्थापक चाहे वह डॉ०साहब(डॉ०हेडगेवार)हों या दीनदयाल उपाध्याय ;नानाजी देशमुख या असंख्य ऐसे कार्यकर्ता  हैं जिन्होंने देश निर्माण के लिए ;राष्ट्र निर्माण के लिए अथक प्रयास किया है जो “मील का पत्थर “हैं।आज यदि हम  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मीनार के” गुंबद ” शीर्ष को देखें तो कुछ विशेष नाम उल्लेखनीय है जिनका राष्ट्र निर्माण में अतुलनीय; अप्रतिम योगदान  रहा है  उदाहरण  स्वरूप पंडित दीनदयाल उपाध्याय  ; नानाजी देशमुख और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के असली  उत्तराधिकारी पंडित अटल बिहारी वाजपेई   जी का विशेष योगदान है ।वर्तमान समय में प्रकाशवान व्यक्तित्व है :

  • श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी
  • श्री अमित शाह
  • श्री राजनाथ सिंह आदि

व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ  से वाले संस्कारों  से दीक्षित होकर एक श्रेष्ठतम स्वयंसेवक बन भारत के पुनरुत्थान और पुनः विश्व गुरु के रूप में भारत को पुनर्स्थापित करने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।

विजयादशमी पर्व  व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस पर संपूर्ण भारतवासी  डॉ० साब केशव बलिराम हेडगेवार जी संस्थापक  “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” को श्रद्धावत नमन करते हैं।

डॉ०ममता पांडेय

सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान

पंडित अटल बिहारी

शासकीय महाविद्यालय जयसिंहनगर

जिला शहडोल मध्य प्रदेश

mamtapandey743@gmail.com

Comments are closed.