समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 6 अगस्त: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने 100वें वर्ष में प्रवेश करने जा रहा है, और इस ऐतिहासिक मौके पर 26 से 28 अगस्त तक दिल्ली के विज्ञान भवन में एक विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि संघ की विचारधारा, रणनीति और वैश्विक दृष्टिकोण पर संवाद का मंच बनने जा रहा है।
कूटनीतिक संदेश: तीन देशों को नहीं भेजा गया निमंत्रण
इस आयोजन में RSS द्वारा पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की को आमंत्रण न भेजने का निर्णय चर्चा में है। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान को निमंत्रण न देने के पीछे “वातावरण अनुकूल नहीं है” का कारण बताया गया है। भारत-पाक तनाव, सीमापार आतंकवाद और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मुद्दे भी इसके पीछे माने जा रहे हैं।
वहीं, तुर्की को भी इस आयोजन से दूर रखा गया है, क्योंकि वह पाकिस्तान के साथ बढ़ते सैन्य संबंध और भारत विरोधी भूमिका के चलते संघ के दृष्टिकोण में ‘संदेहास्पद’ बना हुआ है। स्वदेशी जागरण मंच ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंधों की भी मांग की है।
संवाद, आत्ममंथन और समाजिक समावेश की पहल
कार्यक्रम का एक विशेष पहलू यह है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत अंतिम दिन श्रोताओं के सवालों का जवाब देंगे, जो संगठन के भीतर खुले संवाद और आत्ममंथन की प्रवृत्ति को दर्शाता है। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया कि इस मंच का उद्देश्य केवल संगठन की प्रशंसा नहीं, बल्कि आलोचनाओं को सुनना और उत्तर देना भी है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अब औपनिवेशिक ढांचों पर प्रश्न उठाकर चिकित्सा, अर्थशास्त्र और संस्कृति के क्षेत्र में भारतीय दृष्टिकोण को विकसित करना होगा।
विपक्ष और अल्पसंख्यकों की भागीदारी
हालांकि तीन देशों को आयोजन से बाहर रखा गया है, लेकिन RSS ने विपक्षी दलों, मुस्लिम और ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों को इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया है। यह संघ की सामाजिक संवाद की नई रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।
इस पहल से संघ उन आलोचनाओं का भी उत्तर देना चाहता है, जो उसे एकधर्मी या विभाजक संगठन के रूप में देखते हैं।
देशव्यापी विस्तार: दिल्ली से बेंगलुरु, मुंबई और कोलकाता तक
दिल्ली में होने वाला यह आयोजन एक राष्ट्रीय विमर्श की शुरुआत है। इसके बाद कार्यक्रम बेंगलुरु, मुंबई और कोलकाता में भी आयोजित किए जाएंगे, जिनका उद्देश्य स्थानीय संदर्भों में विचारों का प्रसार और संवाद को बढ़ावा देना है।
RSS का यह शताब्दी समारोह सिर्फ एक संगठन का उत्सव नहीं, बल्कि भारत की सामाजिक और कूटनीतिक दिशा पर मंथन का अवसर है। तीन देशों को आमंत्रित न करने की रणनीति इसके राजनयिक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जबकि विपक्ष और अल्पसंख्यकों की भागीदारी से स्पष्ट होता है कि संघ विचारों के आदान-प्रदान और सामाजिक समावेश की नई राह पर चल पड़ा है।
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