राज्यसभा में हंगामा: खरगे और नड्डा के बीच तीखी बहस, CISF को लेकर विवाद

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5 अगस्त: संसद का मानसून सत्र इस बार काफी विवादास्पद रहा, और मंगलवार का दिन राज्यसभा में तीखी बहस और आरोप-प्रत्यारोप का गवाह बना। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने सवाल उठाए कि संसद में पुलिस बुलाने की क्या जरूरत थी, और CISF (सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्यूरिटी फोर्स) को सदन में बुलाना क्या संसद नहीं बल्कि अमित शाह चला रहा था?

खरगे ने कहा, “हम लोकतांत्रिक तरीके से विरोध कर रहे थे। सीआईएसएफ को बुलाना सदन की मर्यादा के खिलाफ है।” उन्होंने यह भी प्रश्न खड़ा किया कि क्या लोकतंत्र में विपक्ष को अपना विरोध प्रदर्शन करने से रोका जाएगा।

इस पर भाजपा नेता जेपी नड्डा ने पलटवार करते हुए कहा, “यह तरीका अलोकतांत्रिक है, और सदन को ऐसे नहीं चलाया जा सकता। मैं 40 साल विपक्ष में रहा हूँ — आप मुझसे सीखिए कि सदन चलता कैसे है। विपक्ष ही सदन नहीं चलने देगा?” उन्होंने sharply कहा, “जहां हमारी नाक शुरू होती है, आपकी विरोध की स्वतंत्रता वहीं खत्म होती है। यहां कोई फोर्स नहीं, मार्शल होते हैं।”

संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने भी दावा किया कि खरगे ने भ्रम फैलाया, क्योंकि उस दिन सदन में केवल ‘मार्शल’ मौजूद थे — कोई CISF या पुलिस बल नहीं था। मंत्री ने कहा, “यह रिकॉर्ड में दर्ज है कि केवल मार्शल ही सदन में प्रवेश कर सकते हैं। विपक्ष के नेता झूठे तथ्य पेश कर रहे हैं।”

यह विवाद केवल एक बहस का हिस्सा नहीं है, बल्कि Bihar की वोटर लिस्ट रीविजन (SIR) को लेकर विपक्ष के आंदोलन के बीच हुआ। विपक्ष ने SIR के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहा था, जबकि सरकार ने संसद की कार्यवाही चालू रखने की कोशिश की।

खरगे ने पहले भी 1 अगस्त को उपसभापति हरिवंश को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा कि विपक्ष अपना लोकतांत्रिक अधिकार प्रयोग कर रहा था, लेकिन CISF के जवान सदन वेल में दौड़ाए गए। उनके अनुसार, यह लोकतांत्रिक मर्यादा के खिलाफ था।

वेबसाइट संसदीय नियमों के अनुसार, CISF केवल विशेष मार्शल ड्यूटी पर तैनात होते हैं, और केवल स्पीकर के आदेश पर प्रवेश कर सकते हैं। जानकारी के अनुसार, CISF को दिसंबर 2023 के उल्लंघन के बाद संसद परिसर की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था।

विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ बहस का हिस्सा नहीं, बल्कि लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका और संसदीय मर्यादा पर एक बड़ा प्रश्न खड़ा कर रहा है। विपक्ष और सत्ता दोनों ही इस मामले में अपना-अपना आधार पेश कर रहे हैं, जिससे संसद के भीतर सुरक्षा व्यवस्था और लोकतांत्रिक अधिकार की सीमा पर बहस तेज रही।

 

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