रूस ने मिसाइल प्रतिबंध खत्म किया, अमेरिका-रूस रिश्तों में तनाव बढ़ा

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,  5 अगस्त: रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच, रूस ने मध्यम दूरी की मिसाइलों (INF वर्ग) को अपनी सीमा में तैनात करने पर लगाए गए स्वयं के प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया है। यह ऐतिहासिक फैसला अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस के तटों के नजदीक दो परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती के आदेश के बाद आया है। वैश्विक शीत युद्ध जैसे तनाव की स्थिति फिर से उभर कर सामने आ रही है।

रूसी विदेश मंत्रालय का बयान

रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, “रूस अब INF वर्ग की मिसाइलों की तैनाती पर लगाए गए प्रतिबंधों से बंधा हुआ नहीं है क्योंकि उन प्रतिबंधों को बनाए रखने की आवश्यकताएँ अब खत्म हो गई हैं।”

ट्रंप ने क्या कहा?

इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने आदेश दिया कि रूस के नज़दीकी समुद्री क्षेत्र में दो परमाणु पनडुब्बियाँ तैनात की जाएँ। ट्रंप का यह फैसला रूस के सुरक्षा परिषद डिप्टी चेयरमैन मेदवेदेव की टिप्पणियों के बाद आया, जिन्होंने ट्रंप को चेतावनी देते हुए कहा था, “हर अल्टीमेटम अमेरिका से युद्ध की दिशा में एक कदम है। रूस कोई इज़राइल या ईरान नहीं है जो चुप रहे।”

यूक्रेन पर रूसी हमले

रूस की ओर से यूक्रेन पर लगातार हमले जारी हैं, जिसमें कीव सहित कई अहम क्षेत्रों को निशाना बनाया गया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा कि ऐसे हमलों पर चुप नहीं रहना चाहिए और समर्थन के लिए लोगों का धन्यवाद किया।

INF संधि का इतिहास

यह निर्णय उस INF संधि से बाहर निकलने के सिलसिले में आता है, जो 1987 में अमरीका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच हुई थी। यह संधि 500 से 5,500 किलोमीटर तक मारक क्षमता वाले बलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों की तैनाती को प्रतिबंधित करती थी। अमेरिका पहले ही 2019 में इस संधि से अलग हो चुका है।

वैश्विक रणनीतिक तनाव का असर

ट्रंप की परमाणु पनडुब्बियाँ रूस के चारों ओर बढ़ते सैन्य तनाव की नई कड़ी हैं। यूरोप और एशिया में भू‑राजनीतिक समरूपता बिगड़ने से वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ने की संभावनाएँ बढ़ी हैं। विश्लेषकों का मानना है कि रूस के इस कदम से नई मिसाइल गारंटी प्रतियोगिताएँ फिर से शुरू हो सकती हैं।

विश्लेषक की राय

राजनीतिक और रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम न सिर्फ अमेरिका–रूस संबंधों को जटिल बनाएगा, बल्कि मध्य दूरी की हथियारों की दौड़ को फिर से उभार सकता है। इसके साथ ही वैश्विक दृष्टिकोण से शीत युद्ध के समान प्रतिस्पर्धा की स्थिति बनने की संभावना है।

 

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