रूस ने ट्रंप टैरिफ को बताया अन्यायपूर्ण, भारत और चीन पर अमेरिकी दबाव की आलोचना

समग्र समाचार सेवा
मॉस्को / नई दिल्ली, 19 सितंबर: रूस ने अमेरिका के भारत पर लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ की कड़ी आलोचना की है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत और चीन जैसी प्राचीन सभ्यताओं को धमकियों और अल्टीमेटम से डराया नहीं जा सकता। उन्होंने ट्रंप प्रशासन की नीतियों को अनुचित और अव्यावहारिक बताया।

न्यूज चैनल ‘चैनल 1’ के कार्यक्रम ‘द ग्रेट गेम’ में बातचीत करते हुए लावरोव ने कहा कि अमेरिकी नीतियों की वजह से कई देशों को नए ऊर्जा बाजार और संसाधनों की तलाश करनी पड़ रही है और उन्हें इसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत पर की गई कार्रवाई अन्यायपूर्ण है और इससे भारत-अमेरिका संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

अमेरिका के प्रतिबंध रूस के लिए खतरा नहीं:
रूसी विदेश मंत्री ने अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों पर भी प्रतिक्रिया दी। लावरोव ने कहा कि यह कोई बड़ी समस्या नहीं है और रूस को इन प्रतिबंधों से डर नहीं लगता। उन्होंने कहा, “सच कहूं तो मुझे रूस पर लगाए गए नए प्रतिबंधों में कोई समस्या नहीं दिखती। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में रूस पर अभूतपूर्व मात्रा में प्रतिबंध लगाए गए थे, और हमने उनका सामना किया।”

भारत पर एक्स्ट्रा टैरिफ का मामला:
कुछ दिन पहले ट्रंप प्रशासन ने रूस से तेल खरीदने पर भारत पर 25 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया। अमेरिका ने आरोप लगाया कि भारत रूस से तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध में उसकी मदद कर रहा है। हालांकि, भारत सरकार ने इन आरोपों को स्पष्ट रूप से खारिज किया। सरकार ने कहा कि भारत किसी भी देश की राजनीतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं करता और राष्ट्रीय हित के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि रूस का यह रुख भारत और चीन के प्रति उसके समर्थन को स्पष्ट करता है। लावरोव ने संकेत दिए कि अमेरिका की नीतियों के कारण वैश्विक ऊर्जा बाजार में बदलाव हो रहा है और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं को नए विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं।

इस घटना से स्पष्ट होता है कि अमेरिकी टैरिफ और दबाव से भारत और रूस के रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा। दोनों देश ऊर्जा और रणनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

रूस ने अपनी आलोचना में न केवल ट्रंप टैरिफ को अनुचित बताया, बल्कि अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय नीतियों और दबाव के तरीकों पर भी सवाल उठाए। इससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को आर्थिक दबाव से डराना आसान नहीं है।

 

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