हिंदुत्व की चेतना को, सनातन के इस चैतन्य को, प्रणाम..!
राष्ट्रीय राजमार्ग 44। बेंगलुरु से रीवा और उससे भी आगे तक फैला यह महामार्ग इन दिनों भगवा आस्था के महासागर में परिवर्तित हो चुका है। हर दिशा से आते हजारों-लाखों श्रद्धालु, वाहनों पर लहराते भगवा ध्वज, श्रीराम और हनुमान जी के चित्रों से सजे झंडे—यह दृश्य किसी उत्सव से कम नहीं। रास्ते के ढाबों, होटलों और विश्राम स्थलों पर श्रद्धालुओं का अपार समूह उमड़ पड़ा है। कहीं भोजन वितरण हो रहा है, तो कहीं थके हुए यात्री विश्राम कर रहे हैं। यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि सनातन की जागृत चेतना का भव्य उत्सव है।
यह दृश्य सिर्फ एक धार्मिक यात्रा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सनातन की शक्ति, उसकी एकजुटता और उसकी चेतना का जीता-जागता प्रमाण है। यह लाखों श्रद्धालु, चाहे किसी भी राज्य से हों, किसी भी भाषा के हों, किसी भी सामाजिक स्तर से हों—सब एक ही भावना से ओत-प्रोत हैं। यही सनातन की शक्ति है, जो व्यक्तिगत सीमाओं से ऊपर उठकर संपूर्ण समाज और राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती है।
महाकुंभ: सनातन की जागृति का महासंगम
प्रयागराज का महाकुंभ, जो करोड़ों श्रद्धालुओं को गंगा में एक साथ स्नान के लिए आकर्षित करता है, सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह सनातन की जीवंतता, उसकी अपार शक्ति और उसकी अखंडता का प्रतीक है। इस वर्ष अब तक 56 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा स्नान कर चुके हैं, जो कि यूरोप के सबसे बड़े देश जर्मनी की कुल जनसंख्या से भी अधिक है।
यह अद्भुत दृश्य विश्व को चकित कर रहा है। विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय सभ्यता और हिंदू संस्कृति को लेकर रुचि बढ़ रही है। विश्व के कई विद्वान अब भारत के सनातन धर्म को गहराई से समझने का प्रयास कर रहे हैं। यह कुंभ भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक वर्चस्व को पुनः स्थापित करने का अवसर बन चुका है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
महाकुंभ सिर्फ आस्था का संगम नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों का भी केंद्र बन चुका है। राजमार्गों पर लगे भोजनालय, होटलों, टैक्सी सेवाओं, ट्रकों, छोटे दुकानदारों, झंडे बेचने वालों, और अन्य व्यवसायियों के लिए यह आयोजन समृद्धि लेकर आया है। कई लोगों ने केवल 15-20 दिनों में ही पूरे वर्ष की कमाई कर ली है।
सरकार ने इस आयोजन को सहज बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। कई मार्गों पर टोल निःशुल्क कर दिए गए हैं, जिससे श्रद्धालुओं को सुविधा मिले। यह प्रशासनिक सहयोग सनातन की चेतना के प्रति सरकार की संवेदनशीलता को भी दर्शाता है।
सनातन की शक्ति को पहचानने की आवश्यकता
किन्तु, यह चेतना सिर्फ व्यक्तिगत आस्था और भक्ति तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ और कर्मकांड तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज, राष्ट्र और समष्टि के कल्याण की भावना को आत्मसात करता है।
इतिहास साक्षी है कि केवल कर्मकांड को सनातन समझने की भूल ने हमें कई बार कमजोर किया है। मिर्जा राजा जयसिंह, जो कट्टर सनातनी था, प्रतिदिन एकलिंगजी की पूजा करता था, किंतु उसी ने औरंगजेब के लिए शिवाजी महाराज के विरुद्ध युद्ध लड़ा। यह उदाहरण हमें याद दिलाता है कि सनातन की रक्षा केवल भक्ति से नहीं, बल्कि उसके वास्तविक स्वरूप को पहचानकर ही की जा सकती है।
आज जब विश्व सनातन की इस शक्ति को देख रहा है, तब हमें इसे केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं रखना चाहिए। यह चेतना भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान की नींव रख सकती है।
निष्कर्ष
महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हिंदुत्व की जीवंत चेतना का जागरण है। यह आस्था, श्रद्धा, एकता, और शक्ति का महापर्व है। यह केवल व्यक्तिगत मोक्ष का मार्ग नहीं, बल्कि संपूर्ण समाज और राष्ट्र की उन्नति का प्रतीक है।
यदि यह चेतना सही दिशा में प्रवाहित होती है, तो यह भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पुनरुत्थान का आधार बन सकती है। यह कुंभ सनातन के चैतन्य का महासंगम है, और इस चेतना को प्रणाम..!
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