समग्र समाचार सेवा
लखनऊ, 8जुलाई। उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के लिए हाल में 12 सदस्यों को सात जुलाई को कार्यकाल समाप्त होने के बाद समाजवादी पार्टी के सदस्यों की संख्या राज्य विधायिका के उच्च सदन में घटकर 10 के नीचे आ गई है। इसकी वजह से पार्टी को सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद गंवाना पड़ा है।
उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह द्वारा बृहस्पतिवार को जारी एक बयान के मुताबिक,’ 27 मई को विधान परिषद में सपा 11 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी और साथ ही गणपूर्ति (कोरम)हेतु भी सक्षम थी। इसकी वजह से पार्टी के सदस्य लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता प्रदान की गई थी।
सिंह ने बताया, सात जुलाई को विधान परिषद् में सपा के सदस्यों की संख्या घटकर नौ रह गई, जो 100 सदस्यीय विधान परिषद की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमावली के अनुसार गणपूर्ति की संख्या-10 से कम है. इसलिए विधान परिषद के सभापति ने मुख्य विरोधी दल सपा के लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मिली मान्यता तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी है। हालांकि, उनकी सदन में सपा के नेता के तौर पर मान्यता बरकरार रहेगी।’
बता दें कि बृहस्पतिवार को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया। इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाप्त कर दिया गया। विधान परिषद के विशेष सचिव ने गुरुवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है।
कार्यकाल पूरा करने वाले सदस्यों में जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप और दीपक सिंह शामिल हैं। इनका स्थान सात जुलाई से रिक्त घोषित कर दिया गया है।
विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है। इनमें उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और मंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह भी शामिल हैं, लेकिन इन दोनों की हाल में हुए विधान परिषद के चुनाव में जीत के बाद सदन में वापसी हुई है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी (सपा) के छह, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के तीन तथा कांग्रेस के एकमात्र सदस्य का कार्यकाल बुधवार को खत्म हो गया।
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