कुमार राकेश
महाकुंभ स्नान का धार्मिक व्यू सामाजिक महत्व दोनों हैं ।लेकिन इसके पुण्य लाभ को कैसे प्राप्त करे , उसके लिए अपना सनातन हिंदुत्व दर्शन ही सार है । सनातन हिंदुत्व
का मतलब है वसुधैव कुटुंबकम् !
सबका साथ , सबका विकास ! समाज में अंतिम व्यक्ति को भी खुशी प्राप्त हो !
ऐसी ख़ुशी को आम लोगो तक संप्रेषित करने के लिए हमारे वेद , पुराण , उपनिषद और सभी धर्म ग्रंथों में कई प्रकार की कथाओं का वर्णन किया गया है । यहाँ हम आपको शिव पुराण से जुड़ी एक कथा का जिक्र कर रहे हैं जो महाकुंभ स्नान और स्वर्ग लाभ से जुड़ा हुआ है ।जिससे हमे अपने सनातन हिंदुत्व दर्शन का मर्म भी समझ में आयेगा और उसका मूल तत्त्व भी ।
वो कथा इस प्रकार है जो हमे अपने सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ती है । उसका पूर्ण एहसास करवाती है ।
कथा इस प्रकार है –
सोमवती स्नान का पर्व था। घाट पर भारी भीड़ लग रही थी। शिव पार्वती आकाश से गुजरे। पार्वती ने इतनी भीड़ का कारण पूछा -शिव ने कहा – सोमवती पर्व पर कुम्भ (गंगा) स्नान करने वाले स्वर्ग जाते है। उसी लाभ के लिए यह स्नान करने वालो की भीड़ जमा है।
पार्वती का कौतूहल तो शान्त हो गया पर नया संदेह उपज पड़ा, इतनी भीड़ के लायक स्वर्ग में स्थान कहाँ है? फिर लाखों वर्षों से लाखों लाख लोग इस आधार पर स्वर्ग पहुँचते तो उनके लिए स्थान भी तो कहीं रहता?
छोटे से स्वर्ग में यह कैसे बनेगा? भगवती ने अपना सन्देह प्रकट किया और समाधान चाहा।
भगवान शिव बोले – शरीर को गीला करना एक बात है और मन की मलीनता धोने वाला स्नान जरूरी है। मन को धोने वाले ही स्वर्ग जाते हैं। वैसे लोग जो होंगे उन्हीं को स्वर्ग मिलेगा।
माता का सन्देह घटा नहीं, और बढ़ गया।
माता पार्वती बोलीं – यह कैसे पता चले कि किसने शरीर धोया, किसने मन संजोया?
भगवान भोले नाथ ने कहा -यह तो संबंधित तीर्थ यात्रियों के कार्य से जाना जाता है। फिर भी माता मौन रही ।
भगवान शंकर ने इस उत्तर से भी समाधान न होते देख माता को प्रत्यक्ष उदाहरण से लक्ष्य समझाने का प्रयत्न किया।
उस तीर्थ मार्ग में शिव में भेष बदला ।कुरूप कोढ़ी बनकर पड़ रहे। माता पार्वती को और भी सुन्दर सजा दिया।
दोनों स्नान मार्ग में बैठ गए ।स्नानार्थियों की भीड़ उन्हें देखने के लिए रुकती। अनमेल स्थिति के बारे में पूछताछ करती।जितने यात्री , उतने सवाल ? परंतु मदद कोई नहीं करता ।
माता पार्वती जी सबको रटा-रटाया हुआ विवरण सुनाती रहतीं। यह कोढ़ी मेरा पति है। महाकुंभ स्नान की इच्छा से आए हैं। गरीबी के कारण इन्हें कंधे पर रखकर लाई हूँ। बहुत थक जाने के कारण थोड़े विराम के लिए हम लोग यहाँ बैठे हैं।
भाँति भाँति के लोग , वैसे ही उनके भाव ।
ज्यादातर यात्रियों की नीयत डिगती दिखती। वे सुन्दरी को प्रलोभन देते और पति को छोड़कर अपने साथ चलने की बात कहते।
माता पार्वती लज्जा से गढ़ गई। भला ऐसे भी लोग कुंभ स्नान को आते हैं क्या? उनकी निराशा देखते ही बनती थी।
शाम हो चली । सूर्य देवता अस्ताचल की ओर बढ़ चले ।इसी बीच एक सच्चा साधक दिखा ।उसने माता से उनकी पूरी कहानी सुनी ।भावुक हो गया ।उंसकी आँखों में आँसू भर आए ।उस साधक में मातृ भाव से माता को सहायता का प्रस्ताव किया और कोढ़ी भेष में भगवान शिव को कंधे पर लादकर संगम तट तक पहुँचाया। वह जो साथ में सत्तू -चना लाया था , उसमें से ही पति -पत्नी ( शिव -पार्वती) दोनों को भी खिलाया।
साथ ही सुन्दरी को बार-बार नमन करते हुए कहा – आप जैसी देवियां ही इस धरती की स्तम्भ हैं। मजबूती हैं ।आधारशिला हैं ।आप जैसो की वजह से भारत में देवियाँ पूजी जाती हैं ।
धन्य हैं आप जो इस प्रकार अपना ये पति धर्म निभा रही हैं।आपको नमन है । आपका कार्य अनुकरणीय है ।
इस प्रकार शिव का स्नान हुआ ।माता पार्वती का संशय निवारण व प्रयोजन पूरा हुआ। भगवान शिव -माता पार्वती उठे और अपने निवास कैलाश की ओर चले गए।
उस व्यक्ति को आशीर्वाद दिया !
फिर रास्ते में भगवान शिव ने माता से कहा – पार्वती इतनी बड़ी भीड़ में वो साधक ही एक ऐसा व्यक्ति ऐसा था, जिसने वास्तव में मन धोया ,पूर्ण स्नान किया और अपने लिए स्वर्ग का रास्ता बनाया।
महाकुंभ स्नान का माहात्म्य तो सही है पर उसके साथ मन भी धोने की शर्त लगी है।
पार्वती तो समझ गई कि कुम्भ माहात्म्य सही होते हुए भी… क्यों लोग उसके पुण्य फल से वंचित रहते हैं?
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